अगस्त 18, 2023 के इंडियन एक्सप्रेस अखबार के फ्रंट पेज पर प्रकाशित एक खबर के अनुसार कश्मीर में हर 12 मिनट पर नशे की लत की वजह से एक युवा ओपीडी में पहुंचता है.
ये बात इतनी सामान्य हो गई है कि आमतौर पर ‘युवा’ और ‘लत’ शब्द कश्मीर में एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं.आज युवाओं के झुंड अगर झील के किनारे घूम रहे हों तो उन्हें अपनी पुरानी यादों में लौटते या तफरी करते हुए नहीं देखा जाता, बल्कि लोगों की निगाहें उन्हें गहन संदेह और चिंता के साथ देखती हैं. (जवां छु जवानिहुं लुत्फ तुलां, जैसाकि कश्मीर में कहा जाता है).
इन युवाओं की ज़िंदगी कैसी है? अपने आसपास नशे के कैसे अनुभव हैं और यह उनकी कल्पनाओं को किस तरह प्रभावित करते हैं? वो क्या है जो इन्हें ओपीडी तक लेकर आता है? इनकी ज़िंदगी जो जटिल, घनघोर तरीके से उलझी (और कभी इतनी सख्त की उसे बयां भी नहीं किया जा सकता है) है, ऐसे में उनकी हकीकत और सच्चाई के बारे में बात करने के कौन से रास्ते हो सकते हैं? और उनकी ज़िंदगी से हम व्यवस्थापरक अपराध के बारे में क्या जानते हैं?
कश्मीर में नशे से जुड़ी जो कहानियां हम जानते हैं वो पुरुषों के संघर्ष को केंद्र में रखती हैं. बमुशकिल ऐसी रिपोर्ट्स होंगी जो इस बात को रेखांकित करती हैं कि कैसे नशे की लत एक कश्मीरी महिला के अनुभवों को आकार दे रही है और उससे प्रभावित भी हो रही है.
यह कहानी, काल्पनिक पुनर्कथन, व्यक्तिगत बातचीत, डेस्क रिसर्च और ज़मीनी स्तर पर की गई रिपोर्टिंग एवं उससे निकली कहानियों से प्रभावित है. मैंने नशे की लत में फंसी एक युवा कश्मीरी लड़की के अनुभवों की परतों को उघाड़ने की कोशिश की है. ज़िंदगी के सफर के वो 12 मिनट, इनके भीतर वो क्या है जिसने नशे की तरफ उसे खींचा. ओपीडी तक पहुंचने के बीच उन बारह मिनटों के बीच में क्या-क्या होता है?
आइए मेरे हमसफर बनकर इस जवाब को तलाशते हैं.
मैं अब बाहर जा रही हूं.
बाहर निकलते हुए सीरत ने अपने पीछे घर का दरवाज़ा बंद किया और कुछ गुनगुनाने लगी ताकि जल्दी घर लौटने की मां की ताकीद उसे सुनाई न दे. यहां से हॉस्पिटल का रास्ता एक घंटे का है, जिसमें दो बसें बदलनी पड़ेंगी. उसके चेहरे पर एक काला मोटा रूमाल बंधा है, चेहरा पोपला सा और कंधे पर काली सलवार-कमीज़ ऐसे लग रही है जैसे किसी लकड़ी के बांस को कपड़े पहना दिए हों.
सीरत, अपनी मां के साथ श्रीनगर के बाहरी इलाके में रहती है. मां, कपड़ों की सिलाई कर जीवन के खर्चे पूरे करती है. बीस-पच्चीस साल की सीरत सिलाई के काम में मां का हाथ बंटाती तो है लेकिन उसकी ज़िंदगी जिस रास्ते चल रही है उससे वो बहुत ज़्यादा खुश नहीं है.
चलते-चलते सीरत मेन रोड के बस स्टैंड तक पहुंच गई. उसने कलाई पर बंधी घड़ी देखी, बारह बज रहे हैं. उसने ऊपर आसमान की तरफ देखा – बादल घिरे हुए हैं, पर तापमान रोज़ के मुकाबले अधिक गर्म है. राह चलते कुछ लोगों की नज़र उसके मोटे, स्कार्फ पर पड़ती है और वे उत्सुक्ता भरी निगाहों से उसे देखते हैं. बहरहाल बस आ गई, सीरत ने भरी बस में किसी तरह खड़े होने की जगह बना ली, ड्राईवर की सीट के ठीक पीछे.
12 मिनट: ओवरडोज़ से मिनट 1: बचपन [आप किसी के साथ कैसा बर्ताव करते हैं?]
बचपन में बस में बैठना सीरत को बिलकुल पसंद नहीं था. कंडक्टर का तेज़ आवाज़ में चिल्लाना उसे अच्छा नहीं लगता, जब भी वह जगहों का नाम लेते तो उनके मूंह से थूक की बौछार उसे एकदम नापसंद थी; बस के भीतर जगह न होने के बावजूद वे ज़बरदस्ती लोगों को उसमें ठूंसते, और अक्सर अजनबी लोगों का उससे सटना भी उसे सिरे से नापसंद था. बस में मां की गोद में बैठना जब तक शर्मिंदगी का सबब न बन गया तब तक सीरत उनकी गोद में ही बैठती और किसी अनजान हाथों के उससे छू जाने पर ज़ोर से चिल्लाती.
ऐसा करने पर उस वक्त तो मां ताज्जुब सवारियों के सामने उसकी हरकतों पर हंस देती और यह कहकर टालने की कोशिश करती कि बच्ची बहुत संवेदनशील है. पर, एक बार घर पर मां ने सोई से सीरत की पिटाई की. सोई एक तरह की झाड़ी है जो कश्मीरी घरों के आसपास, बागानों में आसानी से मिलती है. जैसे ही सोई के पत्ते उसकी उगघड़ी छाती और पीठ पर गिरे, उसके पूरे शरीर में भीतर तक एक चुभन भरी सरसराहट फैल गई. सीरत के आंसूओं को पोंछते और उसे कपड़े पहनाते हुए मां ने उससे कहा, “मुझे शर्मिंदा करना बंद करो, अब तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि चीज़ों को समझ सकती हो.”
सोई के पत्तों से पड़े लाल निशान रातभर सीरत को चुभते और वह दर्द से कसमसाती-छटपटाती रात गुज़ारती. मन ही मन वो मां को राक्षस मानती और यह सोचते हुए रोते-रोते सो जाती. आखिर ये कैसे गलत है कि उसे अजनबियों के छूने से घिन आती है? ऐसी रातों की अगली सुबह मां घर से बहुत जल्दी ही बाहर चली जाती और सीरत के लिए उसकी पसंदीदा हरिसा खरीद कर लाती. ये एक तरह के मीट का शोरबा होता है जिसे सीरत बहुत पसंद करती है. शोरबे की खूशबू जैसे ही रसोई से तैरती हुई हॉल तक पहुंचती, सीरत का दिल मां को माफ कर देता और उसका दिमाग मां के बारे में ऐसा सोचने के लिए उसे ही अपराधी साबित कर देता.
दस साल बाद जब सीरत ने पहली बार गांजे का कश लिया था, उस वक्त भी उसने मां के इस पसंदीदा सोई और उसकी चुभन को अपनी पीठ पर सरसराते हुए महसूस किया. स्कूल के बाहरी इलाके की तरफ एक उजाड़ सी बिल्डिंग के भीतर बैठी सीरत की आंखों के आगे मां का झीना-झीना सा हंसता और गुस्सैल चेहरा घूमने लगता.अपनी उंगलियों के पोर से हौले से वो उसे छूती और हंस देती. आखिर उसे अपनी मां का सुंदर सा चेहरा याद तो है!
11 मिनट: मायूसी से मिनट 2: जवानी [किसी के साथ बर्ताव में आप अपराध को कैसे देखते हैं?]
बस ने एक ज़ोर का झटका मारा और सीरत का सर दरवाज़े से जा भिड़ा जो ड्राइवर की सीट और उसके बीच था. अचानक उसके पीछे खड़ा एक आदमी, जिसकी उम्र 40 साल के करीब होगी, उसने पूछा कि क्या वो ठीक है? सीरत ने अपना माथा छूकर देखा जिसके ऊपर एक मोटा स्कार्फ बंधा था और सिर हिला दिया. कुछ देर तक उसकी नज़र उस आदमी पर टिकी रही.
उस आदमी की आंखें चौकन्नी थी पर थकान से भरी. उसने शर्ट और पैंट पहन रखी थी और वो बस की खिड़की से बाहर देख रहा था. उसके दाढ़ी-मूंछें नहीं थीं और उसने अपनी हथेलियों को आपस में फंसा रखा था. सच तो ये है कि वह बस में बैठे बाकी सवारियों से बिलकुल अलग दिख रहा था, क्योंकि बस के भीतर का माहौल बहुत जर्जर था. उसके चमचमाते, पॉलिशड़ जूतों के बीच काले रंग का उसका ब्रिफकेस ज़मीन पर पड़ा था. सीरत उसके चेहरे की तलाशी ले रही थी कि कहीं कोई वाकफीयत तो नहीं है.
