कामकाजी महिलाएं

सद्भावना ट्रस्ट की लड़कियों की नज़र से

कामकाजी महिलाएं

जुबान ने, जो एक नारीवादी प्रकाशक है, ‘द पोस्टर वीमेन प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत भारत के सभी राज्यों से महिला आंदोलनों के पोस्टर जमा किए. इन पोस्टरों में से ‘महिला और काम’ पर जमा हुए पोस्टर हमने सद्भावना ट्रस्ट की बेबाक लड़कियों को दिखाए. ये युवा मुसलमान लड़कियां हैं जिन्हें प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वे अपने समुदाय की लीडर के रूप में उभरें. उनसे कहा गया कि वे भी कामकाजी महिला का चित्र बनाएं और उसके बारे में लिखें. उन्होंने जो दर्शाया, द थर्ड आई उन्हीं के शब्दों में आपके सामने पेश कर रही है.

समरीन रईनी

“मेरा नाम समरीन रईनी है और अभी हमने पत्रकारिता करने के लिए ख्वाजा मोईनुद्दीन चिस्ती विश्वविद्यालय में दाख़िला कराया है. साथ ही साथ सद्भावना ट्रस्ट में हम यंग लीडर हैं और संस्था में जो भी कार्यक्रम होते हैं उसमें हम दिल से शामिल होते हैं और सीखते हैं.

यह पोस्टर हमने यह सोचकर बनाया है कि जिस काम का हमें घर में मूल्य नहीं दिया जाता, वही काम हम अगर शेफ बनकर करते हैं तो वह हमें एक नई पहचान और श्रम का मूल्य प्रदान करता है. यह वह मूल्य है जो हमारे घरों में नहीं दिया जाता. मेरी मां को खाना पकाने और लोगों को खिलाने का बहुत शौक़ था लेकिन मेरी मां शैफ़ शब्द से परिचित नहीं थी.”

ज़ोया शमीम

“मेरा नाम ज़ोया शमीम है. मैं बालागंज की रहने वाली हूं. पिछले 3 साल से सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी हुई हूं. मैं अपने मोहल्ले की यंग लीडर हूं. बीकॉम की पढ़ाई कर रही हूं. मेरा सपना हैं कि मैं आइएएस बनूं.

मैने महिला ई-रिक्शा चालक इसलिए बनाया है कि हमेशा से इस काम में ज़्यादातर पुरूष दिखाई देते रहे हैं. और हमारे लखनऊ शहर में अभी कई लड़कियों और महिलाओं ने ई-रिक्शा चलाने को अपना व्यवासाय बनाया है, महिलाओं द्वारा किया जाने वाला यह काम सीधे मर्दाना समाज को चुनौती देता है. यह काम हमें बराबरी का दर्जा देता है.”

मनतशा वसीम

“मेरा नाम मनतशा वसीम है. मैं पिछले तीन साल से सद्भावना ट्रस्ट के लीडरशिप बिल्डिंग प्रोग्राम से जुड़ी रही हूं. समुदाय में यंग लीडर भी हूं. जब हम काम और पैसा पर बात कर रहे थे तो हमने घर के काम को भी पैसे के दायरे में देखने की कोशिश की. जिसके तहत हमने अपने पोस्टर में यह दर्शाने की कोशिश की है कि जो महिलाएं अपने घर में परिवार के लिए खाना पकाती हैं उसके लिए न तो उन्हें पैसा मिलता है और न उनके इस काम की कोई अहमियत है. लेकिन वही काम अगर हम बाहरी दुनिया के लिए करते हैं तो सीधे हमारे काम का रिश्ता पैसे से जुड़ जाता है, फिर तो वह महिला पढ़ी लिखी हो या न हो कोई फर्क नहीं पड़ता.”

हुमा फ़िरदौस

“मेरा नाम हुमा फिरदौस है. मैं कैंपल रोड की रहने वाली हूं, मैं संघर्षशील महिला हूं, मेरा केस सद्भावना ट्रस्ट में था. मै यंग लीडर प्रोग्राम से जुड़ी रही हूं. अभी मैं नौकरी कर रही हूं.

