तबस्सुम अंसारी के लेख

तबस्सुम अंसारी हुसैनाबाद, लखनऊ की रहने वाली हैं. उन्हें फ़िल्म और फोटो बनाने में बहुत रुचि है. वास्तविक और काल्पनिक सोच में क्या रिश्ता है, ये एक दूसरे को कैसे निखारते हैं, इनके खेल से कैसे नए-नए मायने उभर कर आते हैं - इन सब प्रक्रियाओं और सवालों पर तबस्सुम का रियाज़ जारी है. तबस्सुम सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी हैं और द थर्ड आई की पूर्व डिजिटल एजुकेटर हैं.

एक नदी थी, दोनों किनारे थाम कर बैठी थी

तबस्सुम की एक दोस्त ने उसे नदी के बारे में बताया था. “ नदी के पास पहुंचकर जो पहली चीज़ मैंने देखी वो था कूड़ा. मैंने सोचा अब मैं क्या शूट करूं! पर फिर मैं एक जगह शांति से बैठकर आसपास की हलचलों को देखने लगी, उन्हें महसूस करने लगी.

पार्क में रोमांस करना मना है

कितना अजीब है कि घरवाले एक तरफ लड़का-लड़की को आपस में मिलने से रोकते हैं और फिर एक दिन उनकी शादी तय कर उन्हें साथ में एक कमरे में बंद कर देते हैं कि – अब तुम्हें जो करना है करो लेकिन ये ही लड़का- लड़की अपनी मर्ज़ी से एक-दूसरे से नहीं मिल सकते.

देखो मगर प्यार से

दफ्तर जाते हुए, मंडी क्रॉसिंग चौक से आप रोज़ गुज़रती हैं. खचाखच भीड़ और गाड़ियों के शोर से होते हुए. सड़क पर आंख गड़ाए, निकलने की जल्दी में क्या देखा-अनदेखा हो जाता है, इसके बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं होता.

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