गौरव ओगाले ने लॉकडाउन के दौरान अन्य कलाकारों के साथ मिलकर 12 शॉर्ट फिल्मों की शृंखला बनाई है. ‘टुगेदर वी कैन’ इसी शृंखला का हिस्सा है. इसके लिए राजकुमार राव ने अपनी आवाज़ दी है और परितोष त्रिपाठी ने इसकी स्क्रिप्ट लिखी है. “ये इतनी छोटी है कि इंस्टाग्राम पर अगर आपने पलक भी झपकाई तो शायद इसे देखने से चूक जाएं. इतनी छोटी कि आपकी तेज़ी से स्क्रोल करती उंगलियों से स्पर्धा कर सकती है.” ये आज वाइरल हो चुकी है, बड़ी संख्या में लोग इसे साझा कर रहे हैं.
हमने गौरव से उनकी कार्यविधि के बारे में बताने को कहा. साथ ही हमने उनसे कहा कि वे TTE के फील्ड फैलोज़ को समझने में सहायता करें कि किस तरह वे जो भी देख रहे हैं उसमें एक खास नज़रिया विकसित कर सकते हैं.
वह कौन-सी एक भावना थी जिसे आप लोगों तक पहुंचाना चाहते थे? या कोई एक ऐसी मुख्य चीज़ जो इस शृंखला को देखने वाले अपने साथ ले जा सकते हैं?
मेरे ज़हन में जो विचार चल रहे थे वे प्रवासी संकट के चलते, किसी एक ख़ास चीज़ के बारे में नहीं थे. मुझे लगता है जब आप किसी विशेष जगह पर रहते हैं, आप सिर्फ उस जगह का ही हिस्सा नहीं होते बल्कि लोगों, जगह, संस्कृति, राजनीति, भाषा – उन सब का हिस्सा होते हैं. और उसका भी जो भी इन्हें परिभाषित करता है, सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं बल्कि भावनात्मक और बौद्धिक रूप से भी. जब आप अचानक उस जगह से अलग हो जाते हैं या आपको वह जगह छोड़ने के लिए बोल दिया जाता है या आप उस जगह को छोड़ने का फैसला लेते हैं तो आप उससे जुड़े होने का एहसास (sense of belonging) भी खो देते हैं जिसे आप अपने लिए या अपने समुदाय के लिए सालों से बुन रहे थे. यह एहसास कुछ ऐसा था जो मेरे साथ रह गया.
मैं चाहता था कि लोग इसे समझें और महसूस करें कि जब ये जुड़े रहने का एहसास नहीं रहता है तो कैसा लग सकता है.
प्रवासी संकट के दौरान ऐसी कौन-सी पहली तस्वीर थी जो आपको याद रह गई? कुछ ऐसा जो इस शॉर्ट फिल्म को बनाने के दौरान बार-बार आपको याद आता रहा हो?
एक तस्वीर है जो हमेशा मेरे साथ रहेगी. वह तस्वीर एक छोटे बच्चे की है जो सूटकेस पर सो रहा है. मेरे दिमाग़ में प्रवासियों की जो छवि है वो लाखों पैरों की है जो लक्ष्यहीन चले जा रहे हैं. उन्हें पता नहीं वे कहां जा रहे हैं क्योंकि हर किसी के पास वापस जाने को घर भी नहीं है.
कितनी ही तस्वीरें हैं जिनमें लोग चल रहे हैं. एक-दूसरे को कंधे पर उठाए हैं या कई ऐसे परिवार थे जो दिनों महीनों तक पैदल चले वहां पहुंचने के लिए जहां वे जाना चाहते थे. इस स्थिति में दो तरह की चीज़ें लगातार आपके दिमाग़ में चलती रहती हैं. एक,
आपके दिमाग़ में है कि आप अपने घर वापस जा रहे हैं मगर साथ ही यह भी है कि जो आपने यहां बनाया था उसे पीछे छोड़ दिया. तो एक तरह से आप घर की सही परिभाषा समझने की कोशिश कर रहे हैं.
ये भी देखें: आशुतोष पाठक द्वारा लिखित, निर्देशित और एनीमेट की गई फिल्म ‘तस्वीर’ @daffymonk
जो चित्रकारी या तस्वीरों के ज़रिए खुद को अभिव्यक्त करते हैं या विश्व की व्याख्या करते हैं वे चीज़ों को और बारीकी से देख सकें इसके लिए आप उन्हें क्या सलाह देंगे?
