यौनिकता और अवचेतन शृंखला

अवचेतन और यौनिकता शृंखला l भाग 3: तर्कसंगति की सीमाएं

जब हम या हमारे दोस्त प्यार में लिए गलत फैसलों के लिए खुद को कोसते हैं, तो ऐसी हालत को हम अक्सर मनोविश्लेषक ब्रूस फिंक के ‘पुल पैराडाइम’ कहे जाने वाले नज़रिए से देखते हैं. प्रेम के किस्से इस तरह गढ़े गए हैं कि हम मान लेते हैं कि दूसरे शख्स में कुछ तो है जो हमें उनकी ओर “खींचता” है. इस ‘पुल पैराडाइम’ में, हम मानते हैं कि इसमें कशिश की खास भूमिका होती है, जो यह तय करती है कि हम किसके प्यार में पड़ेंगे या किसके प्रति आकर्षित होंगे.

अवचेतन और यौनिकता शृंखला l भाग 2: कमी

मेरे लिए दिलो-दिमाग या अवचेतन (गाफिल), ये उन सारी हकीकतों का एक दायरा है, जिसे सीधे-सीधे न महसूस किया जा सकता है, न सोचा जा सकता है. इसे सीधे सुना, देखा या छुआ भी नहीं जा सकता. फिर भी यह एक ज़ोर है जो बहुत ही ताकतवर है, और जो निरंतर हर उस चीज़ पर असर करता है, जिसे हम महसूस करते हैं, सोचते हैं और समझते हैं.

यौनिकता में मज़ा और खतरा_मनोविश्लेषण

सर जो तेरा चकराए…यौनिकता और अवचेतन शृंखला l भाग 1: परिचय

हमारी ज़िंदगी में मज़ा और खतरा एक तरह से गड्ड-मड्ड है. ये हमारे भीतर भी है और आसपास भी. लज़ीज या नागवार- ये ज़िंदगी के पहलू हैं. ये हमें चौंकाते हैं. इस हैरानी को पहचानना, इसे समझना ज़रूरी है. आखिर मज़ा और खतरा इतने गहरे क्यों जुड़े हुए हैं? एक दूसरे में गुथे क्यों है? इसे समझने के लिए मैं अपनी ज़िंदगी के उदाहरणों को आपके साथ साझा करना चाहूंगी. मज़ा और खतरा के अलग-अलग होने या एक दूसरे के विपरित होने की समझ को चुनौती देते हैं.

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