स्टे होम, कितना सुरक्षित? के तीसरे भाग में हम दर्शक या बाईस्टैंडर की भूमिका की छान-बीन कर रहे हैं – जी हां, आपके और हमारे जैसे लोग, जो जेंडर आधारित हिंसा की स्थितियों में अपने आप को मौजूद पाते हैं. हम बीच बचाव क्यों नहीं करते? हम बिना रुके अपनी राह चलते जाने को कैसे उचित ठहराते हैं? हमें क्या डर है? क्या दर्शक की सुरक्षा का कोई तरीका है? माधुरी ने शहरों, नगरों, गांवों में रहने वाले लोगों से बात की, दर्शक या बाईस्टैंडर सिनड्रोम को समझने के लिए. इस बातचीत में वो कुछ ऐसे मनोविज्ञानिक पहलुओं से रूबरू हुईं जिनके बारे में हमने पहले सोचा ही नहीं था. Feat: रेडडॉट से इति रावत और बेम्बाला फ़ाउंडेशन से इरम अहमदी.
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