खौफ!

आसपास की घटनाएं बच्चों को किस तरह प्रभावित करती हैं, पढ़िए एक बच्ची की कलम से

चित्रांकन: आलिया सिन्हा (@IG: @minor_grace)

23 फरवरी 2021 शाम के छह बजे मोहल्ले में एकाएक शोर होने लगा.
“अरे! लड़की किडनैप हो गई.”
“क्या कह रही हो?”
“अरे! कौन लड़की है?”

पूर्वी दिल्ली का इलाका खिचड़ीपुर, यहां छह नंबर की गली में रहने वाली नौ साल की एक लड़की किडनैप हो गई. न जाने कौन उसे उठा कर ले गया. इस खबर को सुनकर आठ नंबर की गली में रहने वाली सातवीं क्लास की काव्या के होश गुम हो गए. उस वक्त उसकी मम्मी घर पर नहीं थी. आज वह आएंगी भी देर से.

तभी अचानक कहीं पायल बजने की आवाज़ सुनाई दी. शायद मम्मी हो ! गेट खोलते ही वो मम्मी से लिपटकर बोली, “मम्मी, डर लग रहा है.” मम्मी ने पूछा, “क्या हुआ? डर क्यों लग रहा है?” काव्या ने मम्मी को पूरी खबर बताई. मम्मी ने कहा, “अरे! यह मुझे पता है, रास्ते में आते वक्त गली में पुलिसवाले दिखाई दिए. और आसपास की औरतें भी इसी के बारे में बातें कर रही थीं.” इस खबर के बहाने मम्मी काव्या को समझाने, डराने लगीं, “तभी तो कहती हूं, बाहर मत घूमा करो, अभी तो हल्की-हल्की सर्दियां हैं इसलिए रोड और गली में चहल-पहल रहती है लेकिन आने वाली गर्मियों में रोड और गली सुनसान रहेगी, खास कर दोपहर में.” काव्या ने डरते हुए कहा, “मम्मी, अब मैं एक हफ्ते ट्यूशन नहीं जाऊंगी.“

रात इसी माहौल में कट गया. अगली सुबह बादल आसमान घेरे हुए थे. काव्या छत पर खड़ी-खड़ी उस लड़की के बारे में ही सोच ही रही थी. तभी बगल वाले घर में उसकी दोस्त सुहाना की मम्मी पूनम से कह रही थीं, “हे भगवान! कौन था वो बुज़दिल जो बेचारी मासूम लड़की को ले गया. उसके गरीब मम्मी-पापा पर क्या बीत रही होगी! वे तो कल से ही पुलिस चौकी के चक्कर काटे जा रहे हैं. आखिर कहां होगी वह लड़की! न जाने उसको किसी ने खाना भी दिया होगा या नहीं.”

काव्या ने उनकी बातें सुनते हुए नीचे गली में झांका तो एक और औरत सब्ज़ी लेते हुए अपने पति से इसी के बारे में बात कर रही थी. वो कह रही थी, “पता नहीं वे दरिंदे उसके साथ क्या कर रहे होंगे? बेचारी लड़की तो यही सोच रही होगी कि आखिर मैं उस रोड पर खेलने क्यों गई. अब हमारे यहां खेलने की जगह भी तो रोड ही है.” तभी उसका पति बोला, “लड़की का बाप होना आसान भी तो नहीं है. अब महिमा को छह नंबर गली में ट्यूशन के लिए नहीं भेजूंगा.”

छह नंबर गली सुनते ही काव्या के रोंगटे खड़े हो जा रहे थे. अब तो सोते-जागते, खाते-पीते पूरा खिचड़ीपुर इसी हादसे के बारे में बात कर रहा था. पिछले कुछ सालों में इस तरह के हादसे लगातार होते चले जा रहे हैं. साल 2012 में हुए निर्भया केस के पहले हम टीवी पर इस तरह की डरावनी खबरें सुनते थे. अब तो आंखों के सामने सब घट रहा है. धीरे-धीरे यह साफ होता जा रहा है कि वे लड़के बाहर के न होकर मोहल्ले के ही हैं. काव्या जब भी अकेले बैठती तो उसे उस लड़की की ही याद आती. उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी अपनी कोई सगी हो.

लड़की को खोए हुए दो दिन हो चुके थे. काव्या के पापा रेहड़ी लेकर कपड़े बेचने गए हुए थे. वो कह गए थे कि शाम के सात बजे तक आएंगे. तभी, चौथे फ्लोर पर अचानक बेल बजने की आवाज़ आई. काव्या ने नीचे देखा तो पापा थे. ज़ीने से उतरते हुए काव्या मन ही मन सोच रही थी कि पापा अचानक दिन में ही कैसे आ गए. पापा की आवाज़ आई, “काव्या जल्दी नीचे आ, सामान रखना है.” “आती हूं पापा! क्या हुआ? इतने हांफ क्यों रहे हो?” उसने पूछा. “अरे जो लड़की किडनैप हुई थी उसकी बॉडी पुल के पास मिली है. पूरे रोड पर पुलिस खड़ी है. सभी सड़कों को बंद कर दिया गया है, इसलिए मैं जल्दी लौट आया.”

