कवर: सादिया सईद
बोलती कहानियां के इस नए एपिसोड में स्वाती कश्यप से सुनिए लेखक हरीश मंगल की कहानी का हिन्दी अनुवाद – दाई.
दाई कहानी की मुख्य किरदार हैं- बेनी मां, जो आम तो बेचती ही हैं, साथ ही वे दाई के काम में भी बहुत कुशल हैं. उनकी कुशलता ने ना जाने कितनी ही औरतों और बच्चों की जान बचाई है. पर, बेनी मां की ये कुशलता भी उन्हें गांववालों के साथ खड़े होने की जगह नहीं देती. क्यों?
लेखक हरीश मंगल की ये कहानी कई तरह के सवाल पैदा करती है. क्या हैं ये सवाल? इस पर चर्चा करने से पहले सुनिए कहानी ‘दाई’.
कहानी सुनने के बाद इन सवालों से चर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है:
क्या हमारी जाति हमारे काम से बड़ी है? कौन सा काम ऊंचे दर्जे का है और कौन सा निचले दर्जे का? अगर इलाज करने वाले डॉक्टरों के प्रति हमारे भीतर असीम इज़्ज़त होती है तो उन दाईयों के प्रति क्यों नहीं जो सालों के अनुभवों को अपने भीतर समेटे हुए प्रसव में जच्चा और बच्चा दोनों का ध्यान रखती हैं. ज़्यादातर दाईयां महिलाएं होती हैं इसके कारण जाति की दर्जाबंदी के साथ-साथ कई तरह की जेंडर से जुड़ी दर्जाबंदी भी साफ़ दिखाई देती है.