सीरत अपने पिता के बारे में बहुत कुछ नहीं जानती, और मां ने भी इस बारे में अपने होंठ सिल रखे हैं. उसके पास पिता से जुड़ी थोड़ी-बहुत यादें हैं – एक जिसमें सुबह की नमाज़ के बाद उसके पिता और मां शांति से बैठे चाय पी रहे हैं. दूसरी जब पिता के बहुत कहने पर पूरा परिवार ट्यूलिप के बागान देखने गया था. इन यादों में मां के चेहरे पर मुस्कान है और वो बहुत ही कोमल महसूस होती है. कभी-कभार सुबह के सपनों में सीरत अपने दिमाग में पिता की आंखों के आसपास खुशी से उभरती झुर्रियां बना देती है.
एक समय के बाद पिता का अस्तित्व उसके बचपन से अचानक ही मिट गया. उसने अपने मामा के मुंह से कुछ टूटे-फूटे शब्द सुने हैं – रात में किसी के द्वारा उठा लिए गए, उसके बाद से किसी ने उन्हें नहीं देखा.
वो अपनी मां से पूछना चाहती थी कि ‘उठा लिए गए’ का क्या मतलब है, पर समय के साथ और कश्मीर में रहने के फायदों ने खुद-ब-खुद उसे बता दिया कि इसका क्या मतलब है.
उसके पिता के गायब होने के थोड़े समय बाद ही मामू ने कहा कि उन्हें इस इलाके को छोड़ देना चाहिए और कहीं और रहना चाहिए. उसके मामू ने उनके लिए एक छोटा सा घर भी बना दिया. सीरत अपने मामू से प्यार तो करती थी, पर, कभी-कभी सीरत को इस बात से घबराहट होती है कि उसके पिता के पास यह जानने का कोई रास्ता नहीं है कि अब वे कहीं और रहते हैं. पिता अगर वापस आए तो? और वो वहां नहीं मिले तो क्या होगा?
बावजूद इसके सीरत ने अपने पुराने घर लौटने की हिम्मत कभी नहीं की. सिवाय एक बार जब सीरत ने अपने ड्रग डीलर को पुराने घर के सामने वाले दरवाज़े के पास मिलने के लिए बुलाया. उसके भीतर एक उधेड़बुन चल रही थी. शरीर का एक हिस्सा पिता के प्रति विद्रोह की भावना से भरा था जिन्होंने उसे और उसकी मां को इस दुनिया में अकेले सड़ने के लिए छोड़ दिया था – हो सकता है कि वो कहीं आसपास हों और और दिन में कोई एक खास समय वे आते-जाते घर में झांकने की कोशिश करते हों, शायद उन्हें बड़ी होती अपनी बेटी की एक झलक मिल जाए. शायद अपनी बेटी के पोपले शरीर को देखकर उन्हें झटका लग जाए और उसे अकेला छोड़ देने के लिए वे खुद को कोसने लगें.
“तुमने ये जगह क्यों चुनी? तुम्हें नहीं पता कि यहां से लोग गायब हो जाते हैं?” ड्रग डीलर ने कहा. “क्या तुम हम दोनों को मरवाना चाहती हो? कभी-कभी एक अपराधी की तरह सोचना सीखो.”
सीरत ने कोई जवाब नहीं दिया. बिना कुछ कहे चुपचाप उसने एक हज़ार रुपए कैश उसके हाथों में थमा दिए जिन्हें उसने अपनी मां के पर्स से चुराया था. मां की नज़र में वो पहले से ही एक अपराधी है.
बस में खड़े-खड़े सीरत ने टाइम देखा, पौने बारह बज चुके हैं.
मिनट 10: पाताल से मिनट 3: एकदम बेकार (ड्रग्स के लिए क्या पुरस्कार दिया जाता है?)
स्कूल की पढ़ाई-लिखाई में सीरत कुछ खास नहीं थी. उसके मामू ने अपनी ज़मीन का एक छोटा टुकड़ा बेचकर पैसे जमा किए थे ताकि आर्थिक रूप से वे सीरत की मदद कर सकें. पिता के गायब हो जाने के बाद से मां और मामू बहुत करीब आ गए थे. सीरत जानती थी कि उसकी मां यही चाहती हैं कि जैसा वे मामू के लिए महसूस करती हैं वैसे ही सीरत भी करे. उसके मामू अच्छे और हमेशा मदद करने वालों में से हैं. उन्होंने सीरत के पढ़ने के अधिकार के लिए भरपूर वकालत की और अक्सर पढ़ाई में उसकी मदद भी की.
पर सीरत को ये सब बोझ जैसा लगता. घर में जब भी उसे मामू की शक्ल दिख जाती तो भीतर ही भीतर उसे कोफ्त महसूस होती कि उसकी ज़िंदगी कितनी ज़्यादा मामू के हाथों में है. जब भी वे पिता की तरह व्यवहार करने की कोशिश करते जैसे, उसके जन्मदिन या ईद के मौके पर उसके लिए तोहफा लाना, और तीनों का साथ मिलकर ट्यूलिप गार्डन जाने के बारे में कहना, इन सब चीज़ों से सीरत को बहुत खीझ मचती.
जब मामू की शादी हुई उसके बाद चीज़ें कुछ आसान हो गईं. पर मां का मूड बदतर होता चला गया. अब मामू के जीवन में पत्नी और आने वाले बच्चे को लेकर कई तरह की ज़िम्मेदारियां हैं. इसलिए अब वे बहुत कम घर आते. घर खर्च के लिए वे पैसे भिजवा देते. अपनी नई पत्नी के साथ एक-दो बार वे घर भी आए, पर अब वो उस तरह शामिल नहीं होते. सीरत ने अपनी मां को अपनी ज़िंदगी पर गुस्सा होते और जलन करते देखा.
एक रात जब दोनों साथ खाना खाने बैठे, उस वक्त सीरत ने मां को एक गोली खाते देखा. गोली का रंग सफेद था. देखने से तो वो एक छोटी मासूम सी गोली लग रही थी. सीरत को यह जानने की इच्छा हुई कि आखिर वो क्या गोली है लेकिन फिर उसे बागान में लगी सोई के पत्तों की याद आ गई, उसे लगा कि मां के गुस्से को काबू में करने के लिए खामखां सोई के पत्तों को कुर्बान होना पड़ेगा.
जैसे-जैसे सीरत बड़ी होती गई गोलियों की खाली शीशियों का ढेर बढ़ता चला गया. साथ ही डॉक्टर की पर्चियां भी लंबी होती चली गईं. इसका असर अब मां की शब्दावली में भी दिखाई देने लगा – पहले जहां वो ‘तनाव’, ‘दुख’, ‘दर्द’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती थीं उसकी जगह अब ‘वेनिज रावयेन’ (चिंता), ‘डौड वान’ (अवसाद) और ‘ट्रॉमा’ बोलने लगीं. सीरत को लगा था कि गोलियां कुछ मदद कर रही हैं, पर तेज़ी से खाली होती शीशियों की रफ्तार से वो चिंतित हो जाती. इससे कुछ अच्छा नहीं हो रहा था कि हर 6 महीने पर इन गोलियां का आकार औऱ बड़ा होता जाता. अम्मी और गोलियों के बीच की इस दोस्ती की वह मूक गवाह बन चुकी है. और साथ ही कैसे अकेलापन और निराशा जिन्न की तरह मां के आगे-पीछे मंडराते रहते हैं.
कई मायनों में मां और वो, दोनों की हालत एक जैसी है.
स्कूल में वो खुद तक ही सीमित रहती थी या बाद में सहानुभूति जताने वाले किसी समूह में शामिल हो जाती थी.
उसने इधर-उधर की बातों में सुना था कि लोग उसके बारे में क्या कहते हैं. किसी को लगता था कि उसके दिमाग का स्क्रू ढीला है, कोई उसके पिता के गायब होने की घटना को उसके शांत को संजीदा व्यवहार का कारण मानता था. बाकियों को लगता कि वो बस कुछ अलग है – इतनी अलग कि उसे दुखी करने में कोई हर्ज नहीं. किशोर उम्र के बच्चे बहुत कमीनेपन से भरे होते हैं और एक बार बुरा करने के लिए कोई हथियार उनके हाथ लग गया तो वे बार-बार उसका इस्तेमाल कर दुखी कर सकते हैं. ऐसी ही एक लाइन थी जिसे वे सीरत के लिए दोहराते थे:
“जैसी तुम्हारी शक्ल है उसी से समझ आता है कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा नाम सीरत (मन की सुंदरता) क्यों रखा.”
