निरंतर रेडियो

पॉडकास्ट

यहां हम आवाज़ का सहारा लेते हुए पॉडकास्ट, कहानियां, किस्से और बातें रेडियो पर लाते हैं. ये रोज़मर्रा के अनुभव हमारे आस पास से लेकर सामाजिक नीतियों तक को समझने में मदद करते हैं. ये संवाद जेंडर और पितृसत्ता पर ठोस समझ बनाने का प्रयास हैं.

एपिसोड 5
गीता की कॉलोनी में एक ऐसा भूकंप आया जिसकी गति को किसी भी तरह के रिक्टर स्केल से नहीं मापा जा सकता था. क्योंकि ये भूचाल ज़मीन के भीतर से नहीं बल्कि उसकी कॉलोनी के एक घर से निकला था और अब पूरे मोहल्ले में इसकी खबर फैल चुकी थी. हुआ यूं कि गीता के मोहल्ले से एक लड़की, किसी दूसरी जाति के अपने लड़के दोस्त (ब्यॉफ्रेंड) के साथ घर छोड़कर भाग गई.
एपिसोड 4
उसने अभी-अभी कोलेज की परीक्षा पास की है. इससे पहले की वो आगे की पढ़ाई के बारे में सोच पाता, परिवार वालों ने उसकी शादी तय करने का फैसला कर लिया. अचानक अपनी ज़िन्दगी में आई इस परेशानी से वो युवा लड़का बहुत बेचैन हो उठा. अभी उसकी उम्र ही क्या है, वो अभी शादी नहीं करना चाहता. निराशा और घबराहट के बीच उसने अपनी हिम्मत बटोर कर अपने घरवालों से कहा - क्या? जानने के लिए सुनिए अज़फरूल की पूरी कहानी. 
एपिसोड 3
अचूकी से तो आप मिल ही चुके हैं. हैरत की बात यह है कि उसके मारवाड़ी समुदाय के लोग हमेशा उसके पीछे पड़े रहते हैं. वे अक्सर उसकी मां के कम पढ़े-लिखे होने का मज़ाक बनाते हैं. अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने की उसकी ज़िद के लिए वे अचूकी की भी टांग-खिंचाई करते रहते हैं.
एपिसोड 2
अपनी धारदार हाज़िर-जवाबी और अविराम बोलते रहने की ज़बरदस्त कला के ज़रिए अचूकी अपने नाम को सार्थक बनाती है. जितना उत्साह उसके भीतर अपनी कहानियों को लेकर दिखाई देता है, ठीक उसके उलट अपने मारवाड़ी बनिया समुदाय के बारे में बात करते हुए वह किसी अबूझ पहेली की तरह उलझी नज़र आती है.
एपिसोड 1
इस एपिसोड में सुनते है खुशी को. दूसरों की ज़िन्दगी में टांग लड़ाना अक्सर लोगों का फेवरेट टाइम पास होता है. यूं कह लें कि सबसे पसंदीदा काम. खुशी के लिए भी यह नई बात नहीं थी कि लखनऊ की गलियों में राह चलते कोई उसे टोककर सवाल कर दे. पर, एक सवाल ऐसा था जो हर बार उसके दिलो-दिमाग को हिला कर रख देता.
एपिसोड 0
“फ से फ़िल्ड, श से शिक्षा”  भारत के ग्रामीण इलाकों से निकले, शिक्षा के अनुभव और उनमें कल्पनाओं के पंख लगाए 10 कहानियों की यह ऑडियो शृंखला अब आपके सामने है. इस शृंखला की हर कहानी अपने आप में शिक्षा के अनुभवों और उन्हें देखने के नज़रिए से बिलकुल जुदा है.
एपिसोड 1
मानसिक स्वास्थ्य के तयशुदा खांचे से बाहर निकल, उसे आपबीती और जगबीती के अनुभवों एवं कहानियों के चश्मे से समझने की एक महत्वाकांक्षी पहल "मन के मुखौटे" के ज़रिए हम एक बार फ़िर वापस मानसिक स्वास्थ्य की तरफ़ मुड़कर देख रहे हैं. इस पॉडकास्ट सीरीज़ के नए एपिसोड में हम देखभाल से जुड़े मुद्दों पर सवालों और अनुभवों के ज़रिए इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं.  
एपिसोड 5
बोलती कहानियां के इस एपिसोड में स्वाती कश्यप से सुनिए लेखक हरीश मंगल की कहानी ‘बेनी मां’ का हिंदी अनुवाद – दाई. इस कहानी की मुख्य किरदार हैं बेनी मां, जो आम तो बेचती ही हैं, साथ ही वे दाई के काम में भी बहुत कुशल हैं. पर, बेनी मां की ये कुशलता भी उन्हें गांववालों के साथ खड़े होने की जगह नहीं देती. क्यों?
एपिसोड 4
अपने ही रंग में नहाउं मैं तो अपने ही संग मैं गाउं. एक सवाल, वे महिलाएं जिन्होंने अपनी मर्जी से अपने पति को छोड़ दिया है, उनके लिए हिन्दी, अंग्रेजी या किसी भी भाषा में कौन सा शब्द है? अगर, आपको नहीं पता तो हम बताते हैं -एमएनटी (MNT)—मी नवराएला टाकले —यानि, मैंने पति को छोड़ा!
मीना, एनी और नयनतारा – सेंट एग्निस कॉलेज में पढ़ने वाली तीन लड़कियां, तीन दोस्त – जो दुनिया को अपने कंधे पर उठाए नाचती फिरती हैं. वे दुनिया पर राज करती हैं, कम से कम अपने कॉलेज पर तो ज़रूर करती हैं! वे कॉलेज फेस्टिवल्स की जान हैं. डांस में उनका कोई सानी नहीं. 
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