आस्था बंबा के लेख

आस्था बंबा दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य के अंतिम वर्ष की छात्रा हैं. वे जेंडर, कैंपस स्पेस और छात्र आंदोलनों जैसे विषयों पर रिसर्च करना पसंद करती हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.

“मुझे अंग्रेज़ी का कॉम्प्रमाइज़ शब्द पसंद नहीं है. यह कठोर सा लगता है, लेकिन समझौता – इसमें कुछ बहाव है, कुछ बदलाव है.”

हंसा थपलियाल, एक फिल्ममेकर हैं, और गुड़ियाएं भी बनाती हैं. द थर्ड आई लर्निंग लैब के साथ मिलकर उन्होंने एक एनीमेशन फिल्म बनाई जो हिंसा की शब्दावली के तैयार होने के दौरान की गई वर्कशॉप की रिकॉर्डिंग्स को आधार बनाकर तैयार की है. ये फिल्म रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सामान – कपड़ों के टुकड़ों, सुई-धागे और इंसानी आवाज़ों के स्वर के साथ काम करती है, ताकि उस रंगीन चलचित्र जैसे संसार को जीवंत किया जा सके जिसमें महिलाओं के समझौते बसे होते हैं.

बेबी हालदार के साथ एक बातचीत

साल 2002 बहुत सारी घटनाओं के लिए इतिहास में दर्ज है. उन्हीं में से एक असाधारण घटना थी ‘आलो आंधारि’ किताब का प्रकाशन. इस किताब के शब्दों ने घरेलू कामगारों के साथ होने वाली हिंसा और गरीबी में डूबी एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा खोलने का काम किया जिसके बारे में शायद ही कभी कोई बात होती थी.

मज़दूरों के स्वास्थ्य के लिए मज़दूरों का अपना अस्पताल

जन स्वास्थ्य व्यवस्था सीरीज़ में द थर्ड आई के साथ बातचीत में डॉ. प्रियदर्श तुरे ने विकेन्द्रीकृत एवं कम्युनिटी द्वारा संचालित स्वास्थ्य मॉडल और उसकी प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की.

हेल्प प्लीज़!

“19 अप्रैल, रात 11 बजे फ़ेसबुक ग्रूप पर आए एक मेसेज पर मेरी नज़र रूकी. मैंने देखा वो मैसेज एक घंटे पहले लिखा गया था. रिक्वेस्ट लखनऊ से आ रही थी. उन्हें अपने एक करीबी के लिए अस्पताल में ऑक्सीजन बेड की ज़रूरत थी. उनका रिक्वेस्ट था ‘कोई भी जानकारी हो तो बताएं.’

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