कभी-कभी, खासकर उस वक्त जब सीरत के पीरियड्स चल रहे होते – उस दौरान क्लास की नज़र से खुद को बचाकर वो स्कूल के पीछे की तरफ एक उजाड़ बिल्डिंग में चली जाती. वो बिल्डिंग स्पोर्ट्स फेसिलिटीज़ के लिए तैयार की जा रही थी लेकिन बीच में ही पैसा रुक जाने की वजह से बिल्डिंग का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका. तभी से उसकी दीवारों पर कुत्ते-बिल्लियों की पॉटी, तरह-तरह के चित्र और सिगरेट के बट का डेरा है. सीरत को उस जगह की बदबू से कोई परेशानी नहीं होती – असल में जानवर, इंसानों से ज़्यादा नर्म दिल होते हैं और उन्हें मालूम होता है कि साथ रहकर कैसे जिया जाता है.
सीरत इस बात से खुश थी कि इस जगह के बारे में किसी को नहीं पता या फिर उसके अलावा किसी को यहां पर रुकने की इच्छा नहीं होती. उसके लिए ये अपनी जगह है.
एक दिन एक खराब सपने से जागने के बाद उसने तय किया कि वो क्लास से पहले उस जगह पर जाएगी. आज वहां उसे फेंके हुए सिगरेट के बट का पता मिल गया. असल में उसने वहां एक किशोर लड़के को देखा जो उसकी क्लास का नहीं बल्कि किसी और क्लास का था. लड़के ने भी सीरत की ओर पहले तो आश्चर्य फिर कौतूहल भरी निगाहों से देखा.
“क्या तुम सिगरेट पीती हो?” उसने पूछा. सीरत ने सिर हिला दिया और डटकर वहीं खड़ी रही. बावजूद इसके लड़का मग्न होकर अपनी सिगरेट पीता रहा और तब तक वहीं रहा जब तक उसकी सिगरेट खत्म नहीं हो गई. उसने सिगरेट के बट को ज़मीन पर फेंक दिया.
“किसी को बताना नहीं कि मैं यहां आया था, वर्ना तुम्हारी ज़बरदस्त धुनाई कर दूंगा.” लड़के ने सीरत से कहा.
सीरत ने हां में सिर हिला दिया. वो अपना मुंह दोनों हाथों से ज़ोर से दबाए हुई थी ताकि सिगरेट के धुंए से कहीं वो खांस न दे. लड़का अपनी जगह से उठा और मुस्कुराते हुए सीरत से कहा, “अगली बार तुम भी मेरे साथ सिगरेट पीना, मज़ा आएगा.”
सीरत ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उसके जाने का इंतज़ार करती रही. उसके जाते ही वो ज़ोर से खांसी और जहां लड़का बैठा था वहां थूक दिया.
वो कभी सिगरेट नहीं पिएगी.
मिनट 9: प्रयोग से मिनट 4 - प्यार (सज़ा क्या होती है?)
बस में बैठा ब्रीफकेस वाला व्यक्ति अपनी सीट से खड़ा हुआ. सीरत उसकी सीट पर जाकर बैठ गई. देर से खड़े-खड़े उसकी टांगों को थोड़ी राहत मिली. उसकी नज़र कलाई में बंधी घड़ी पर गई. 12.30 हो चुके हैं. वो पहाड़ों पर बने घरों के दृश्यों को देखने लगी. उसके साथ-साथ जीर्ण-शीर्ण हालत में सड़क को भी देखती रही. तो कभी अचानक तुफान की रफ्तार में हवा से बातें करती बाइक की तरफ उसका ध्यान चला जाता. यहां ज़िंदगी की रफ्तार बहुत धीमी है – बहुत ज़्यादा धीमी.
सीरत अक्सर उस पल के बारे में सोचती है जब उसने गांजा का पहला कश लिया था. कितना पतला, एक सिकुड़ा सा डंडा था जिसे आसानी से दो भागों में तोड़ा जा सकता था. पहली बार में उसे स्वाद पसंद नहीं आया था, लेकिन उसे ये अच्छा लगा कि कैसे उसने उसके दिमाग के भारीपन को हल्का कर दिया था. इसे वो कभी भूल नहीं पाती.
वो लड़का साहिल, लगभग उसी की उम्र का है पर किसी और क्लास में पढ़ता है. उसके भीतर आम-कमज़ोर लेकिन अनोखी सादगी से भरी बला की अदा थी – वो चाहे तो एकदम खूंखार टीचर को भी हंसा दे, और उसे पता था कि स्कूल के नियमों को अपने पक्ष में कैसे मोड़ना है. वो पढ़ने में तेज़ था बशर्ते वो अपना दिमाग पढ़ाई में लगाए तो.
सबसे खास कि वो ईमानदार था. अपनी ज़िंदगी के हर एक पहलू के प्रति एकदम ईमानदार. जब सीरत ने उसे पहली बार कहा कि वो भी एक कश लेना चाहती है तो उसने एक अस्पष्ट सी निगाह सीरत पर डाली. फिर बिल्डिंग के पास उसे बिठाया और कहा, “हम इंसान हैं. हम लेन-देन के रिश्तों में विश्वास रखते हैं. अब अपनी मां के साथ अपने रिश्ते को देख लो. तुम्हें लगता है कि वो तुमसे प्यार करेंगी अगर तुमने पढ़ाई या इबादत नहीं की तो.
इसलिए तुम्हें और मुझे इन नियमों का पालन करना पड़ेगा. तुम्हें ड्रग्स मिलेगा तो तुम खुश हो जाओगी. मेरे पास पहले से ही ड्रग्स है. फिर तुम मुझे ऐसा क्या दे सकती हो कि मैं खुश हो जाऊं?”
सीरत को याद है कि उसके बाद कैसे उसकी नज़र ऊपर से नीचे उसके पेट तक आती है और उसके हाथ सीरत के कंधों की जांच करने लगते हैं. सीरत ने फौरन अपनी आंखें बंद कर लीं और बुत बनी खड़ी रही. एकदम काठ की तरह. ठीक गांजें की उस डंडी की तरह जिसे पीकर उसे खुशी मिलती है. बाद के दिनों में अपनी जांघों के बीच होने वाली जलन भरी सुरसुरी से उसे नफरत होती थी. और कानों में पड़ते उसके भारी सांसों की आवाज़ को भी वो रोकने की कोशिश करती.
कुछ ऐसे भी पल होते थे जिसमें सीरत को उससे नफरत नहीं होती. जैसे एक बार नशे में धुत होते हुए भी उसने सीरत को अपनी छोटी बहन के बारे में बताया जो एक क्रॉस फायरिंग में मारी गई थी. उसकी बहन रोज़ की तरह अपनी इस्लामिक क्लास के बाद घर लौटते हुए सकड़ पार कर रही थी जब एक तरफ के हमले के जवाब में हो रही गोलीबारी के बीच में वो आ गई. सबकुछ पलक झपकते ही हो गया. सीरत ने देखा उसकी आंखों में पानी भर आया था और उसकी ज़बान टूटने लगी थी.
“तुम्हें कभी बेचारा महसूस होता है?” हाथो की उंगलियों में फंसे गांजे से कश लेकर उसे सीरत की तरफ बढ़ाते हुए उसने कहा. “तुम्हें लगता है कि जब आपको दुखी और बेचारा महसूस करना चाहिए उस वक्त बहुत खुश होना गलत है?”
“मुझे लगता है कि अब हमें एक-दूसरे को तकलीफ देने की आदत हो चुकी है.” अपनी मां के बारे में सोचते हुए सीरत ने कहा, “इससे अलग एक-दूसरे के साथ कुछ और व्यवहार करने के बारे में हम सोच ही नहीं सकते.”
कुछ देर मौन रहने के बाद उसने कहा, “तुम्हारे साथ यहां, इस जगह मुझे अच्छा महसूस होता है.” उसने सीरत का हाथ थामते हुए कहा. “ऐसा लगता है कि तुम मेरे दिल को समझती हो, उसके अंधेरे कोनों को भी.”
सीरत ने महसूस किया कि वो पहली बार शर्मा रही है, “मुझे भी.”
दोनों को नहीं पता था कि ऐसे में क्या करते है, लेकिन दोनों ही एक दूसरे के साथ खुद को जानने-समझने की कोशिश कर रहे थे. इस तरह दोनों के बीच एक आपसी रिश्ता पनप चुका था जो आकर्षण और अपराधिक व्यवहार पर आधारित था.
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तभी बस रुकती है और कंडक्टर ज़ोर से जगह का नाम चिल्लाता है. कुछ लोग बस से उतरते हैं, सीरत भी दूसरों की तरह टर्मिनल पर उतरती है. सड़क पार करके वो अगले बस स्टॉप तक पहुंचती है. यहां से हॉस्पिटल की दूरी आधा घंटा है.
सीरत ने मां को नहीं बताया कि वो कहां जा रही है. झूठ बोलने के प्रति उसका अलग ही लगाव है. पर मां के मन में सीरत को लेकर शक एक साल पहले से ही पैदा हो चुका था. तभी मामू से बीच-बीच में कहती रहती हैं कि वे उसपर नज़र रखें. ऐसा एक से ज़्यादा बार हो चुका था कि मामू बिना बताए सीरत से मिलने स्कूल पहुंच गए थे.
