गतिशीलता की राहों पर सांप भी हैं और सीढ़ियां भी
हममें से आठ — बस्ती की चार लड़कियां और चार उम्रदराज महिलाएं — अलग-अलग जगहों की कल्पना करते हुए कमरे में घूम रही हैं. हम कभी खुले मैदान में चल रही हैं तो कभी मेट्रो पकड़ रही हैं. कभी हम ख़ुशी और उल्लास के मारे चीख रही हैं, चिल्ला रही हैं तो कभी अचानक से शुरू हो गई बारिश में भीग रही हैं.