हमारे साथी – ऑनलाइन, ऑफलाइन

द थर्ड आई ऑफ़लाइन ज़मीनी संगठनों के साथ मिलकर ज्ञान को रचने और उसकी दर्जाबंदियों को पार करने के लिए डिजिटल शिक्षा पद्धति का विकास और निर्माण करता है.

हम क्या करते हैं?

नई सोच, आवाज़ों और विचार विमर्श को फ़ील्ड से डिजिटल की दुनिया में एक सशक्त रूप से लाना.
जेंडर, शिक्षा और जेंडर आधारित हिंसा पर काम कर रही सहभागी संस्थाओं के साथ मिलकर ज्ञान को तैयार करना. नए−नए प्रयोगों के द्वारा इस ज्ञान को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाना ताकि अलग−अलग समूहों तक पहुंचा जा सके.
कार्यशालाओं द्वारा सभी सहभागी संस्थाओं में डिजिटल माध्यमों की समझ विकसित करना ताकि वे और सशक्त हों और अपने समुदायों (युवा, महिला, वंचित समूह) को डिजिटल दुनिया से जोड़ने और भाग लेने में सक्रिय करें.
सहभागी संस्थाओं के समुदायों, ख़ासकर युवाओं की आवाज़ों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना ताकि दो तरफ़ा संप्रेषण संभव हो सके और उनकी अपनी आवाज़ भी डिजिटल माध्यम में शामिल और बुलंद हो.
जेंडर और यौनिकता पर एक सशक्त समझ बनाना. जिससे यह समझा जा सके कि जेंडर, डिजिटल और ऑफलाइन के बीच किस तरह के संबंध बन रहे हैं.
नए−नए प्रयोगों के माध्यम से सहभागी संस्थाओं द्वारा साझेदारों की ट्रेनिंग और उनके अनुकूल सामग्री और संसाधन तैयार करना.
कार्यशालाओं और प्रशिक्षण के ज़रिए स्थानीय शिक्षकों और कार्यकर्ताओं का मज़बूत नेटवर्क तैयार करना.
हिंसा एवं जेंडर के मुद्दों, उनके नए स्वरूप और असर को समझने में समुदायों की मदद करना. इसके लिए उनके बीच जाकर उनमें जागरूकता लाने के लिए अभियान चलाना.

हमारे सहभागी

Doosra Dashak

दूसरा दशक: फ़ाउंडेशन फ़ॉर एजुकेशन एंड डेवलपमेंट (जयपुर, राजस्थान) एक सार्वजनिक चेरीटेबल ट्रस्ट है, जिसकी स्थापना 2000 में की गई थी. इसने 2001 में, 11 से 20 वर्ष के किशोरों की शिक्षा और सशक्तीकरण के लिए ‘दूसरा दशक’ नामक प्रोजेक्ट की शुरुआत की. इस प्रोजेक्ट ने राजस्थान के पिछड़े ग्रामीण इलाक़ों में सबसे कमज़ोर समूह, यानी किशोर और किशोरियों को अपने केंद्र में रखा. उनमें अब तक नज़रंदाज़ की गई ज़रूरतों को समझा. विकास की नीतियों और उन्हें लागू करने के बीच की खाई को पाटने में मदद की. समानता, ग़ैर-भेदभाव और न्याय के मूल्यों पर आधारित सामुदायिक भागीदारी के ज़रिए नए सामाजिक प्रबंध को निर्मित करना ही दूसरा दशक का लक्ष्य है. यह स्कूल व्यवस्था से बाहर हो चुके युवा किशोर-किशोरियों को समग्र शिक्षा का दूसरा मौक़ा देता है; तथा युवा एवं महिला नेतृत्व को सामाजिक बदलाव के लिए तैयार करता है.

Sadbhavana-Trust

सद्भावना ट्रस्ट (लखनऊ, उत्तरप्रदेश) सामाजिक बदलाव और लैंगिक रूप से न्यायिक समाज को गढ़ने के विचार से काम करती है. सद्भावना ट्रस्ट किशोरियों, युवा और वयस्क महिलाओं को मज़बूत बनाने और उनमें नेतृत्व के गुण पैदा करने का प्रयास करती है. इस काम को यह नारीवादी नज़रिए से सीधे सामुदायिक हस्तक्षेप, शोध, ट्रेनिंग, पाठ्य सामग्री के विकास और वकालत के ज़रिए अमल में लाती है. सद्भावना युवा महिला नेतृत्व कार्यक्रम, जेंडर दृष्टिकोण और तकनीकी कौशल विकसित करने का मिश्रण है. सद्भावना ट्रस्ट किशोरियों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को मद्देनज़र रखते हुए उन्हें मज़बूत बनाती है, ताकि वे पितृसत्ता को चुनौती देने, अपने हालातों में सुधार, अपने समुदाय को प्रभावित करने और दुनिया का सामना करने लायक़ बन सकें.