“मैं तुम्हारी अम्मी को नहीं बताउंगा.” सीरत जब उन्हें स्कूल के बाहर उनकी कार तक छोड़ने आती तो वे कहते, “लेकिन अपने आप को ठीक करो, अपनी इज़्ज़त को संभालो. तुम्हारी मां अपने दिमाग से सही नहीं है, लेकिन इसमें उसकी गलती नहीं है. तुम्हें मज़बूत होना ही होगा, तुम समझ रही हो न मैं क्या कह रहा हूं.”
सीरत,अपना सिर हिलाती रहती ताकि वो बोलना बंद कर दें.
उन दिनों में साहिल एक अच्छे दोस्त की तरह उसके लिए निगरानी का काम भी करता था. साहिल के प्रति उसके मन में आभार था क्योंकि वो उसे समझता था. पर धीरे-धीरे उसे साहिल के साथ ऊब महसूस होने लगी. साहिल के भीतर हमेशा एक बेचैनी रहती – एड्रेनालाईन रश – वो हमेशा बेताब रहता जो शायद उसकी ज़िंदगी के प्रति उसकी उक्ताहट और कुछ न कर पाने की बेचारगी को खत्म कर दे. शुरुआत में सीरत के साथ शारीरिक होना इसमें मदद कर रहा था, लेकिन वो इससे संतुष्ट नहीं था.
एक दिन सीरत ने उसे बिल्डिंग के भीतर नशे में धुत बेहोश पड़ा देखा. उसके सामने एल्मीनियम की एक छोटी सी पुड़िया थी जिसमें थोड़े सफेद पाउडर थे. सीरत को फौरन समझ आ गया कि ये कुछ अलग है. वो नीचे झुकी और अपने कानों को उसकी छाती पर लगाकर धड़कनों को सुनने की कोशिश की. उसकी सांसें लड़खड़ा रही थीं पर चल रही थीं. ऐसा लग रहा था कि वो सो रहा है. उसके सिरहाने पानी की एक बोतल रख सीरत ये सोचती हुई वहां से चली गई कि वो बाद में आकर देखेगी.
कुछ घंटे बाद वो उठा और वहां से गायब हो गया. अगले दिन वो सीरत का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. वो सीरत को उस नए ड्रग के बारे में बताना चाहता था जिसे उसने चखा है. “अब तक इस्तेमाल किए सारे में से एकदम सुपर, इससे अच्छा मैंने आजतक नहीं चखा.” उसकी उत्तेजना देखने लायक थी. ऐसी जो किसी को भी अपनेे मोह में फंसा ले, लेकिन वो क्या कहना चाहता था इसे समझना मुश्किल था. ऐसा लग रहा था कि वो जो कुछ भी कह रहा है उसे सिर्फ सीरत ही समझ सकती है.
“ये मैंने कभी किसी के साथ नहीं किया.” उसने कहा, “ये मैं तुम्हारे साथ ही करना चाहता हूं, तुम कुछ खास हो. चलो साथ मिलकर करते हैं.”
सीरत थोड़ा हिचकिचाई. “गांजा पीना एक बात है, लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता.”
ये सुन साहिल की भौंहें तन गईं. “मतलब क्या है तुम्हारा? इसलिए तो मैंने पहले अकेले चख कर देखा कि इसमें कोई खतरा तो नहीं. और देखो मैं एकदम फर्स्ट क्लास हूं.”
“ऐसे करने के लिए तुम्हें मैंने नहीं कहा था.”
“सीरत.” धीमी आवाज़ में साहिल ने कहा. अबतक सीरत को समझ आ गया था कि ऐसी आवाज़ में वो तब ही बोलता है जब या तो बहुत जज़्बाती हो रहा हो या फिर उसे अपनी बात मनवानी होती है. उसने सीरत का हाथ अपने हाथ में ले लिया और सहलाते हुए कहा, “तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं? मुझे बहुत बुरा लगा.”
सीरत की आंखों में पहले घबराहट और फिर अपराध बोध झलकने लगा.
“मुझे पता है कि तुम्हें डर लग रहा है, लेकिन सोचो ज़रा साथ मिलकर हमने कितने सारे मज़े किए हैं.” साहिल ने अपने दूसरे हाथ को सीरत के कुल्हे पर रखते हुए कहा. “तुम्हें नहीं महसूस होता कि अब हमें एक दूसरे पर आंख मूंद कर भरोसा करना चाहिए? तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता हूं?”
सीरत कहना तो बहुत कुछ चाहती थी. मतलब शायद साथ मिलकर हम कुछ और तरह के मज़े कर सकते थे जैसे, किताबें पढ़ना और एक दूसरे से बेतुके सवाल करना. पर हो सकता है साहिल के साथ उसके रिश्ते में खतरे, जोखिम से भरे और बेमतलब के मज़े ही लिखे थे.
उसने चुपचाप साहिल के हाथ से वो पुड़िया ली और मुस्कुराते हुए बोली, “मुझे तुम पर भरोसा है.”
सीरत की मुस्कुराहट को देख जवाब में साहिल भी मुस्कुरा दिया. एक पल के लिए सीरत को लगा कि उसके इस व्यवहार में कठोरता और दूरी है लेकिन अगले ही पल चमक लौट आई और उसने राहत की सांस ली.
सीरत की ओर आने वाली बस अब किनारे पर आकर लग गई है. उसने दूर तक नज़र गड़ा कर देखा, मामू कहीं नहीं दिखाई दे रहे. अब तक तो नहीं. वो बस में चढ़ी. फोन निकालकर देखा. एक बजने में बीस मिनट बचे हैं.
उसने सोचा काश वो साहिल के पास से भाग गई होती.
मिनट 8: बोझ से मिनट 5 : दृढ़ निश्चय (क्या अपराधी होना जन्म से ही जुड़ा होता है?)
“जब भी मैं ऐसे किसी से मिलता हूं जिसने ड्रग्स छोड़ दिया है, तुम्हें पता है वे मुझसे क्या कहते हैं? वे कहते हैं कि उनसे खता हो गई है. अपनी ज़िंदगी के साथ उन्होंने बहुत बड़ा जुआ खेला था. उनका रोना थमता ही नहीं और वे मुझसे पछतावे की बात करते हैं. इन कहानियों से हमें क्या पता चलता है? यही कि अंत में अल्लाह से दूर होकर अपनी चाहतों के पीछे भागने से कुछ नहीं मिलता, ये सिर्फ एक छलावा हैं! असल खुशी तो अल्लाह के सामने समर्पण करने में हैं, अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने में है. तो बच्चों, इन शैतानी इच्छाओं, चाहतों से दूर भागो उनके पीछे नहीं! जाओ और पाक कुरान शरीफ उठाकर देखो कि कैसे हमारे पैगम्बर मोहम्मद ने सारी बाधाओं के बावजूद फतेह हासिल की. उन्होंने कभी कोई ड्रग्स नहीं लिया, आपको भी नहीं लेना चाहिए.”
ये शब्द सीरत ने स्कूल की एक खास असेंबली में एक धार्मिक गुरु से सुने. धर्म गुरु को सुनते हुए उसे लगा जैसे वे उसकी ही आंखों में आंखें डालकर उसे यह सबकुछ कह रहे हैं. वो दूसरे बच्चों की आंखों को टटोलने लगी कि क्या उनके साथ भी ऐसा हो रहा है, तभी उसकी नज़र साहिल पर पड़ी. उसके चेहरे पर ऊब और मुस्कुराहट थी.
सीरत ने जब से हिरोइन लेना शुरू किया था उसका दिमाग ज़्यादा ही भारी रहने लगा था. जैसेकि वो एक बार फिर से एकदम से बच्ची बन गई हो – जिसका अपने शरीर और उसकी ज़रूरतों पर नियंत्रण ही न हो. ज़्यादा से ज़्यादा वो दिन-दिन तक अपने को संभाल पाती उसके बाद उसका शरीर पसीने से तर-बतर, चिपचिपा और दर्द से भर जाता.
मां के सामने सहज दिखने में उसे बहुत मशक्कत करनी पड़ती. बहुत बार ऐसा होता कि वो साहिल के सामने अधिक चरस के लिए गिड़गिड़ाती ताकि वो उसे घर पर ले सके. उसे डर लगा रहता कि कहीं दौरे की हालत में मां उसे देख न ले.
“खुद को ज़रा देखो, कितनी बेताब हो रही हो”, साहिल ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमपर मेरे बहुत एहसान हैं. पहले से भी बहुत ज़्यादा. याद रखना सब.”
सीरत को यह अहसास बहुत बाद में हुआ – लेकिन एक समय के बाद, साहिल का चेहरा भी खौफनाक तौर पर उसके पिता और मामू से मिलने लगा था. उसने सीरत को हुक्म देना शुरू कर दिया था. वो उसे बताता कि उसे अपनी ज़िंदगी कैसे जीनी चाहिए, उसके तसव्वुर, सीरत की मार्जियों के सामने रेखाएं खींचने लगे.
धार्मिक गुरु की बातों में बहुत ताकत और खुलूस था. “अल्लाह की नज़र में हम सब गुनाहगार हैं, पर हमारे भीतर पछतावा होना चाहिए और हमें अपना सबसे अच्छा अक्स बनना चाहिए. अपनी परेशानियों के बारे में अपने माता-पिता से बात करो या मेरे पास आओ. हम सभी मिलकर आपकी मदद करेंगे. हम सभी एक ही मझदार में खड़े हैं.”
