जेंडर

नौकरी, जो आज़ादी और मजबूरी दोनों थी

बात उस दौर की है जब हमारी उम्र 16 साल की थी और अपनी मां और छोटी बहन का पेट पालने के लिए नौकरी कर रहे थे. ऐसा करने पर हमें अपने परिवार, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों की तरफ से बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

“मैं अपने पिता के घर वापस नहीं जा सकती”

हमारी संस्था के कुछ उसूल हैं कि कुछ मुद्दों में हम समझौता नहीं कराते. बलात्कार, दहेज हत्या या हत्या आदि जैसे गंभीर अपराधों में हम समझौता नहीं कराते हैं – मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, बच्चों के साथ महिला को घर से निकाल देना, दहेज के लिए परेशान करना – इन मुद्दों में अगर हमारे पास केस आता है तो हम महिला के निर्णय अनुसार इकरारनामा कराते हैं.

“क्या हुआ, कोई खुशखबरी नहीं है?”

समझौता ज़्यादातर दो लोगों के बीच में कराया जाता है. जैसा कि हमने देखा है, किसी परिवार में पति-पत्नी के बीच झगड़े को रोकने के लिए समझौता कराया जाता है या किसी और तरह की लड़ाई को खत्म करने के लिए भी समझौता कराया जाता है. लेकिन, ज़िंदगी में हमें कई और तरह के समझौतों से भी गुज़रना पड़ता है.

केसवर्कर डायरी | एपिसोड 3: संडे का दिन

केसवर्कर्स डायरी के तीसरे एपिसोड में एक केसवर्कर हमें अपने संडे के दिन के बारे में बताती है, सप्ताह का वह दिन जब अपने बेटे के साथ वह अपने पति के गांव जाती है जहां गांव के लोगों के तीखे सवालों के साथ-साथ उसकी सबसे प्यारी सहेली— एक महुआ के पेड़— उसका इंतज़ार कर रहा है.

कतरनों से सपने बुनती बुंदेलखंड की औरतें

हंसा छोटी-छोटी गुड़ियाओं को अपने काम में शामिल करती हैं – कभी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में, कभी भावों को व्यक्त करने के लिए तो कभी अपनी कलाकृति को सामने रखने के लिए. यही वजह है कि ‘क्या है यह समझौता’ सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं बल्कि एक लघु–दृश्य कथा है जिसमें कई तरह के भावों का मिश्रण है जो शब्दों से छन कर आपस में घुलते जाते हैं.

निर्णय

केसवर्कर डायरी | एपिसोड 2: निर्णय

लड़कियां या औरतें समझौता करना कहां से सीखती हैं? कैसे वे मायके और ससुराल में सभी को खुश रखने के लिए अपनी खुद की ज़िंदगी को होम करने के लिए तैयार हो जाती हैं? सच यह है कि पैदा होने से लेकर बड़े होने तक अपने आसपास मां, बहन, दादी, चाची, नानी,,,इन सभी को वे समझौता करते ही देखती हैं.

केसवर्कर्स डायरी | एपिसोड 1 : अनेकों कमरों का समझौता

कोई हमें थोड़ा प्यार करे, हमारी इज़्ज़त करे, हमें सम्मान दे- इसके लिए हम क्या-क्या जतन करते हैं, कितने तरह के समझौते करते हैं, है न! केसवर्कर्स डायरी के इस एपिसोड में उत्तर-प्रदेश के बुंदेलखंड की एक केसवर्कर हमें अपने जीवन के उन तमाम कमरों के बारे में बताती है जहां कभी उसने अपना बचपन जिया तो कभी खुद से उसे बनाया-संवारा.

“वो मेरी बेटी है और मुझे उसे अकेले पालने में कोई दिक्कत नहीं है”

जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े केस पर काम करते हुए एक केसवर्कर महसूस करती है कि कैसे हमारा जीवन उन छोटे-बड़े समझौतों से घिरा होता है जो हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में करने पड़ते हैं. खासकर तब जब यह समझौते पारिवारिक विवादों और घर के भीतर सत्ता के समीकरणों की वजह से करने पड़ते हैं?

बिना शर्तों का कॉन्ट्रैक्ट – निकाहनामा

शादी या निकाह खुशी का वह मौका होता है जब लड़का और लड़की के साथ-साथ दोनों के परिवार भी एक नए रिश्ते में बंधते हैं. शादी, संस्कार होने के साथ-साथ एक समझौता भी है. कुछ समझौते कागज़ पर किए जाते हैं तो कुछ को रीति-रिवाजों का जामा पहना कर अदृश्य तरीके से लड़कियों के गले में डाल दिया जाता है.

‘हम सिर्फ़ ससुराल वापस जाने का कोम्प्रोमाईज़ नहीं करवाते हैं.’

समझौता और इकरारनामा ये दो शब्द जेंडर आधारित हिंसा से जुड़ी शब्दावली में महत्त्वपूर्ण हैं. इकरारनामा का मतलब कोर्ट-कचहरी, थाना-पुलिस, पंचायत या मध्यस्थता केंद्रों द्वारा करवाए जाने वाले समझौतों से बहुत अलग है.

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