द थर्ड आई, जेंडर, यौनिकता, हिंसा, टेक्नोलॉजी और शिक्षा पर काम करने वाली एक नारीवादी विचारमंच (थिंकटैंक) है. क्रांतिकारी शिक्षाविद ज्योतिबा फूले द्वारा तृतीय रत्न नाटक में दी गई उपमा से यह नाम आया है. फूले के लिए शिक्षा तीसरी आंख के समान थी जिसमें मानव दशा का जायज़ा लेने की ताकत है.
इसकी शुरुआत ज्ञान रचने और ज्ञान के प्रसार में टेक्नोलोजी की अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए की गई है. साथ ही ये जानते हुए कि ज्ञान की दुनिया में (ख़ासकर हिंदी में) सरल भाषा में लिखे और ‘ओपन सोर्स’ संसाधनों का अभाव है. इसीलिए यह वेबसाइट अंग्रेज़ी और हिंदी दो भाषाओं में बनाई गई है.
‘द थर्ड आई‘ ग्रामीण और कमज़ोर तबक़ों के लिए ‘निरंतर‘ के तीन दशकों से किए गए ज्ञान सृजन को डिजिटल क्षेत्र में ले जाती है. इसके साथ यह शिक्षाविदों, अध्यापकों, ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों, नीतिकारों और शोधकर्ताओं के लिए सामग्री उपलब्ध करवाती है. यह गांवों, शहरों एवं छोटे क़स्बों में बसने वाले शिक्षार्थियों के लिए नारीवादी नज़रिए से सीखने-सिखाने का प्लेटफ़ार्म भी तैयार करती है. यह खुद सीखने के लिए प्रेरित करती है और लगातार किए जाने वाले शोध व अध्ययन के साथ-साथ, अलग-अलग प्रक्रियाओं के माध्यम से, सार्वजनिक क्षेत्रों में चल रही बहसों को भी बढ़ावा देती है.
हम क्या करते हैं?
‘द थर्ड आई’ हिंदी और अंग्रेज़ी में देश और दुनिया के स्तर पर किए जाने वाले शोधकार्य, क़िस्से कहानियों और कलाओं को लेकर पाठ्य सामग्री मुहैया करवाती है. यह जेंडर, हिंसा, यौनिकता, टेक्नोलॉजी और शिक्षा-संबंधी समुदाय में बसे सिद्धातों, चलनों, मौखिक इतिहास और ज्ञान को संजोने और पुनः रचने का काम करती है.
यह ग्रामीण, क्षेत्रीय, शहरी और अंतर्राष्ट्रीय कहानियों और गीतों को उनकी अपनी विशेषता और संदर्भ से जोड़ कर सामने लाती है.
'निरंतर' के बारे में
‘द थर्ड आई’ के ज़रिए नारीवादी शिक्षा के तीस सालों के काम को अगले स्तर तक ले जाने की मुहिम है. ‘निरंतर’ ने लगातार उन सब के साथ काम करने का प्रयास किया है जिन्हें शिक्षा की दुनिया अक्सर नज़रअंदाज़ कर देती है.
प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में, मुख्यधारा के शिक्षार्थियों, स्कूली शिक्षा व्यवस्था से बाहर हो गए युवाओं ख़ासकर लड़कियों के साथ निरंतर ने काम किया है. प्रगतिशील शिक्षण पद्धतियों के साथ शिक्षक-शिक्षार्थी के बीच के संवाद को बढ़ावा देने वाले केंद्रों को विकसित करने में संस्था जुड़ी रही है.
‘निरंतर’ के इन प्रयासों से लड़कियों और महिलाओं को शैक्षिक स्थानों में वापस लौटने का मौक़ा मिला. इसके साथ ही वे कार्यस्थलों तक पहुंच पाईं और नेतृत्व की भूमिकाओं में भी खुद को स्थापित कर पाईं.
शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के ज़रिए महिलाओं और लड़कियों की सत्ता तक पहुंच बनाने में ‘निरंतर’ का सपना पहले भी ‘ख़बर लहरिया’ के रूप में साकार हो चुका है. यह दलित महिलाओं द्वारा चलाया जाने वाला एकमात्र ख़बरों का चैनल है.
ज्ञान कौन रच रहा है? इस सवाल से ख़बर लहरिया का जन्म हुआ. आज यह दलित महिला पत्रकारों द्वारा चलाए जाने वाले मॉडल की मिसाल है. यह डिजिटल दुनिया के भीतर स्थानीय लोगों तक, ख़बरों की पहुंच बनाता है और वैकल्पिक नज़रियों को पेश करता है. इसके ग्रामीण भारत में लाखों-लाख दर्शक हैं.
महिला शिक्षा केंद्र का हिस्सा रहते हुए ‘निरंतर’ ने दलितों, आदिवासी महिलाओं के लिए पहला रिहाईशी स्कूल खोला और देश में गांव की औरतों के लिए पहला पाठ्यक्रम तैयार किया. इस अनुभव ने स्कूली व्यवस्था से बाहर हो गई लड़कियों के लिए सरकार द्वारा चलाए जाने वाले प्रमुख शैक्षिक कार्यक्रम, रिहाईशी KGBV की रूपरेखा को प्रभावित किया.
इसने दिल्ली की पुनर्वास कॉलोनियों में ‘परवाज़ सेंटर फ़ॉर एजुकेशन (PACE)’ कार्यक्रम के लिए प्रासंगिक और नारीवादी पाठ्यक्रम बनाया. इसने स्कूल छोड़ चुकी/ कभी स्कूल न गई किशोरियों में नौकरियां पाने की लालसा तथा आत्मविश्वास पैदा किया.
‘एप्लाइड डिजिटल लिटरेसी प्रोग्राम’ के तहत इसने उत्तरप्रदेश के गांव की ‘डेरी सहकारी संस्थाओं’ की महिला कर्मियों के लिए एक डिजिटल सीखने-सिखाने का पाठ्यक्रम विकसित किया, जिससे उनका तकनीकी और सूचना के क्षेत्र में सशक्तीकरण किया जा सके.
‘निरंतर’ ने मुख्यधारा की पाठ्य पुस्तकों, नए तरीक़े के पाठ्यक्रम की कल्पना और 2004 से एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों को लगातार प्रभावित किया है. निरंतर का नारीवादी नज़रिया तथा प्रभाव कक्षा में सिखाने के तरीकों से लेकर स्कूली किताबों की बनावट और उनकी विषयवस्तु तक रहा है. 2005 के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे पर आधारित इसकी सलाह से तैयार की गईं पाठ्य पुस्तकें आज तक चलन में हैं. साथ ही जेंडर, जाति तथा वर्ग की समझ पाठकों में आगे बढ़ा रही हैं.
‘निरंतर’ को इसकी बेहद लोकप्रिय पत्रिका ‘आपका पिटारा’ (1994-2010) के नाम से भी जाना जाता था. समाज, राजनीति, स्वास्थ्य, क़ानून और पर्यावरण के विषयों पर नव-साक्षर तथा ग्रामीण पाठकों के लिए सरल भाषा में लिखे गए लेख, कहानियां एवं कविताएं इसमें छपती थीं.
द थर्ड आई का डिज़ाइन यशस चंद्रा ने तैयार किया है. इसके ‘होम पेज’ का आर्टवर्क मालविका राज की मूल ड्रॉइंग पर आधारित है.
इस लेख का अनुवाद राजेन्द्र नेगी ने किया है।