खास असेम्बली के बाद सीरत ने साहिल से पूछा कि क्या उसे धार्मिक गुरु की बातों पर विश्वास है?
“ये सारे मिट्टी के माधव हैं.” उसने तंज़ मारते हुए कहा, “ये वही धार्मिक गुरु है जो खड़ा-खड़ा मेरी मां को पागल होते देखता रहा जब मेरी छोटी बहन मारी गई थी. मेरी मां हर दिन इसके पास जातीं और इससे मिन्नतें करतीं. उन्होंने इनकी मस्जिद के लिए 10,000 रुपए चंदा भी दिया. लेकिन कुछ नहीं हुआ, उसने सिरे से हमें नज़रअंदाज़ किया. ऐसे लोगों की बातें मैं क्यों सुनूं? इससे भला तो ये ड्रग है जिससे मुझे सुकून तो मिलता है.”
क्या सच में ये सुकून देते हैं? हो सकता है कुछ देर के लिए देते हों, लेकिन बाद में, कहीं ये बोझ तो नहीं बन जाते?
मिनट 7: आरज़ू / ख्वाहिश से मिनट 6: जवान (क्या एक बार फिर इंसान बनने का कोई रास्ता है?)
बस धीरे-धीरे सड़क पर आगे बढ़ रही थी और कंडक्टर जगहों के नाम पुकारता जा रहा था. सीरत ने देखा बूढ़े और जवान एक के बाद एक चढ़-उतर रहे थे. उसने सोचा कि उम्र के साथ कब वो समझदार होगी. उसे पता था कि अपनी ज़िंदगी के फैसलों में उसने बहुत ही नादानी और अहमकों वाले काम किए हैं, और औरों की तरह ही उसके भीतर भी बहुत अफसोस है.
क्या ये पछतावे कभी खत्म होंगे?
और एक समय ऐसा आया जब स्कूल के प्रिंसिपल को पता चला कि उस उजाड़ बिल्डिंग का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है. सीरत ने भी अपने आसपास तेज़ी से फैलती इन अफवाहों को सुना, इसे सुन उसका चेहरा और भी सूखा और पीला पड़ता गया. अब स्कूल के अधिकारी सिगरेट ब्रेक लेने के बहाने उस बिल्डिंग की तरफ से आने-जाने वाले बच्चों पर नज़र रखने लगे. सीरत और साहिल का मिलना अब बिलकुल नामुमकिन हो चुका था.
ऐसा भी नहीं था कि उसके लिए मिलना ज़रूरी था. सीरत की लगातार बढ़ती मांग से तंग आकर साहिल ने उसे अपने डीलर से मिलवा दिया था. जब से स्कूल के अधिकारियों ने उस बिल्डिंग पर नज़र रखना शुरू किया था तब से साहिल ज़्यादातर छुट्टी पर ही रहता.
किसी को नहीं पता था कि वो छुट्टियां क्यों ले रहा है और वो कब वापस आएगा. वैसे किसी को इस बात से फर्क भी नहीं पड़ता था. पहले तो सीरत को लगा कि उसका फर्ज़ बनता है कि वो उसके बारे में पता लगाए, उसकी चिंता करे, लेकिन थोड़े समय में ही सीरत को भी वो बहुत दूर जाता महसूस हुआ.
जिस तरह वो अचानक यूं ही एक दूसरे से मिले थे और अब अलग हो गए – जैसे रात के अंधेरे में कोई अनजान व्यक्ति गुज़र जाए. सीरत ने उससे राब्ता रखने की कोई कोशिश नहीं की, न ही साहिल ने या जानना चाहा कि वो कैसी है. कभी-कभी वो ड्रग डीलर से साहिल के बारे में पूछ लेती.
डीलर छेड़ने के अंदाज़ में उससे पूछता, “क्या तुम उससे प्यार करती हो? हां, ये तो सच है कि वो बहुत ही दिलकश आदमी है.”
सीरत को नहीं पता कि उसकी इन बातों का जवाब कैसे देना है? क्या सच में? क्या वो दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं?
क्या प्यार में लोग एक दूसरे की बांहों में इंजेक्शन लगाते हैं जैसे वे दोनों लगाते थे? क्या ये अपराध है? या नाखुश हालात?
बस से उतरकर सीरत कुछ कदम चलती है. हॉस्पिटल के मेन गेट के दोनों पाट पूरी तरह खुले थे.
जेब से निकालकर उसने फोन देखा. एक बजने में अभी दो मिनट हैं. वो ओपीडी की तरफ बढ़ी. दिमाग में तरह-तरह की तस्वीरें घूमने लगीं. सोई, हिरोइन, हंसी, ट्यूलिप के बागान, ईद, हरिशा सब आते-जाते रहे. ऐसा लग रहा था कि वो अपनी मौत की तरफ बढ़ रही है.
इस हॉस्पिटल के नशा-मुक्ति अभियान के बारे में सीरत को स्कूल की उस खास असेंबली में ही पता चला था. पहले तो उसने खुद से लड़ाई लड़ी और अपने आप को एक डेडलाइन दी कि इतने समय में वो ड्रग्स छोड़ देगी, पर समय बीतता गया और उसकी मां एक के बाद एक लत से लड़ने लगी, सीरत ने खुद को इसके लिए ज़िम्मेदार समझा. उसे लगा उसने अपने परिवार को तोड़ दिया है.
हो सकता है उसके पिता गायब नहीं हुए बल्कि उसकी वजह से घर छोड़ कर चले गए. हो सकता है कि वो प्यार के काबिल ही नहीं है.
कभी वो ये भी सोचती है कि काश उससे छोटा भाई या बहन होते जिसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी उसके ऊपर होती. तो शायद अपने फैसलों में वो कम लापरवाह होती और शायद उनकी ज़िंदगी में मां थोड़ी और ज़्यादा हाज़िर होतीं.
उसके पैर थोड़े भारी से होने लगे और जैसे ही वो काउंटर पर पहुंची, एक थके-हारे चेहरे ने पीछे से झांक कर उसे देखा.
“आपको क्या चाहिए?” रिसेप्शन पर बैठी महिला ने उससे पूछा.
सीरत ने घूंट लेते हुए, एक तेज़ सांस भरी. अपने कांपते हाथों के साथ उसने कहा, “मैं ड्रग्स लेती हूं. मुझे मदद चाहिए.”
उस महिला ने अपना सिर ऐसे हिलाया जैसे दुनिया में नेशे की लत होना बहुत ही आम बात हो. तुरंत ही उसने एक फॉर्म निकाला भरने के लिए और सीरत से कुछ सवाल पूछने लगी.
“कब शुरू हुआ?”
“कुछ साल पहले.”
“कितने? मेरा मतलब है साल.”
“पांच.”
“किस तरह के ड्रग्स?”
“ज़्यादातर चरस.”
रिसेप्शनिस्ट ने सिर ऊपर कर उसकी तरफ देखा. “ज़्यादातर?”
“…और हिरोइन.”
रिसेप्शनिस्ट ने सिर हिलाते हुए कहा, “हम कुछ जांच करेंगे. क्या तुम्हारे माता-पिता को इसके बारे में पता है?”
सीरत ने ना में सिर हिलाया.
अब रिसेप्शनिस्ट ने थोड़ा मुंह बनाया. सीरत ने उसके चेहरे को देखकर भांप लिया कि ये वही नज़र है जिस नज़र से लोग अक्सर उसे देखते हैं. सीरत को इसकी आदत थी. उसके बगल में, एक निहायत अनजान आदमी – थोड़ा बूढ़ा सा – रिसेप्शन काउंटर तक आता है और टेबल पर हाथ रख कुछ सुनने की कोशिश करता है.
“हमें कुछ टेस्ट करने होंगे.” रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “हैपटाइटस के लिए. क्या तुमने अपने पार्टनर के साथ नीडिल इस्तेमाल किया है?”
यह सुन सीरत ने महसूस किया कि उसके पेट में मरोड़ उठने लगे हैं. उसे कैसे पता कि वो मेरा प्रेमी है? क्या कोई मुझपर नज़र रख रहा है?
“तुमने नीडिल शेयर किया है या नहीं?” अब रिसेप्शनिस्ट ने झुंझलाकर पूछा.
“हां, किया है.” सीरत को लगा कि उसने अपना अपराध कबूल कर लिया है.
रिसेप्शनिस्ट के बगल में खड़ा बूढ़ा आदमी सीरत को घूरने लगा.
“हैपटाइटिस? क्या तुम नशा करती हो?” उस आदमी ने कहा.
उसे देख सीरत चौंकी लेकिन उसने कुछ कहा नहीं.
“क्या आप इसके पिता हैं?” रिसेप्शनिस्ट ने आदमी से पूछा.
उस आदमी ने उसके सवाल को अनसुना कर दिया. उसने तेज़ आवाज़ में बोलना शुरू किया, “क्या तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आती? अपने बाप का नंबर दो, मैं अभी उनसे बात करता हूं.”
