जेंडर आधारित हिंसा

“मुझे अंग्रेज़ी का कॉम्प्रमाइज़ शब्द पसंद नहीं है. यह कठोर सा लगता है, लेकिन समझौता – इसमें कुछ बहाव है, कुछ बदलाव है.”

हंसा थपलियाल, एक फिल्ममेकर हैं, और गुड़ियाएं भी बनाती हैं. द थर्ड आई लर्निंग लैब के साथ मिलकर उन्होंने एक एनीमेशन फिल्म बनाई जो हिंसा की शब्दावली के तैयार होने के दौरान की गई वर्कशॉप की रिकॉर्डिंग्स को आधार बनाकर तैयार की है. ये फिल्म रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सामान – कपड़ों के टुकड़ों, सुई-धागे और इंसानी आवाज़ों के स्वर के साथ काम करती है, ताकि उस रंगीन चलचित्र जैसे संसार को जीवंत किया जा सके जिसमें महिलाओं के समझौते बसे होते हैं.

पितृसत्ता और हिंसा को समझने में अक्सर हम किस तरह की गलतियां करते हैं?

जेंडर आधारित हिंसा पर काम करने वाले लोग प्यार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, क्योंकि यह अक्सर हिंसा की कहानियों का अहम हिस्सा होता है – कई बार यह मुख्य भूमिका में होता है. पितृसत्ता के साथ किए गए समझौते सिर्फ़ समझौते होते हैं, या ये महिलाओं के लिए अपनी ज़िंदगी चलाने की ज़रूरी रणनीतियां होती हैं?

डायन हत्या

“डायन होने का कोई प्रमाण थोड़े होता है.”

भारतीय कथाकारों की दुनिया में डायन विषय पर ढेरों कहानियां मौजूद हैं. एक महानगर के क्लासरूम में बैठ इन कहानियों को पढ़ते हुए यही लगता था कि ये एक काल्पनिक दुनिया के पात्र हैं, कहीं दूर की कौड़ी लेकिन दिसंबर 2023 में एक दिन बिहार की राजधानी पटना में एक मंच से 75 साल की जुलेखा को बोलते सुना तो ऐसा लगा जैसे, सन्नों, सोदन की मां, पूनो और तमाम पात्र किताबों से निकलकर सामने आकर खड़े हो गए हों. फर्क इतना था कि यहां कुछ भी काल्पनिक नहीं था!

बोलती कहानियां Ep 8: फुलेसरा बहु की आंख

शादी के एक साल के भीतर ही फुलेसरा के पति की मृत्यु हो जाती है. पति के जाने के बाद जो एक चीज़ उसके साथ होती है वह है- डर. पति के जाने के बाद खूबसूरत आंखों वाली फुलेसरा की बहु को समाज डायन करार दे देता है और वह गांव-समाज से अलग कर दी जाती है. फुलेसरा की बहु की ज़िंदगी क्या मोड़ लेती है? सुनिए बोलती कहानियां का ये विशेष एपिसोड ‘फुलेसरा बहू की आंख’.

विशेष फीचर: बायन

“बाबा, कोई डायन कैसे बनती है?” सूखी झील के किनारे खड़े होकर भागीरथ जब यह सवाल अपने पिता मलिंदर से पूछता है, उस वक्त उसकी बिछड़ी हुई मां की परछाई उसके ऊपर मंडरा रही होती है. महाश्वेता देवी की कहानी बायन में भागीरथ अपनी मां को याद करता है और यह जानने की कोशिश करता है कि कैसे उन्हें डोम समुदाय ने बायन (डायन) कहकर अलग कर दिया.

प्रसव और गरिमा: स्वास्थ्य के नाम पर गर्भवती महिलाओं के साथ हिंसा

इरावती, इंदौर के पास के छोटे से गांव बेगमखेडी की रहने वाली है. जब वह अपनी पहली डिलीवरी के लिए इंदौर के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुई, तो उसे उम्मीद नहीं थी कि पहली संतान के होने की खुशी, इतनी जल्दी ज़िंदगी भर के सदमे में बदल जाएगी.

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 08 – मंजू सोनी

मिलिए मंजू सोनी से जो बांदा, उत्तर-प्रदेश की रहनेवाली है. मंजू, 2000 से वनांगना संस्था के साथ काम कर रही हैं. पिछले पांच साल से वे संस्था में जेंडर आधारित हिंसा के मामलों में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं.

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 07 – अवधेश गुप्ता

केसवर्कर्स के साथ मुलाकात के इस एपिसोड में मिलिए बांदा, उत्तर-प्रदेश की रहने वाली अवधेश गुप्ता से, जो 1995 से वनांगना संस्था के साथ बतौर केसवर्कर काम कर रही हैं.

हमारी देह हिंसा को कैसे देखती और महसूस करती है?

साल 2021 का ग्यारहवां महीना यानी नवंबर. इंदौर, मध्य प्रदेश का शहर. इंदौर में किसी मकान के एक कमरे में साथ बैठीं ग्यारह महिलाएं. कमरे में जिज्ञासा और घबराहट का एक मिश्रण था जो कमरे में बैठी महिलाओं के चेहरों पर भी झलक रहा था.

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 06 – कुसुम

केसवर्कर्स से मुलाकात के इस एपिसोड में मिलिए महरौनी, उत्तर-प्रदेश की रहने वाली कुसुम से, जो महरौनी स्थित सहजनी शिक्षा केंद्र के साथ 2008 से काम कर रही हैं.
अपने अनुभवों को साझा करते हुए कुसुम बताती हैं, “एलएलबी तो हमने नहीं की है, इनसे तो हम बहुत दूर हैं लेकिन हमें पता है कि किस केस में किस तरह की धारा लगना चाहिए.”

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