नारीवादी

प्रसव और गरिमा: स्वास्थ्य के नाम पर गर्भवती महिलाओं के साथ हिंसा

इरावती, इंदौर के पास के छोटे से गांव बेगमखेडी की रहने वाली है. जब वह अपनी पहली डिलीवरी के लिए इंदौर के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुई, तो उसे उम्मीद नहीं थी कि पहली संतान के होने की खुशी, इतनी जल्दी ज़िंदगी भर के सदमे में बदल जाएगी.

सुनीता प्रजापति: अपराध और खामोशी के बीच क्राइम रिपोर्टिंग

F रेटेड के इस सीज़न फिनाले में मिलिए ग्रामीण डिजिटल न्यूज़चैनल ‘खबर लहरिया’ से जुड़ी पत्रकार सुनीता प्रजापति से, जो अपराध और खामोशी के बीच क्राइम रिपोर्टिंग करने की अपनी यात्रा पर हमें साथ लेकर जाती हैं. उत्तर-प्रदेश के महोबा ज़िले से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाली सुनीता के काम का विस्तार दिल्ली जैसे महानगर तक फैला है.

सफीना नबी: स्वतंत्र पत्रकारिता की धुन में रमीं

F-रेटेड इंटरव्यूह में आगे बढ़ते हुए हम पहुंच चुके हैं अपने पांचवें एपिसोड में जहां इस बार हमारे साथ हैं एक ऐसी पत्रकार जो कभी किसी न्यूज़रूम या एडिटोरियल मीटिंग का हिस्सा नहीं रहीं. उनके लिए स्वतंत्र पत्रकारिता ही वो रास्ता है जिसके ज़रिए वो अपनी बात अपने दम पर रख सकती हैं.

“सब जानता हूं कि तुम लोग क्या खाते हो, क्या नहीं.”

‘खाना’ शब्द सुनते ही भूख सी लगने लगती है. तरह-तरह के व्यंजन और पकवान दिमाग में घूमने लगते हैं. लेकिन मेरे लिए यह जीभ, पेट या मन की भूख को मिटाने का साधन भर नहीं है. इसके साथ मेरा एक अजीब ही रिश्ता है. इसे लेकर मेरे दिल और दिमाग में एक डर सा बैठा रहता है, या यूं कहें कि यह डर बिठाया गया है. ये वो डर है जो बचपन से अब तक गया नहीं.

खौफ!

पूर्वी दिल्ली का इलाका खिचड़ीपुर, यहां छह नंबर की गली में रहने वाली नौ साल की एक लड़की किडनैप हो गई. न जाने कौन उसे उठा कर ले गया. इस खबर को सुनकर आठ नंबर की गली में रहने वाली सातवीं क्लास की काव्या के होश गुम हो गए. उस वक्त उसकी मम्मी घर पर नहीं थी. आज वह आएंगी भी देर से.

हमारी देह हिंसा को कैसे देखती और महसूस करती है?

साल 2021 का ग्यारहवां महीना यानी नवंबर. इंदौर, मध्य प्रदेश का शहर. इंदौर में किसी मकान के एक कमरे में साथ बैठीं ग्यारह महिलाएं. कमरे में जिज्ञासा और घबराहट का एक मिश्रण था जो कमरे में बैठी महिलाओं के चेहरों पर भी झलक रहा था.

नेहा दीक्षित: “क्राइम सीन की जांच कर, अलग-अलग कड़ियों को जोड़ना खोजी पत्रकारिता है.”

F-रेटेड इंटरव्यूह के चौथे एपिसोड में हमारे साथ हैं नेहा दीक्षित, जो एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं. उन्होंने कई विभिन्न माध्यमों में चर्चित एवं प्रसिद्ध संस्थानों के साथ काम किया है. इसमें प्रमुख हैं: कारवां, आउटलुक, द वायर, न्यूज़मिनिट, अल जज़ीरा टीवी, और वॉशिंगटन पोस्ट.

निधि सुरेश: ब्रेकिंग न्यूज़ के दौर में निःशब्द और मौन सवालों का क्या मतलब है?

F – रेटेड इंटरव्यूह के तीसरे एपिसोड में मिलते हैं निधि सुरेश से जो हमें लखीमपुर और हाथरस ले जाती हैं और घटनास्थल पर अपराध के बाद होने वाली हिंसा को अपनी पत्रकारिता के ज़रिए दिखाती हैं. वह स्थानीय पत्रकारों के साथ काम करने के लिए रणनीतियां आज़माती हैं और धीमे और शांत प्रश्नों के महत्त्व पर प्रकाश डालती हैं, तब भी (और विशेष रूप से) जब पत्रकारों की भीड़ एक कहानी को कवर कर रही हो.

नीतू सिंह: एक मुकम्मल कहानी के पीछे क्या-क्या होता है?

F रेटेड इंटरव्यूह के दूसरे एपिसोड में मिलिए नीतू सिंह से जो एक स्वतंत्र पत्रकार, मीडिया प्रशिक्षक और शेड्स ऑफ रूलर इंडिया यू-ट्यूब चैनल की संस्थापक हैं. पत्रकारिता के अपने करियर की शुरुआत ग्रामीण मीडिया संस्थान ‘गांव कनेक्शन’ से करने वाली नीतू अपने काम के ज़रिए इस सोच को चुनौती देती हैं कि एक रिपोर्टर का काम सिर्फ़ घटना के बारे में जानकारी देना भर है.

प्रियंका दूबे: एक क्राइम रिपोर्टर की दुनिया

F – रेटेड इंटरव्यू के पहले एपिसोड में मिलिए द्विभाषी लेखक एवं पत्रकार प्रियंका दूबे से. इस एपिसोड में प्रियंका, 14 साल के अपने खोजी रिपोर्टिंग करियर के दौरान हिंसा, सामाजिक न्याय और मानवधिकारों से जुड़े मामलों पर व्यापक स्तर पर लिखने, खुद की तैयारी, जीवन पर उसके प्रभाव और कविताओं के साथ, पर विस्तार से बातचीत कर रही हैं.

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