बोलती कहानियां: हेकड़ी

बोलती कहानियां के इस नए 6वें एपिसोड में दिप्ता भोग से सुनिए लेखक विजयदान देथा की कहानी ‘हेकड़ी’. यह कहानी उनके संग्रह ‘बातां री फुलवाड़ी’ के हिंदी अनुवाद से ली गई है जिसके प्रकाशक राजस्थानी ग्रंथागार हैं.

यह कहानी नदी ने लहरों से कही, लहरों ने किनारों से, किनारों ने हवाओं से, हवाओं ने बिज्जी से और बिज्जी ने हमसे कही. बिज्जी यानी विजयदान देथा गांव-ढाणी और लोक के कथाकार हैं. उनके पास राजस्थान की लोककथाओं का खज़ाना है.

हेकड़ी कहानी में धोबिन की मदद के बावजूद उसका शुक्रिया अदा करना तो दूर ठाकुर हेकड़ी दिखाते हुए उसे गाली देने लगता है. उसके दिमाग पर ठाकुर होने और एक पुरुष होने का दंभ इतना चढ़ा हुआ था कि वो यह भी भूल गया कि उसके पैरो तले ज़मीन नहीं, पानी है… पानी जिससे ठाकुर को डर लगता है! आखिर नदी कहां किसी की ऊंच-नीच मानती है. उसके लिए तो सब बराबर हैं. ठाकुर का दंभ भी नदी के पानी में वैसे ही बहता चला गया जैसे खुद ठाकुर!

सुनिए यह पानी की तरह सरल, सहज और लोक में डूबी कहानी – हेकड़ी!

कार्यशाला में कहानी सुनाने के बाद इन सवालों से चर्चा को आगे बढ़ाया जा सकता है:

आपकी नज़र में ठाकुर ने धोबिन को क्यों गाली दी? बेचारा बोल देने से ठाकुर को इतना बुरा क्यों लगा? जब कोई आपकी मदद करता है तो क्या उसकी मदद लेने से पहले आप उनकी जाति पूछते हैं? ऐसे ही कई सवालों के साथ इस कहानी के ज़रिए कार्यशालाओं में जाति और मर्दानगी के मुद्दों पर बातचीत की जा सकती है.

सादिया सईद द थर्ड आई में टेकनिकल हेड और संपादकीय संयोजक हैं.

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