चित्रांकन: नंदिनी मोइत्रा (@nandini.moitra)
महानगरों या बड़े शहरों से दूर किसी सुदूर इलाके में एकल महिला होने के क्या अर्थ हैं? शहरों की रुमानियत से दूर ऐसी जगहों पर एक महिला के अकेले रहने के अनुभव कैसे होते हैं? कोई एकल क्यों होता है? कौन से शब्द हैं जो इसे परिभाषित करते हैं? क्या यह संपूर्ण जीवन है या जीवन का एक हिस्सा?
एकल इन द सिटी के दूसरे एपिसोड में माधुरी की मुलाक़ात उत्तर-प्रदेश में रहने वाली दो एकल महिलाओं से होती है. 27 वर्षीय सीमा, बांदा की रहने वाली हैं. वे पेशे से पत्रकार हैं और एक हिंदी डिजिटल न्यूज़ चैनल – भारत 1 न्यूज़ – के साथ काम करती हैं, वहीं 28 साल की शब्बो, बुंदेलखंड स्थित महिला अधिकार समूह ‘वनांगना’ की कार्यकर्ता हैं. वे संस्था के काम के बारे में लोगों को बताने एवं उन्हें संस्था से जोड़ने का काम करती हैं. दिन में कुछ घंटे वे एक सैनिटरी पैड बनाने वाली फैक्ट्री में भी काम करती हैं. इस एपिसोड में शब्बो और सीमा, दोनों ही खुलकर अपनी बातें साझा कर रही हैं. वे बताती हैं कि कैसे उन्हें शहर के भीतर एकल परिवार मिला.
बुंदेलखंड में जन्म लेने से लेकर वहां की गलियों में बड़े होने, पारिवारिक हिंसा की क्रूरता को झेलने से लेकर तलाक़ से गुज़रने के बाद एक समुदाय में आपसी बहनापे को पाना, यह एपिसोड उन घटनाओं का दस्तावेज़ है जो महिला हिंसा से जुड़ती हैं. ये कहानियां हमें बताती हैं कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के तार इतिहास की गलियों से होते हुए किस नए रुप में सामने आते हैं. अक्सर, इसकी पड़ताल से निकलने वाले जवाब हम महिलाओं को भी चौंका जाते हैं. आइए मिलकर सुनते हैं सीमा और शब्बो की कहानी.
पहला एपिसोड यहां सुनें.