
कोरोनाकाल और मैं – अकेले हैं तो क्या ग़म है?!
कोरोना की दूसरी लहर अब मद्धम पड़ रही है. लॉकडाउन खुल रहे हैं. धीरे-धीरे बाहर की दुनिया के पर्दे उठने लगे हैं. लेकिन, भीतर अब भी बहुत कुछ अंधेरे में हैं. कोई था जो अब नहीं है, हंसी-आंसू, आवाज़-स्पर्श, भाग कर गले लगा लेने की दबी इच्छाएं…इनके बीच से गुज़रती ज़िन्दगी. इस एपिसोड में हम उन लोगों से बात करेंगे जो इस महामारी में अकेले अपने को संभाल रहे हैं.