व्यक्तिगत रूप से, अगर मैं किसी चीज़ को देखता हूं, चाहे वे पुरानी तस्वीरें हों या कुछ ऐसा जिसे मैंने पहले न देखा हो तो मैं उसे एक परिदृश्य में देखने की कोशिश करता हूं. जैसे अगर मैं मग को देख रहा हूं तो मैंने इसे कहां से खरीदा था? क्या इसे किसी ने मुझे दिया था? पहली बार कब मैंने इस मग को देखा था? क्या इससे जुड़ी कोई कहानी थी? क्या ये मुझसे कुछ कहता है? ये इस ख़ास रंग का क्यों है और मेरे घर में इतने सालों से क्यों है? क्या इसका कुछ सांस्कृतिक या भावनात्मक महत्त्व है? आप जितना विश्लेषण करेंगे उतनी ही गहराई तक जाएंगे.
कार्यशाला
1. ये बाहर खुले में की जाने वाली सामूहिक गतिविधि है. समूह को कोई ख़ास विषय या शब्द दें. उनसे कहें कि वे चीज़ों में संबंध ढूंढें. समूह को कहें कि वे आपको एक वस्तु लाकर दें जो उन्हें एक ख़ास एहसास दिलाती है या उस कहानी के अनुरूप है जिसे आप विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे– अगर आप पूछें कि उन्हें आशा कहां दिखाई देती है, किस वस्तु में? हो सकता है कि कोई कुछ भी न लाए या अलग-अलग लोग कंकड़, पंख, फूल या पत्तियों समेत डालियां लेकर आएं. वस्तुओं को ख़ासियतें देना बहुत ज़रूरी है. ये मेरे लिए कहानी सुनाने की शुरुआत की तरह है.
2. अब, उन्हें 10 वजहें लिखने को कहें कि वे उन वस्तुओं को क्यों लेकर आए हैं? जैसे कोई ख़ास फूल, उसका रंग, उसकी बनावट उन्हें कैसा महसूस कराती है? अगर वह चीज़ उस परिदृश्य से निकाल दी जाए, तो वह और कहां सही बैठ सकती है? जब आप चीज़ों को उनकी जगह से हटा कर कहीं और रखना शुरू करते हैं, और फिर आप इनके चारों ओर नए विवरण गढ़ना शुरू करते हैं तब कला को नज़दीक से समझने के क्रम में होते हैं.
3. आप सबको किसी जगह की तस्वीर लेने को बोलें. इसे बड़े स्क्रीन पर दिखाएं और सबसे बोलें कि इस जगह का कोई काल्पनिक व्यक्तित्व रचें. उस जगह पर कौन रह रहा है? उस व्यक्ति का रोज़गार क्या है? वह व्यक्ति क्या करता है? उसके शौक क्या हैं या क्या करने में उसे मज़ा आता है? उनसे कहें कि उस तस्वीर से एक चीज़ उठाएं और उस पर कहानी बनाएं. वे उस जगह के बारे में विभिन्न विवरण बनाते रहें और अंत में आप वह तस्वीर लेने वाले से कहें कि उस जगह की वास्तविक जानकारी सबको दें. वास्तविक और काल्पनिक के अलग होते और मिलते बिन्दु एक मज़ेदार चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं.
- कौन सा ऐसा रंग है जो अन्य रंगों पर हावी है?
- इस घर में किस तरह की रंग योजना या पैलेट है?
- क्या इससे उस परिवार के लोगों के या उनके व्यक्तित्व के बारे में पता चलता है? प्रतिभागियों से कहें कि वे उस संरचना का गहराई से अध्ययन करें. हमारा व्यक्तिगत इतिहास ये जानने के लिए महत्त्वपूर्ण है कि हम कहां से आए हैं, क्या बने और क्या करते हैं? क्योंकि हमारा सफर हमारे अंदर से ही शुरू होता है. कला हमेशा हमारे अंदर से आनी चाहिए.
- अब संरचना से एक चीज़ हटा दें और सोचने की कोशिश करें कि अगर ये चीज़ यहां न होती, तो और कौन-सी संरचना में ये आसानी से ठीक बैठती है. फिर समझने की कोशिश करें कि क्यों वह चीज़ वहां उपयुक्त बैठ रही है और कैसे चीज़ों की खूबसूरती को संस्कृति और भाषा से अलग करके देखा और समझा जा सकता है.
इस लेख का अनुवाद सादिया सईद ने किया है.