सीरत ने अपनी आंखें बंद कर लीं और जितनी ज़ोर से वो दबा सकती थी उतनी ज़ोर से उसने अपना स्कार्फ कस लिया. वो उस आदमी को अपना चेहरा देखने नहीं दे सकती थी. अगर, वो सच में उसका पिता होता? क्या उसके पिता भी इसी तरह व्यवहार करते अगर उन्हें पता चलता कि वो कैसी है? क्या यही सज़ा है अपराध की?
रिसेप्शनिस्ट फौरन खड़ी हो गई और तेज़ी से डेस्क के सामने की तरफ आई ताकि वो उस बुज़ुर्ग को सीरत के सामने से हटा सके. “अंकल जी, रुक जाइए. अभी के अभी रुक जाइए. वरना मैं पुलिस को बुला लूंगी.” अब तक उन तीनों के आसपास भीड़ इक्ट्ठा हो गई.
“तुम भी कोई इससे अलग नहीं हो,” वो चिल्लाया “ऐसी बेगैरत औरत को तुम दाखिला कैसे दे सकती हो! हमारे समुदाय की क्या हालत हो गई है, वो किस जगह आ गया है? इस औरत में अब भी इतनी हिम्मत है कि वह अपने चेहरे को छिपाने के लिए पाक हिजाब का इस्तेमाल कर रही है! इसकी हरकतें तो शालीन नहीं है! नरक में जाओ, तुम दोनों!” उसने ज़मीन पर थूक दिया.
“क्या हुआ?” बुर्का पहनी एक औरत ने कहा, “आप यहां की शांति क्यों भंग कर रहे हैं?”
एक युवा लड़का सीरत और उस बुजुर्ग के बीच आ गया और अपना हाथ उनके बीच रख दिया. उसने बुज़ुर्ग से कहा. “अंकल जी शांत हो जाइए. ये जगह नहीं है ऐसी बातें करने के लिए.”
“मैं इसके घर जाकर इसके मां-बाप को बताउंगा कि ये क्या हरकतें कर रही है! मुझे मत सिखाओ क्या करना है!” बूढ़ा व्यक्ति एक बार फिर से चिल्लाया, “क्या नाम है तुम्हारा? कहां रहती हो? जल्दी से बताओ.”
“क्या आप इसके रिश्तेदार हैं? आपको इसकी ज़िंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों है?” भीड़ में से एक दूसरी औरत ने कहा.
उस युवा लड़के ने बुज़ुर्ग को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. “अंकल जी, बाहर चलकर बात करते हैं. आप मुझे इसके बारे में पूरी बात आराम से बताइए. यहां ऐसा मत कीजिए.”
“पर…” बुज़ुर्ग ने कहा.
“हां, हां, अरे आप बिलकुल सही कह रहे हैं. पूरी गलती इसकी है,” युवा लड़के ने बहलावे की भाषा, जिसमें बच्चों से बात की जाती है, में कहा, “पर इसके बारे में यहां बात नहीं करते हैं. चलिए बाहर चलकर बात करते हैं.”
दोनों साथ बाहर निकले, युवा लड़के ने बुज़ुर्ग का कंधा ज़ोर से थामा हुआ था और उन्हें बाहर की तरफ ले जा रहा था. थोड़ी देर में भीड़ भी इधर-उधर छिटक गई, इस बीच कुछ फुसफुसाहटें सुनाई दे रही थीं.
रिसेप्शनिस्ट ने सीरत का कंधा थामा और उसे देखने के लिए थोड़ा झुकते हुए कहा. “तुम अब अपनी आंखें खोल सकती हो, वो चले गए. उनकी चिंता मत करो, उनके पास करने को कुछ नहीं है.”
सीरत ने अपनी आंखे खोली. उस आदमी की ज़ोर-ज़बरदस्ती अब भी अपने माथे पर वह महसूस कर रही थी. उसने अपने आंसूंओं को थामा.
“रो मत,” रिसेप्शनिस्ट ने कहा. इसके बाद अपनी सीट पर वापस जाकर उसने सीरत को फॉर्म दिया. “अगर तुम्हें अब पछतावा हो रहा है, तो सोचो कि तुम्हारे माता-पिता को कैसा लगेगा अगर उन्हें पता चले कि तुम किस हालत में हो. जाओ, उधर जाकर बैठ जाओ. तुम्हारा नंबर 25 है. टेस्ट के लिए मैं थोड़ी देर में बुलाऊंगी.”
सीरत ने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो कुछ और कहेगी – ये जो अचानक और इतनी आसानी से हिंसा उसके साथ हुई उसके बारे में कुछ तो – पर, रिसेप्शनिस्ट ने अपना सिर झुका लिया और अपने कंप्यूटर स्क्रीन को घूरने लगी. बेलब्ज़, सीरत को कुछ ही दूर पर कुछ खाली सीटें मिल गईं और वो वहां बैठ गई.
क्या उसने यहां आकर गलती की? क्या उसने एक ऐसी व्यवस्था पर बहुत ज़्यादा भरोसा कर लिया जिसके बारे में उसे कुछ नहीं पता?
उसने अपने आसपास देखने की कोशिश की क्या कोई उसके जैसा यहां है. उसने देखा ज़्यादातर बूढ़े आदमी और औरतें हैं, उनमें से कुछ उसे ही घूर रहे थे. वो अपनी तरह हम उम्र लड़की को ढूंढ रही थी, जो उसकी तरह ही यहां बैठी हो, लोगों से अपना चेहरा छुपाए. बजाए इसके युवा लड़कियां वेटिंग हॉल में इधर-उधर भागम-भाग कर रही थीं, लुका-छिपी की हंसी-मज़ाक में हंसते हुए मज़े लेते हुए, वहीं उनकी देखभाल करने वाले अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे. सीरत ने अपनी आंखों को थोड़ी देर के लिए बंद कर लिया और सोचने लगी कि काश वो एक बूढ़े आदमी के शरीर में घुस पाती. क्या तब उसकी पसंद काबिल-ए-बर्दाश्त होती?
“अभी जो हुआ इसके लिए माफ़ करें,” एक जानी-पहचानी आवाज़ उसके कानों तक आई जैसे कि उससे ही कुछ कह रही हो. उसने अपनी आंखें खोलीं और देखा कि वही युवा लड़का उसे देख रहा है. वही जिसने उन बुज़ुर्ग आदमी को बाहर तक पहुंचाया था. “ऐसे लोगों पर ध्यान मत दो. तुम ठीक हो?”
उसकी इस नर्म-दिल आवाज़ को सुन सीरत हैरान हो गई और उसने सिर हिला दिया.
“क्या तुम्हें पानी चाहिए?” उसने पूछा. “मैं वैसे भी अपने लिए पानी लेने जा रहा था.”
हिचकिचाते हुए सीरत ने एक बार फिर अपना सिर हिला दिया. वह मुस्कुराया और चला गया. कुछ मिनटों के बाद, एक कागज़ का कप सीरत की ओर बढ़ाते हुए कहा, “क्या तुम श्रीनगर से हो?”
सीरत ने सिर हिलाया और धीरे से अपने दुपट्टे को अपनी ठोड़ी के पास थोड़ा खिसकाकर एक घूंट पी ली. लड़का सीरत के बगल की खाली सीट पर बैठ गया.
“क्या तुम अकेली हो?”
जवाब में सीरत ने सिर हिलाया.
लड़के ने भी थोड़ा पानी पिया. “मैं यहां ताका-झांकी करने नहीं आया हूं. जो कुछ हुआ उसके बाद मुझे बस अच्छा नहीं लगा और मैं जानने आ गया कि तुम ठीक हो.”
सीरत ने कुछ नहीं कहा.
नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए लड़के ने हाथ में पकड़े कागज़ के कप को मरोड़ दिया. कुछ देर रुक कर उसने कहा, “मेरा एक दोस्त था…जो ड्रग्स के ओवरडोज़ से मर गया. उसने मुझे कभी नहीं बताया… वह खुद से इतना लड़ रहा था. मुझे तो बाद में पता चला… वह बहुत ज़िंदादिल इंसान था, लेकिन वह किसी लापरवाही में इसमें शामिल हो गया.”
सीरत ने अपना चेहरा घुमाकर उसकी तरफ देखा, वह हैरान थी.
“काश… मैं उसके लिए कुछ और कर पाता,” लड़के ने कहा और वह उठ खड़ा हुआ. “हम कश्मीरियों को अपनी तकलीफें छुपाने की आदत है, लेकिन हमें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है. अगर उसने मुझे बताया होता तो मैं उसकी मदद कर सकता था. मुझे लगता है तुम जो ये कर रही हो, अपने को एक मौका और देना, ये बहुत ही दिलेरी का काम है. उस बुज़ुर्ग आदमी को कुछ नहीं पता कि तुम किस दौर से गुज़री हो. बस चलती रहो.”