Vikalp-logo

विकल्प (उदयपुर, राजस्थान) एक नॉट-फ़ॉर-प्रोफ़िट, संस्था है, जो लैंगिक समानता और नेतृत्व उभारने के लिए युवाओं के साथ 2003 से काम कर रही है. इसने राजस्थान के 12 जिलों में, लड़कियों की शिक्षा तक पहुंच के मुद्दों समेत कई अभियान चलाए हैं. विकल्प, लैंगिक हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और समानता, न्याय तथा शांति को बढ़ावा देने वाले मुद्दों पर उदयपुर के 510 गांवों में महिलाओं, युवा लड़के-लड़कियों के लिए मंच तैयार करती है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी विकल्प के काम को पहचान मिली है. इसे 2020 में, ‘आई एम शक्ति’; 2017 में, राजस्थान गरिमा अवार्ड; तथा 2013 में, लो’रियल पेरिस फ़ेमिना वुमन अवार्ड से नवाज़ा गया.

FACE-Logo

फ़ाउंडेशन फ़ॉर अवैयरनेस, काउंसिलिंग एंड एजुकेशन या फ़ेस (पकूर, झारखंड) राज्य के उत्तर-पूर्व में स्थित है, जिसकी सीमा पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद से लगती है. इसका मक़सद स्थानीय कमज़ोर तबक़ों में शिक्षा, जागरूकता और समुदाय-आधारित आय को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों के ज़रिए एक शिक्षित और मज़बूत समाज की रचना के विचार को बढ़ावा देना है. 2001 से फ़ेस पकूर जिले के छः ब्लॉकों में काम कर रहा है. इसका फ़ोकस स्थानीय आदिवासी समुदायों (संथाल और पहाड़िया) के बच्चों, महिलाओं और युवाओं पर है. इसके साथ-साथ यह क्षेत्र के मुसलमान अल्पसंख्यकों के साथ भी काम करता है.

अंकुर सोसाइटी फॉर आल्टरनेटिव्स इन एजुकेशन

तीन दशकों से भी अधिक समय से, अंकुर संस्था दिल्ली में बच्चों, युवाओं, और हाशिए पर मौजूद मोहल्लों के समुदायों के साथ सीखने-सिखाने की पद्धति में नए-नए तरीकों को अपनाने से जुड़े प्रयोग कर रही है.  अंकुर का उद्देश्य शिक्षा द्वारा उनका सशक्तीकरण करना है जो हाशिए पर है ताकि वे अपनी ज़िंदगी के अनुभवों और संदर्भों पर विचार कर सकें और गौरव की ज़िंदगी के लिए संघर्ष कर सकें.

अंकुर संस्था हाशिए पर मौजूद व्यक्तियों को उनके सामर्थ्य के आधार पर देखती है. उन्हें सहकर्मियों और साथ सफर करने वालों के रूप में देखते हुए उनके साथ काम करती है और मिलजुल कर सीखने-सिखाने के स्थानों का निर्माण करती है.

दक्षिणपुरी, खिचड़ीपुर, सुंदरनगरी, LNJP कॉलोनी, सावड़ा घेवड़ा में इनके कई केंद्र (सेंटर्स) चल रहे हैं. यहां चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों में लर्निंग कलेक्टिव, क्लब, पुस्तकालय, युवा औरतों के कलेक्टिव, मोहल्ला मीडिया लैब, समुदाय आर्काइव और महफ़िलें शामिल हैं. वे इलाके/ मोहल्ले की बौद्धिक और सामाजिक ज़िंदगी को आधार बनाते हुए आगे बढ़ते हैं और शहरों में बदलाव लाते व्यक्तियों को समर्थन देते हैं.

पीपल्स आर्काइव फॉर रुरल इंडिया (PARI)

PARI भारत में एक डिजिटल पत्रकारिता प्लेटफ़ार्म है जिसने ग्रामीण भारत को ऑनलाइन लाने में एक अहम भूमिका निभाई है. PARI का विज़न है कि चीज़ों को आर्काइव किया जाए और पत्रकारिता के मूल्यों की निरंतरता बनी रहे. इसकी शुरुआत दिसंबर 2014 में अनुभवी पत्रकार पालागुम्मी साईनाथ द्वारा की गई. जो ‘द हिन्दू’ में ग्रामीण मामलों के संपादक रह चुके हैं. उन्होंने ‘एव्रीबॉडी लवज़ ए गुड ड्राउट’ नामक किताब लिखी है और उन्हें कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया गया है. PARI की कहानियां 13 भारतीय भाषाओं में अनुवादित की गई हैं.

इस लेख का अनुवाद राजेन्द्र नेगी ने किया है।

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