हम

जहां हम खोजते हैं सत्ता का हमसे, हमारी सोच, हमारे अस्तित्व, हमारी देह और आत्मीयता से क्या रिश्ता है. हम जो अपने अंदर असीम अभिलाषाएं, आकांक्षाएं समेटे हुए हैं. हमारे भीतर कुछ चाहतें भी हैं, कुछ छोटेमोटे विरोध भी हैं. हम जिनमें मुहब्बतों की ख्वाहिशें भी हैं और हिंसा की संभावनाएं भी. हम जिसके ज़रिए राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश करता है. हमारा यह तन और मन हमारी बनती बिगड़ती पहचानों का महल है और यादों का मकबरा भी. आए दिन इसमें कला और खूबसूरती की रासलीला भी खेली जाती है.

दो दुनियाओं के बीच

मैं समझती हूं कि व्यावसायिक यौन शोषण से बाहर निकलने में महिलाओं की मदद की जानी चाहिए. व्यवसायिक यौन शोषण से बाहर निकलना संभव है. अगर हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जो अपनी औरतों की परवाह करता है, तो व्यावसायिक यौन शोषण को सामान्य नहीं माना जा सकता और न ही ऐसी गतिविधियों को जारी रहने दिया जा सकता है.

“किस बच्चे ने कास्ट सर्टिफिकेट अभी तक जमा नहीं कराया है.”

सरोजनी नगर, महानगर दिल्ली के दक्षिण में बसा एक इलाका है. पूरी दिल्ली में यह इलाका किफायती दामों पर मिलने वाले फैशनेबल कपड़ों के लिए मशहूर है. इसके आसपास सफ़दरजंग, साउथ एक्स जैसे महंगे रिहाइशी इलाके हैं. मेरा जन्म यहां से कुछ किलोमीटर दूर पुरानी दिल्ली में हुआ था. मैं बहुत छोटी थी जब मेरे माता-पिता ने पुरानी दिल्ली को छोड़ यहां बसने का फैसला किया था.

एक हिंदी ग्राफिक उपन्यास शिक्षा के बारे में हमारी समझ कैसे बदल रहा है

बिक्सू, हिंदी का सर्वाधिक चर्चित ग्राफिक नॉवेल है. कहानी में बारह साल का लड़का विकास कुमार विद्यार्थी जिसे प्यार से सभी बिक्सू पुकारते हैं, अपने घर से दूर एक मिशनरी बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया है. एक तरफ पीछे छूटे घर, गांव और परिवार की याद है तो दूसरी तरफ नई दुनिया, दोस्त और बोर्डिंग स्कूल के विचित्र अनुभव.

एक ट्रांसजेंडर शिक्षक के शिक्षा के अनुभव

डॉ. राजर्षि चक्रवर्ती बर्द्धमान विश्वविद्यालय में इतिहास विषय पढ़ाते हैं और बतौर सहायक प्रोफेसर कार्यरत हैं. इतिहास के एक शिक्षक के रूप में उनकी यात्रा 1999 से शुरू होती है जब उन्होंने कलकत्ता के तिलजला ब्रजनाथ विद्यापीठ में पहली बार पढ़ाना शुरू किया था. राजर्षी 1997 से एलजीबीटीक्यूआई+(LGBTQIA+) आंदोलनों से भी जुड़े हैं.

“हमें अपने शरीर को देखकर शर्म आती थी, इसलिए हम खुद को और अपनी देह को पसंद नहीं करते थे”

लेखिका, रंगकर्मी और दलित एक्टिविस्ट दू सरस्‍वती की निगाह में समुदाय और व्‍यक्ति एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं. उनका रंगकर्म और कविकर्म व्‍यक्ति के निर्माण को ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्‍कृतिक ताकतों की संयुक्‍त उपज मानता है.

लव, सेक्स और क्‍लासरूम

पढ़ाई के दौरान हमें पांच बार फोटोसिंथेसिस के बारे में पढ़ना पड़ा. छठी क्लास से ग्यारहवीं तक हर साल लगातार मैं उसकी परिभाषा भूल जाता था इसलिए मुझे फिर से रटना पड़ता था, बावजूद इसके कि फोटोसिंथेसिस का मतलब मैं अच्छे से समझता था. इसी तरह हर साल मुझे बार-बार सीखना पड़ता था कि मेरी क्‍लास के लड़के दूर से ही मेरी हकीकत सूंघ लेते थे.

चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर

वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी  ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.

छेड़खानी

हमारे पहले दो सत्र खेलकूद के साथ एक दूसरे को जानने की कोशिश थे. पहले सत्र में, बहुत सारे खेल खेलने के बाद जब हम बातचीत के लिए बैठे, तो टोली की एक 18 या उससे कम उम्र की लड़की ने झट से कहा कि इस सत्र ने उसे उसके बचपन की याद दिला दी.

“अनौपचारिक क्षेत्र में यौनकर्म करने वाली महिलाओं के अनुभव गिग इकॉनमी वर्कर्स की तरह हैं”

मंजिमा भट्टाचार्य एक नारीवादी शोधकर्त्ता, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ऑनलाइन डेटिंग एप्प ‘टिंडर’ जैसे अन्य एप्स के आगमन से कुछ ही पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों (इंटिमेसी) को इंटरनेट कैसे बदल रहा था. इनकी किताब इसपर एक दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान करती है.

“मेरी किताब इंटरनेट का टिंडर से पहले का इतिहास है”

अपनी 2021 में प्रकाशित पुस्तक, ‘इंटिमेट सिटी’ में भट्टाचार्य ने वैश्वीकरण और तकनीक ने कैसे यौन वाणिज्य (सेक्सुअल कॉमर्स) को बदला है, इसकी तहकीकात की है. ऑनलाइन डेटिंग एप्प ‘टिंडर’ जैसे अन्य एप्स के आगमन से कुछ ही पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों (इंटिमेसी) को इंटरनेट कैसे बदल रहा था.

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