वह खड़ा हुआ, सीरत को देखकर थोड़ा मुस्कुराया, फिर उसकी तरफ पीठ कर बाहर निकलने की दिशा में आगे बढ़ गया.
सीरत, दूर जाती उसकी काया को देखती रही, उसके गले में एक सवाल कौंध रहा था. क्या वह दोस्त साहिल था?
दोपहर: कुबूलियत
एक दिन जब मां बरामदे में सब्ज़ियां काट रही थीं, सीरत उनके बगल में आकर बैठ गई. वो शांति से मां की थकी-मांदी आंखों को देख रही थी जो अपने ही बागान से तोड़े पालक के हर एक पत्ते को पहले ध्यान से परखती फिर उसके टुकड़े करती जाती.
सीरत को लगा कि इस पल वो मां के सामने सबकुछ खोलकर रख दे. ये पल आम दिन की तरह शांत और सहज लग रहा है जो ड्रग्स की लत के सच को संभाल सकता है. बाहर चिड़ियों की चहकती आवाज़ें विश्वास दिला रहीं थीं कि इस बीच ठहरे डरावने पलों को वो अपने चहकने से भर देंगी.
सीरत ने मां को सब बता दिया.
उसकी बातें सुनकर मां ने उसकी तरफ देखा और आह भरी. “यह किसकी गलती है?” मां ने पूछा, किससे? शायद किसी से नहीं. “तुम्हारी, मेरी, तुम्हारे पिता की या अल्लाह की?”
सीरत चुपचाप मां के बगल में बैठी रही. उसे नहीं पता कि वो क्या कहे. वह उठी और बगीचे से कुछ सोई तोड़कर मां के हाथों में रख दी. शायद यही वह जवाब था जिसकी तलाश मां को थी.
मां की आंखें चौड़ी हो गईं, उन्होंने सीरत को देखा, और फिर सोई की ओर देखा. वह चुपचाप सिसकने लगीं.
एक लंबी चुप्पी के बाद मां ने कहा, “मुझे लगता है कि यह मेरी गलत है, आखिर समाज किसे दोष देगा? मैं और किसे दोष दे सकती हूं?”
थोड़ी देर बाद, मामू घर आए, उनके चेहरे पर हमेशा जो भाव रहते हैं उससे अलग इस बार कुछ ज़्यादा ही अलग और चिंतित भाव थे. उन्होंने सीरत को बिठाया और उसे बहुत देर तक घूरते रहे.
“मैंने तुम्हारे लिए हमेशा मौजूद रहने की कोशिश की.” मामू ने कहा, “अपने खुद के परिवार से भी ज़्यादा, तुम्हारे पिता… ” वह रुक गए, उन्होंने आह भरी.
सीरत को भीतर से ज़ोर से चिल्लाने की इच्छा हुई. उसने पूछा, “मेरे अब्बा कहां हैं? क्या आपको पता है? क्या आपने उन्हें मुझसे दूर रखा है? क्या वो इसलिए चले गए क्योंकि उन्हें पता था कि मैं नशे की लत में पड़ जाऊंगी?”
कुछ पल मामू सीरत को देखते रहे, जैसे कि वह इस बात का अंदाज़ा लगा रहे हों कि उसके भीतर जवाब सुनने की ताकत है या नहीं. उसके बाद उन्होंने कहा.
“आओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं.”
मामू की कार में सीरत कभी-कभार ही बैठी थी, पर उस दौरान उसने कभी इस बात की परवाह नहीं की थी कि कहां जा रहे हैं. ये पहली बार है कि उसके भीतर उत्सुकता थी. ड्रग्स के बाद से सोचने समझने की उसकी ताकत वैसे ही कम हो गई थी, पर आज वो पूरी तरह से जागे हुए हैं. साफ झलक रहा था कि उसे जवाब जानना है.
इन पुरानी गलियों को उसने पहचान लिया, ये तो जानी पहचानी दुकानें हैं – गनई मेडिसिन्स, पनुन शॉप, मीर इलेक्ट्रॉनिक्स. वे झेलम नदी की तरफ जा रहे हैं.
पूरे रास्ते उसके मामा चुप रहे. उनके हाथ स्टीयरिंग व्हील को मज़बूती से पकड़े हुए थे, जैसे कि वे खुद से कह रहे हों कि उन्होंने जो करने का निश्चय किया है, उसे पूरा करना है. वे शांत और स्थिर होकर गाड़ी चला रहे थे.
झेलम जिसे सभी प्यार करते हैं, उफान भरते उसके किनारे पहुंच मामू ने अचानक ही कार रोक दी. वे चुप रहे, उनकी आंखों झेलम के बेनूर पानी को देखने से इंकार कर रही थीं. सीरत ने उनकी तरफ देखा और कुछ नहीं कहा.
धीरे-धीरे, वे कार से बाहर निकले और उन्होंने सीरत को भी निकलने का इशारा किया. वे दोनों कीचड़ भरे रास्ते पर चलने लगे, वहीं दूसरी कारें तेज़ी से उनके सामने से निकल रहीं थीं. इन सारी बातों से अनजान, पानी अपनी रफ्तार से बह रहा था. किनारे के छोर पर पहुंच मामू रुक गए, सीरत उनके पीछे रुक गई.
दोनों चुपचाप खड़े थे, एक बोलने के इंतज़ार में, और दूसरा सुनने के इंतज़ार में.
आखिरकार मामू ने कहा, “वे यहां हैं. झेलम के भीतर.”
कशमकश में सीरत के चेहरे में सिकुड़न आ गई थी. कुछ पलों के लिए तो उसे कुछ समझ नहीं आया. उसने मामू की तरफ देखा शायद वो आगे खुलकर कुछ बताएं.
“उन्हें झेलम में डुबो दिया गया था,” ‘डुबो दिया’ पर ज़ोर देते हुए उन्होंने फिर से कहा. इस बात को पूरी तरह महसूस करने के लिए वे थोड़ी देर रुके.
और फिर यह अहसास आया, ज़ोरदार तरीके से. उन्होंने देखा कि खौफ, गम और गुस्सा एक साथ सीरत के चेहरे पर ऐंठन पैदा कर रहे थे. उसने पानी की तरफ देखा और फिर मामू की तरफ, उसकी आंखें सच की इस चोट के लिए मामू पर इल्ज़ाम लगा रही थीं.
“यह आत्महत्या नहीं थी,” मामू ने कोमलता भरी निगाहों से देखते हुए सीरत से कहा, “तुम्हें यह जानना होगा.”
सीरत ने महसूस किया कि उसके पैर कांप रहे थे. वह नीचे झुकी और अपने हाथ पानी में फैलाए. उसने उसे छुआ. ऐसा लगा जैसे बाबा के कपड़े हों.
“अगर धरती पर कहीं चरस है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है,” अचानक ही उसके पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी. वे दोनों, मामू और सीरत, आवाज़ की दिशा में देखने लगे. लाल आंखें लिए एक लड़के का चेहरा, जिसकी पीठ एक पेड़ के तने से सटी हुई थी, उनकी तरफ ही देख रहा था. वह मुस्कुरा रहा था, पर वह थोड़ा बिखरा और विक्षिप्त सा लग रहा था. उससे ज़्यादा अजनबी. सीरत ने एक सीरिंज पर लड़के की नरम पकड़ को देखा. मामू की नज़र उसपर कुछ सेकेंड बाद पड़ी. उनकी निगाहें क्रोध में बदल गईं. सीरत की निगाहों में गम था.
सीरत की निगाहें लड़के पर टिकी थीं और बिना उससे निगाह हटाए सीरत सुबकियां भर रोने लगी. उसे सबकुछ याद आ रहा था – साहिल, ज़बरदस्ती उसके पूरे बदन को छूता उसके हाथ, अपनी मां के साथ उसकी खुद की मायूसी, हताशा – सब एक साथ बहने लगे. वह अपनी नज़रें हटाकर झेलम की ओर देखने लगी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी.
उस पल, उसे लगा कि उसने अपनी पूरी ज़िंदगी देख ली है: दो पाटों के बीच – अपनी पसंद और आज़ादी की चाहत – के बीच उलझी हुई. वह कह सकती थी कि यह उसका अपना ट्रॉमा है, ये बाबा की गलती है; पर पानी को हाथ लगाने के बाद ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया. वह बाबा के साथ फिर से मिल गई थी, लेकिन अब उसका अहसास गायब हो गया था. कोई दानिश नहीं, नोट नहीं जो उन्होंने उसके लिए छोड़ा हो, आगे बढ़ने के लिए उसके पास कोई रास्ता ही नहीं था.
वो लड़का बुदबुदा रहा था, उसकी सुस्त हंसी और सीरत का रोना माहौल के सन्नाटे में खलल डाल रहे थे. पर मामू ज़्यादा देर तक अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाए और लड़के को बुरा-भला बोलना शुरू कर दिया.
“किस समुदाय से हो तुम? शिकस्लाद! मैं तुम्हारे पिता को ढूंढूंगा और उन्हें सब कुछ बताऊंगा! अपनी ज़िंदगी के साथ ऐसा करने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी!”
