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मन के मुखौटे

जन स्वास्थ्य विशेषांक में हम आंखें बंद कर अपने मन-मस्तिष्क के भीतर झांकने की कोशिश कर रहे हैं. पब्लिक हेल्थ एवं पॉलिसी पर अभी तक हम कई तरह के सवाल-जवाब कर चुके हैं. इस बार बारी है स्वास्थ्य और सिस्टम के बीच मानसिक स्वास्थ्य को परखने एवं समझने की…  ये एक ऐसी कोशिश है जहां हम इलाज और बीमारी के दायरे से बाहर निकलकर जीवित इतिहास को महसूस कर रहे हैं. हमारी पॉडकास्ट सीरीज़ मन के मुखौटे, साहित्य और अनुभवी आवाज़ों के ताने की बहुत बारिक बुनाई है. जिसके ज़रिए हम दिल, दिमाग़ और मस्तिष्क को एक सीध में रख, हमेशा सच बयान करने वाले मन की गहराई में डूबने का प्रयास करेंगे.  

एपिसोड 1
मानसिक स्वास्थ्य के तयशुदा खांचे से बाहर निकल, उसे आपबीती और जगबीती के अनुभवों एवं कहानियों के चश्मे से समझने की एक महत्वाकांक्षी पहल "मन के मुखौटे" के ज़रिए हम एक बार फ़िर वापस मानसिक स्वास्थ्य की तरफ़ मुड़कर देख रहे हैं. इस पॉडकास्ट सीरीज़ के नए एपिसोड में हम देखभाल से जुड़े मुद्दों पर सवालों और अनुभवों के ज़रिए इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं.  
एपिसोड 2
मानसिक स्वास्थ्य के तयशुदा खांचे से बाहर निकल, उसे आप बीती और जग बीती के अनुभवों एवं कहानियों के चश्में से समझने की एक महत्वाकांक्षी पहल - मन के मुखौटे- के दूसरे एपिसोड में हम लेकर आए हैं कथाकार सुधा अरोड़ा की कहानी 'रहोगी तुम वही'. सुनिए कैसे भावनात्मक हिंसा की छोटी-छोटी किरचें इस कहानी में साफ-साफ दिखाई देती हैं.  
एपिसोड 1
जन स्वास्थ्य विशेषांक में इस हफ़्ते हम आंखें बंद कर अपने मन-मस्तिष्क के भीतर झांकने की कोशिश कर रहे हैं. पब्लिक हेल्थ एवं पॉलिसी पर अभी तक हम कई तरह के सवाल-जवाब कर चुके हैं.
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