“पापा! ये क्या हो गया! मुझे तो उम्मीद थी कि वह लौट आएगी. यह तो बहुत बुरा हुआ…मुझे बहुत डर लग रहा है.” “काव्या पहले तो तू सामान लेकर ऊपर जा.” ऊपर पहुंचकर पापा ने कहा, “लगता है उसको जिस दिन उठाया उसी दिन सबकुछ करके मार दिया, ताकि लड़की किसी को कुछ न बता पाए. आज उसकी बॉडी मिली है.”

काव्या बहुत बुरी तरह से डरी हुई थी. दिन-रात सोचती कि आखिर लड़की ने किसी का क्या बिगाड़ा था. दिन में पढ़ते वक्त, टीवी देखते वक्त, खाना खाते वक्त उसके दिमाग में यही सब चलता रहता.

शाम में काव्या के फोन पर एक मैसेज आया. यह मैसेज उसकी सहेली निशा का था. निशा ने अपने फोन पर नया स्टेट्स लगाया जो धुंधला-सा था. गौर से देखने पर काव्या को समझ आ गया था कि किसी सी.सी.टी.वी कैमरे का वीडियो है. ‘अरे! यह तो वही गली है जहां से लड़की किडनैप हुई थी.’

‘हां, हां ये तो वही जगह है.’ रोड पर चलती गाड़ियां, दिन का समय था. तभी वीडियो में लड़की खेलती-खेलती एक आदमी के पास आई. कुछ सुनाई नहीं दे रहा था पर वह कुछ कह कर वहां से चली गई. एक आदमी हाथ हिलाता हुआ उस लड़की को बुलाता है. वह अपनी वैन को एक कोने से बाहर निकालता है फिर पता नहीं कहां चला जाता है.

काव्या ने तुरंत निशा को फोन लगाया और पूछा, “ओए, तेरे को कहां से मिला यह वीडियो?” “अरे। किसी ने सोशल मीडिया पर इसे डाला है. मेरे पास आई तो मैंने तेरे को फॉरवर्ड कर दी. तुझे एक बात भी बतानी थी कि वह लड़की खिचड़ीपुर पहाड़ी की रहने वाली है. वे चार बहनें हैं. मां बीमार रहती है और पापा एमसीडी में काम करते हैं. वह लड़की जो किडनैप हुई, वह सरकारी स्कूल में कक्षा पांचवीं में पढ़ती थी.” काव्या ने पूछा, “तुझे यह सब कैसे मालूम?” “अरे इसमें क्या? लड़की की बॉडी मिली तो लोगों ने सोशल मीडिया पर यह सब भी अपलोड कर दिया. फिर उसका वीडियो शेयर होने लग गया. अब पुल के पास इंसाफ मांगती भीड़ का वीडियो भी है. तुझे भेजूं?”

कई दिनों तक खिचड़ीपुर में पुलिस का पहरा लगा रहा. लोग इकट्ठे होकर इंसाफ के लिए नारे लगाए जा रहे थे, “फांसी दो! फांसी दो. उन चारों को फांसी दो.”

घटना के बाद चारों तरफ से खिचड़ीपुर की सड़कों को बंद कर दिया गया था. रात में मम्मी ने बताया कि वह बड़ी मुश्किल से आई है. पूरी गली में पुलिस ही पुलिस दिख रही थी. चार दिन से टी.वी. में सिर्फ यही चल रहा था. नेताओं का आना-जाना भी शुरू हो गया था. साथ ही साथ छह नंबर गली के पार्क में संस्थाओं के लोग भी आने लगे थे. उस लड़की के घर की फोटो खींची जा रही थी.

बाकि घरों की सभी लड़कियों के मन में यही डर सता रहा था अब उनका बाहर खेलने जाना बंद हो जाएगा. वो बच्ची भी तो खेलने ही गई थी.

आरुषि, अंकुर कलेक्टिव के साथ जुड़ी हैं. अंकुर के साथ जुड़ने के बाद चकमक पत्रिका (2021) में अस्पताल और कोरोना का डर शीर्षक से उनकी एक लंबी कहानी प्रकाशित हुई. फिलहाल वह दिल्लीवाली शीर्षक से एक और कहानी पर काम कर रही हैं.

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