देखभाल के काम को लेकर हमारे बीच इतनी समझ तो बन चुकी है कि इसमें जितना शारीरिक श्रम लगता है उससे कहीं ज़्यादा मानसिक श्रम भी शामिल है. साथ ही जेंडर से जुड़े इसके गहरे रिश्ते की पड़ताल सामाजिक और अकादमिक दोनों ही तरीकों से की जा चुकी है. सवाल यह है कि किसी की देखभाल करने वाले ख़ुद अपने काम को कैसे देखते हैं? हमने मीना, परमेश्वर, एना, नीलिमा और बिंदु से बात कर उनसे इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “ये सब साफ़ रखना, यहां से हम शुरू करते हैं पर सफ़ाई दिखती कहां हैं?”
किसी के देखभाल की अपेक्षा किससे की जाती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या असर पड़ता है? बुरी तरह से थकान और निराशा के अलावा देखभाल करने वालों का मन कौन सी भाषा कहने की कोशिश करता है? इस काम में जाति और जेंडर की क्या भूमिका है? क्या ये काम सभी के लिए सामान्य है या किसी ख़ास जाति और जेंडर से जुड़े लोगों के ज़िम्मे ये काम आता है?
मन के मुखौटे के तीसरे एपिसोड – ‘मैंने साफ़ किया तुम्हारा…’ में हम एक नई कहानी के ज़रिए उन लोगों को भी सुनेंगे जो देखभाल के काम में लगे हुए हैं. उनके अनुभवों के ज़रिए हम इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे.
‘मैंने साफ़ किया तुम्हारा…’ कहानी मूलत: अंग्रेजी कहानी ‘आई क्लीन द-‘ का हिन्दी अनुवाद है. यह कहानी ग्रांटा वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुकी है. इसका हिंदी अनुवाद माधुरी आडवाणी ने किया है. इस स्टोरी को 2021 कॉमनवेल्थ शॉर्ट स्टोरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.