चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर
वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.
द थर्ड आई होम » कबीर
वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.