चित्रांकन: नंदिनी मोइत्रा (@nandini.moitra)
एकल इन द सिटी के इस तीसरे एपिसोड में मिलिए अनु से जो छत पर बने अपने कमरे से हमारा परिचय करवाती हैं. आज से करीब 76 साल पहले वर्जिनिया वुल्फ ने अपने लेख ‘अ रूम ऑफ़ वन्स ओन’ में लिखा था कि रचनात्मक रचने के लिए लड़कियों और महिलाओं के पास अपना एक कमरा होना चाहिए. किसे पता था कि अजमेर ज़िले के केकड़ी गांव में 31 साल की अनु उस ‘अपना एक कमरा’ को इतने सम्मान के साथ चरितार्थ कर रही होगी.
तीन साल की उम्र में बाल विवाह हो जाने से लेकर गौना न करने और आखिरकार इस बाल-विवाह से इंकार कर देने के जज़्बे के पीछे अनु की पढ़ाई और खुद के लिए खड़े होने के जुनून का बहुत बड़ा हाथ है. अनु के पिता को गर्व है कि उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया.
इस एपिसोड में अनु, अपने कमरे को एक दोस्त, परिवार के एक सदस्य की तरह देखती हैं. “मैं सुबह 5.30 बजे उठ जाती हूं. मुझे सुबह कटोरी में चाय पीना बहुत अच्छा लगता है. ये मोमेंट मेरी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सबसे अहम है.”
क्या आपने कभी सोचा है कि एकल लड़की के लिए चाभी का गुच्छा उसके अस्त्र-शस्त्र हो सकते हैं? कैसा होता है एकल होना? पडोसियों और दूसरे लोगों की नज़र में एकल लड़की या महिला जहां सवालों की लड़ी होती है, वहीं खुद के लिए उनके कई सवाल सुलझते जाते हैं. कैसे? आइए इस पॉडकास्ट के ज़रिए अनु के साथ उसकी भावनगरी में घूमते हुए इस गुत्थी के धागे साथ मिलकर खोलते हैं.