मामू के मुंह से इन बातों को सुन सीरत हैरत में पढ़ गई. इससे पहले उन्हें कभी ऐसे बोलते नहीं सुना था. उसे हॉस्पिटल के उस बूढ़े इंसान की याद आ गई. उसने मामू का हाथ पकड़ लिया.
“इससे ऐसे बात मत कीजिए.” वो रोते हुए बोल रही थी, “वो जैसा है उसे वैसी हालत में ही छोड़ दीजिए, नहीं तो वो आत्महत्या कर लेगा.”
मामू ने खीझ से भरकर सीरत की तरफ देखा. पर बाद में वे अफसोस से भर गए.
“मुझे तुम्हें यहां लेकर ही नहीं आना चाहिए,” उन्होंने कहा, ”सब मेरी गलती है. अब मैं तुम्हारी मां से नज़रे कैसे मिलाउंगा?”
“मुझे घर लेकर चलिए,” खड़े होकर, स्कार्फ से अपने आंसूओं को पोंछते हुए सीरत ने कहा, “मुझे पता नहीं मेरे साथ क्या हो रहा है.”
दोनों घर लौट आए. सीरत बेसुध सी सीधे अपने बिस्तर पर गिर पड़ी, सदमा उसके शरीर के भीतर तक घुस चुका था. उसके बाद क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं. रात भर वह बेहोशी से होश में आती-जाती रही. कभी उसे अपनी मां की धीमी सिसकियां सुनाई देतीं, तो कभी उसे साहिल की हंसी सुनाई देती. और कभी सिर्फ खामोशी, जो उससे बातें कर रही होती, उसे उसके किए के बारे में बता रही होती.
बेसुधी के इस पलों के बीच कहीं सीरत ने देखा कि उसकी छोटी सीरत उससे बात कर रही है. उसका पाप क्या था? बड़ी सीरत ने कौन सा अपराध किया था?
क्या प्यार, आगे बढ़ने की चाहत, पैसा और एक खुश, ट्रॉमा मुक्त ज़िंदगी की ख्वाहिश करना अपराध था?
दो दिनों तक उसकी बेसुधी और छोटी सीरत के साथ बातचीत चलती रही. उसके तसव्वुर में छोटी सीरत ने उसकी सारी फटी हुई नसों को चूमा और उसे मीठा शर्बत पिलाया. और जब जाने का वक्त आया तो उसने बड़ी सीरत को गले से लगा लिया. उसके गले लगने में मां की खुशबू आ रही थी – कोमल, मीठी और ज़िद की हद तक अनुशासित.
जब वह जागी, तो वह बिस्तर से उठी और अपने एक छोटे से शीशे के सामने बैठ गई. बहुत देर तक वह खुद को देखती रही. उसकी मां आई और उसके बालों में कंघी की. उन्होंने कुरानशरीफ की कुछ आयतें पढ़ीं.
“ऐ परवरदिगार ! हम तेरी ही इबादत करते हैं, और तुझी से मदद मांगते हैं, हमको सीधे रास्ते पर चला, उन लोगों का रास्ता जिन पर तू अपना फज़ल और करम करता रहा, न उनका जिनपर गुस्सा होता रहा और न गुमराहों का.
[सूरह फातिहा: 7]
अम्मा ने उसके सिर पर आयतें फूंकीं. उन्होंने उसके पैरों पर कुछ पाक जल छिड़का. उसे खाना खिलाया.
सीरत ने आंखें बंद कीं तो बाबा का चेहरा देखा. वह उसे हाथ हिलाकर इशारा कर रहे थे, उसे अपने भीतर की सुंदरता को खोजने के लिए कह रहे थे.
अब समय आ गया वो उन्हें जाने दे.
AUTHOR’S NOTE:
आप एक नशाखोर का चित्र बनाएं. क्या उनके बाल गंदे होंगे, उनकी आंखें लाल होंगी, होंठ रंगहीन और सूखे-सूखे, चेहरा दुबला-पतला धंसे हुए गाल, शायद वह आदमी हो? आपकी कल्पना में कोई 20-25 साल का व्यक्ति आएगा. शायद आप यह भी मानें कि वो ‘गैर-ज़िम्मेदार’ होगा.
हमारी कल्पनाओं में नशा करनेवालों की एक तयशुदा छवि क्यों है? क्या इसका कारण एक समान सोच वाली विश्वास प्रणाली है? क्या हम उसे एक ‘सभ्य परिवार’ से आने वाले व्यक्तियों के रूप में देखते हैं, जो बुरे दोस्तों के चंगुल में फंस गया है? क्या हम उसे गरीबी में जी रहे व्यक्ति के रूप में देखते हैं जिसके पास और कोई चारा ही नहीं है? लेकिन क्या हम इसे विवाद से उभरी स्थितियों के रूप में देखते हैं?
हम कश्मीर में नशे की लत को महिलाओं के नज़रिए से देखना चाहते थे. परद-दर-परद व्यवस्था की विफलताएं खुलती गईं. ज़्यादातर महिलाएं घर पर कलंक या बदनामी के डर से बचने के लिए दूर दूसरे राज्य में जाकर अपना इलाज करवाना पसंद करती हैं. महिलाओं के लिए नशा मुक्ति केंद्रों की अनुपस्थिति, हर वक्त पहचाने जाने का डर, सांस्कृतिक जटिलताएं और कश्मीर में जीवन की रोज़मर्रा की चुनौतियां इस मुद्दे की बस ऊपरी परत को ही ही खोलती हैं.
हमने नशे की लत से ग्रस्थ दो तरह की कश्मीरी महिलाओं की ज़िंदगियों के ज़रिए कश्मीरी महिलाओं के अनूठे सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को मिलाने की कोशिश की. एक कहानी एक युवा महिला की है जो अपने हिंसक साथी के साथ मिलकर अलग-अलग तरह के नशे के ज़रिए जीवन में किसी तरह के जुड़ाव को खोज रही है, दूसरी कहानी में एक मध्यम आयु वर्ग की महिला बेइरादतन खुद को दवाइयों और डॉक्टरों की लंबी-लंबी पर्चियों पर निर्भर पाती है (इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए इस किताब को पढ़ा जा सकता है).दोनों महिलाओं को नशे की लत है, जो उन्हें अलग-थलग कर देता है, लेकिन कश्मीर के गहरे मनोवैज्ञानिक-भूगोल को भी दर्शाता है.
दोनों महिलाएं अपने लिए मान्यता, सम्मान और सामंजस्य के रास्ते खोजने के लिए संघर्ष करती हैं.
वैसे सीरत की कहानी को मैंने इस मोड़ पर छोड़ा है जहां वो नशे की लत से छुटकारा पाने का संकल्प लेती है. पर रिपोर्टस के मुताबिक कश्मीर में नशा छोड़ने के बाद लौट-लौट कर उसके दौरे आने के कई मामले हैं जो अक्सर ओवरडोज़ से मौत का कारण बनते हैं. मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों को महामारी की तरह मौतों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि इससे निपटने के लिए उन्हें एक सख्त सांस्कृतिक दृष्टिकोण से लड़ना पड़ता है. उनके पास बहुत कम या बिलकुल भी संसाधन नहीं होते हैं. इस बीच, बेरोज़गारी, मनोरंजन के लिए अच्छे, स्वस्थ रास्ते नहीं हैं और न ही सही रास्ता दिखाने वाले, सहयोग और आगे बढ़ने के रास्ते का भी अभाव, साथ ही जेंडर के खांचों को लेकर कठोरता, ये सारे पहलू कश्मीरी युवाओं को नशे की लत की ओर धकेलने का काम करते हैं.
यह एक अंधकारमय भविष्य है. जितनी जल्दी हम इसे स्वीकार करेंगे, उतनी जल्दी हम संसाधन जुटा सकेंगे, रणनीति बना सकेंगे, और कश्मीरी महिलाओं को उनके भविष्य के निर्माण में सहयोग देने के लिए मिलकर काम कर सकेंगे, जिसकी वे कल्पना करती हैं और जिसकी वे हकदार हैं. यह एक नशेड़ी कश्मीरी की शारीरिक रचना है.
मदद:
हेल्पलाइन नंबर [राष्ट्रीय और हॉस्पिटल]:
राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं स्नायु विज्ञान संस्थान(निमहांस): +91 194 241 0037
सुकून हेल्पलाइन:1800-180-7202 / टोल फ्री नंबर: 14446
निमहांस चाइल्ड गाइडलाइंस एंड वेलबिंग सेंटर: 9419683109
सरकारी मेडिकल कॉलेज, बारामुल्ला (जीएमसी):9419982645
एसएमएचएस हॉस्पिटल: 0194 250 4793
नशा मुक्ति केन्द्र हेल्पलाइन:
आगाज़ मुक्ति केंद्र: 091496 22795
एचएनएसएस ड्रग्स नशा मुक्ति केंद्र: 097969 15900
एनजीओ हेल्पलाइन:
कॉओज़: 91038 88755
हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन: 7006060077
वाइट ग्लोब: 097971 60070
इस लेख का अनुवाद सुमन परमार ने किया है.