लड़कियां या औरतें समझौता करना कहां से सीखती हैं? कैसे वे मायके और ससुराल में सभी को खुश रखने के लिए अपनी खुद की ज़िंदगी को होम करने के लिए तैयार हो जाती हैं? सच यह है कि पैदा होने से लेकर बड़े होने तक अपने आसपास मां, बहन, दादी, चाची, नानी,,,इन सभी को वे समझौता करते ही देखती हैं. और इस तरह घर-परिवार की खुशी के लिए अपने आप ही वे समझौता करने लगती हैं. क्या होता है जब कोई औरत इस चक्र को तोड़कर खुद के लिए खड़ी होती है? उस समय कौन उसका साथ देता है?
केसवर्कर्स डायरी के दूसरे एपिसोड में उत्तर-प्रदेश के ललितपुर की एक केसवर्कर अपने जीवन की कुछ कठिन सच्चाइयों को हमारे सामने रख रही है. जानिए कैसे इस कठोर ज़िंदगी में भी वो अपने लिए ठंडी फुहारें ढूंढ लाती हैं.
केसवर्कर्स डायरी, एक ऑडियो शृंखला है जो जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े मामलों पर काम करने वाली 12 केसवर्करों के अनुभवों से निकलकर आई है. उत्तर-प्रदेश के ललितपुर, बांदा और लखनऊ ज़िले में काम करने वाली ये सभी केसवर्कर हत्या, बलात्कार, अपहरण, बच्चों के यौन शोषण, दहेज हत्या और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर काम करती हैं.
यह ऑडियो शृंखला ‘केसवर्कर्स द्वारा हिंसा की शब्दावली’ का एक हिस्सा है जिसमें जेंडर आधारित हिंसा से जुड़े उन महत्त्वपूर्ण शब्दों को शामिल किया गया है, जिनकी मदद से ज्ञान और समझ का निर्माण होता है.
इस पॉडकास्ट को शबीना मुमताज़ ने आवाज़ दी है.
प्रोजेक्ट निर्माता- दिप्ता भोग और आस्था बाम्बा
प्रोजेक्ट फेसिलिटेटर – अपेक्षा वोहरा
पॉडकास्ट निर्माता – माधुरी आडवाणी
स्क्रिप्ट सहायक – आस्था बाम्बा, दिप्ता भोग, माधुरी आडवाणी, सुमन परमार और अपेक्षा वोहरा
आवरण चित्र – शिवम रस्तोगी