अर्चिता रघु के लेख

अर्चिता रघु फ्रीलांस लेखक हैं जो बेंगलुरु में रहती हैं.

अपनी गली तो दिखाओ ज़रा

आशियान का रंग-ढंग किसी स्काउट जैसा है. वह शाहदरा की वेलकम कॉलोनी की 15-20 दूसरी लड़कियों और औरतों के साथ गंदगी और कूड़े-कचरों से अटी पड़ी गलियों से गुज़रती हुई आगे बढ़ रही है, जिसके दोनों तरफ बने घरों की दीवारें जर्जर हो चुकी हैं, प्लास्टर झड़ चुके हैं और ईंटों ने ताकझांक करना शुरू कर दिया है.

औरतों के श्रम को कैसे नापा जाए?

नारीवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा लंबे समय से श्रम को मापने के लिए काम के घंटों, ख़ासकर, महिलाओं के काम के घंटों की गणना को मापदंड के रूप में पैमाना बनाने पर ज़ोर दिया गया है. इस महामारी के दौरान ये नज़रिया और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है.

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