चित्रांकन : भावना परमार
कोरोना की दूसरी लहर अब मद्धम पड़ रही है. लॉकडाउन खुल रहे हैं. धीरे-धीरे बाहर की दुनिया के पर्दे उठने लगे हैं. लेकिन, भीतर अब भी बहुत कुछ अंधेरे में हैं. कोई था जो अब नहीं है, हंसी-आंसू, आवाज़-स्पर्श, भाग कर गले लगा लेने की दबी इच्छाएं…इनके बीच से गुज़रती ज़िन्दगी. इस एपिसोड में हम उन लोगों से बात करेंगे जो इस महामारी में अकेले अपने को संभाल रहे हैं.
‘कोरोनाकाल और मैं – अकेले हैं तो क्या ग़म हैं?! ‘ शहरों और गांवों से पांच अलग-अलग आवाज़ों ने द थर्ड आई के साथ बात कर महामारी में अकेले रहने के अनुभवों को साझा किया. वीडियो कॉल्स के बंद होने के बाद की खामोशी, डर, कहीं दूर रेडियो में चल रहे गानों की आवाज़ का साथ तो कॉलबेल किसने बजाया पर चौंक उठता दिल…आइए, अभिषेक, अनिता, आस्था, अवधेश, कात्या और माधुरी के साथ उन घरों के दरवाज़ें खटखटाते हैं और जानते हैं अकेला रहना कैसा होता है?