लर्निंग लैब

लर्निंग लैब क्या है?

द थर्ड आई लर्निंग लैब, कला-आधारित एक शैक्षिक प्लेटफॉर्म है. जहां हम साथ मिलकर अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं. यहां हम अपने विचारों और नज़रियों की पड़ताल करते हैं, उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से जांचते-परखते हैं.

द लर्निंग लैब इस विचार पर आधारित है कि डिजिटल दुनिया केवल सीखने-सिखाने का एक नया माध्यम नहीं, बल्कि अभ्यास की एक नई जगह भी है जहां कई आवाज़ें एक-दूसरे से टकराती हैं, और इस तरह नए विमर्श और दृष्टिकोण जन्म लेते हैं.

लर्निंग लैब का काम नारीवादी नज़रिए से रोज़मर्रा की छानबीन करना है. दरअसल, रोज़मर्रा वह जगह है जहां सामाजिक संरचनाएं मौजूद होती हैं और दिखाई भी देती हैं. हम इन अनुभवों या कहानियों में उस चीज़ की तलाश करते हैं जो सत्ता सम्बंधों को पलटने और दुनिया को एक नई नज़र से देखने की गुंजाइश रखती हो. यही वजह है कि यह नारीवादी प्रक्रिया बने-बनाए ढांचों और विकास क्षेत्र के स्थापित विमर्शों को चुनौती देती है.

एक नारीवादी एजुकेटर के रूप में, हम उन लोगों के साथ साझा रचनात्मक प्रक्रियाओं को अंजाम देते हैं जिन्हें परम्परागत रूप से ज्ञान का सृजन करने या विमर्श में योगदान देने वाला नहीं माना जाता है. ऐसे समूहों और लोगों के साथ मिलकर मौजूदा आख्यानों को परखना और नए आख्यान गढ़ना, लर्निंग लैब की मूल प्रक्रिया में शामिल है. इसी की मदद से हम सामाजिक न्याय, जेंडर, यौनिकता एवं विकास के लगातार बदल रहे आख्यानों की तह तक जा पाते हैं.

इस प्रक्रिया में हम जिन उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं, वे डिजिटल हैं और इसके केंद्र में मोबाइल फोन है. हम दृश्यों के निर्माण से जुड़ी तकनीकों, कहानी कहने की विभिन्न कलाओं, ध्वनियों और आवाज़ों के साथ बड़े पैमाने पर काम करते हैं ताकि पढ़ने और लिखने के कौशल की कमी रचनात्मक क्रिया में बाधक न बन सके. साथ ही, शब्दों की व्यापक दुनिया (काल्पनिक और कथेतर) इस प्रक्रिया का आधार तत्व है.

लर्निंग लैब, एक योजनाबद्ध एवं सतत चलने वाली मार्गदर्शक प्रक्रिया है. यह व्यक्तियों और विभिन्न समुदायों के साथ मिलकर उन्हें अपनी क्षमता, दृष्टिकोण और तकनीकी कौशल को विकसित करने में सहायक की भूमिका निभाती है ताकि इस डिजिटल दौर में वे अपने इलाकों या घरों में रहते हुए, वहीं से ध्वनियों, दृश्यों और शब्दों के माध्यम से अपनी बात साझा कर सकें.

लर्निंग लैब किसके साथ काम करती है?

लर्निंग लैब में हम उन लोगों के साथ काम करते हैं जो परंपरागत रूप से डिजिटल ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं. रहबर सह-रचना की प्रक्रिया के तहत इनके साथ मिलकर हम इनकी जिज्ञासाओं, रूचियों और कौशल को उत्पादक रूप में बदलने की कोशिश करते हैं, ताकि वे अपने ज्ञान के रचनाकार खुद बन सकें. ग्रामीण युवा लड़कियां, घरेलू कामगार, सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले पुरुष, खदानों में काम करने वाले लोग, सामुदायिक कार्यकर्ता, जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े केसवर्कर, यौनकर्मी, ट्रांस शिक्षक और विद्यार्थी हमारी इस पहल में हमारे शिक्षार्थी (मेंटीज़) और सह-रचनाकार रह चुके हैं.

द लर्निंग लैब के ज़्यादातर शिक्षार्थी (मेंटीज़) और सह-रचनाकार हाशिए के समुदाय, पहचान और स्थान से आते हैं. शुरुआती दो सालों में ही हमने देश के अलग-अलग कोनों से आने वाले 59 शिक्षार्थियों के साथ काम किया. इन सभी के साथ काम करने की प्रक्रिया और तरीके भी बहुत अलग-अलग हैं. लर्निंग लैब के शिक्षार्थियों के साथ हमारे काम करने की अवधि कभी दीर्घकालिक तो कभी थोड़े समय के लिए होती है. यह ज़रूरत के अनुसार बदलती रहती है.

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Reflections on Pedagogy

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