हरिणी नागेंद्र और अमृता सेन के लेख

हरिणी नागेंद्र अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सस्टेनेबिलिटी की प्रोफ़ेसर हैं, जहां वे सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी विभाग का नेतृत्व करती हैं. हरिणी पिछले 25 वर्षों से पारिस्थितिकी और न्याय दोनों ही दृष्टिकोण से दक्षिण एशिया के जंगलों और शहरों में सामाजिक-पारिस्थितिक परिवर्तनों की खोजबीन करती आई हैं. उन्हें यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ से ‘2009 कोज़ेरेली पुरस्कार’, ‘2013 एलिनोर ओस्ट्रॉम सीनियर स्कॉलर अवॉर्ड’ और ‘2017 क्लेरिवेट वेब ऑफ़ साइंस अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया है. उनकी ‘नेचर इन द सिटी: बेंगलुरु इन द पास्ट, प्रेज़ेंट एंड फ्यूचर’ (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2016) और ‘सिटीज़ एंड कैनोपीज़: ट्रीज़ इन ‘इंडियन सिटीज़" (पेंगुइन, 2019, सीमा मुंडोली के साथ) सहित कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. हरिणी, डेक्कन हैरॉल्ड अख़बार में एक मासिक कॉलम 'द ग्रीन गोब्लिन' के नाम से लिखती हैं, और भारत में शहरी स्थिरता के मुद्दों पर एक प्रसिद्ध सार्वजनिक वक्ता और लेखक हैं. अमृता सेन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में समाजशास्त्र की सहायक प्रोफेसर हैं और अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में विज़िटिंग फैकल्टी हैं. उनकी शोध रुचियों में सांस्कृतिक और राजनीतिक पारिस्थितिकी, वन संरक्षण की राजनीति, शहरी पर्यावरण संघर्ष और एंथ्रोपोसीन अध्ययन शामिल है. 2019 में, अमृता को सुंदरबन में संरक्षण की राजनीति पर डॉक्टरेट अनुसंधान के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे से 'पीएचडी थीसिस पुरस्कार में उत्कृष्टता' प्राप्त हुई. वे ‘ए पॉलिटिकल इकोलॉजी ऑफ फॉरेस्ट कंज़र्वेशन इन इंडिया कम्युनिटीज़, वाइल्डलाइफ एंड द स्टेट (रूटलेज 2022) की लेखिका हैं, जो भारतीय सुंदरबन में उनके पीएचडी फील्डवर्क पर आधारित है.

हमारे शहर पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं

दुनिया भर में, शहरों को पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए डिज़ाइन किया गया है. और वो भी एक ख़ास तरह के पुरूषों के लिए जो – जवान, स्वस्थ और सिस-जेंडर हैं. इस कारण महिलाएं – युवा हों या बुज़ुर्ग, ट्रांसजेंडर समुदाय, और जेंडर के नियमों से परे किसी भी अन्य को – जो हट्टे कट्टे पुरुषों के इस सजातीय समूह में फिट नहीं होते – कई तरह की दिक्क़तों का सामना करना पड़ता है.

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