मैंने मिस इंडिया का पोस्टर इसलिए बनाया है क्योंकि मुझे बचपन से मॉडलिंग और मेकअप करने का बहुत शौक था. लेकिन परिवार में मुझे अपने सपने को पूरा करने का मौका नहीं मिला. इसलिए मैंने अपने सपने को इस कागज़ पर उतार दिया. आज की तारीख में मिस इंडिया बनना अपने आप में बहुत बड़ी बात हैं, लेकिन यह भी एक हुनर है जो महिलाओं को उनका रोज़गार और उससे जुड़ी पहचान देता है. साथ ही हमारे काम को समाज में इज़्ज़त मिलती है.”

पारूल हसन

“मेरा नाम पारूल हसन है. मैं पिछले 4 सालों से सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी हुई हूं. मैं अकबरनगर की रहने वाली हूं. वर्तमान में मैं मोहल्ले की यंग लीडर हूं, और सद्भावना ट्रस्ट में होने वाले हर प्रोग्राम में जुड़ती हूं.

मैंने महिला फोटोग्राफर इसलिए बनाया है क्योंकि हमने सबसे पहले सद्भावना में आकर आम लड़कियों के हाथ में कैमरा देखा था. तबसे हमने सोचा कि यह काम तो हम भी कर सकते हैं. क्यों हमको घर में यह बताया गया कि यह काम मर्दो का है. घर के बाहर निकलकर देखा तो हमने पाया कि बात मौके की है, यह काम तो कोई भी कर सकता हैं. इसलिए हमने फोटोग्राफर को प्रोफेशन के रूप पोस्टर में दिखाने की कोशिश की है.”

शाज़िया बानों

“मेरा नाम शाज़िया बानों है. मैं डालीगंज की रहने वाली हूं, मैं सद्भावना ट्रस्ट से पिछले 6 साल से जुड़ी हुई हूं. और अभी भी सद्भावना ट्रस्ट के कार्यक्रम से लगातार जुड़ी रहती हूं. मेरा सपना था कि मैं पढ़-लिखकर न्यूज़ एंकर बनूं, लेकिन परिवार की स्थिति ख़राब होने के कारण मैं एंकर तो नहीं बन पाई. लेकिन अन्य लड़कियों के लिए मैं ये संदेश देना चाहती हूं कि पत्रकारिता की पढ़ाई करें और एंकर बनकर वे समाज के संवेदनशील मुद्दों पर आवाज़ उठाएं. ये प्रोफेशन लड़कियों को मज़बूती और आत्मविश्वास देगा.”

नीलम निषाद

“मेरा नाम नीलम निषाद है. मैं बालागंज की रहने वाली हूं. पिछले एक साल से सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी हुई हूं. हमने महिला किसान का पोस्टर इसलिए बनाया है, क्योंकि हम लोगों को यह बताना चाहते हैं कि जब हम कहते है जय जवान जय किसान तो हम महिलाओं के काम को भूल जाते हैं. महिला घर के काम के बाद खेतों में काम करती हैं, तो इस काम को पैसे से क्यों नही जोड़ा जाता? खेती में महिलाएं पुरूषों के बराबर काम करती हैं, लेकिन जब अनाज को बाज़ार ले जाना होता है तो पुरूष ले जाते हैं, फिर यह पूरी कमाई का हिस्सा पुरूष का बन जाता है.”

सद्भावना ट्रस्ट (लखनऊ, उत्तरप्रदेश) सामाजिक बदलाव और लैंगिक रूप से न्यायिक समाज को गढ़ने के विचार से काम करता है. सद्भावना ट्रस्ट किशोरियों, युवा और वयस्क महिलाओं को मज़बूत बनाने और उनमें नेतृत्व के गुण पैदा करने का प्रयास करता है. इस काम को यह नारीवादी नज़रिए से सीधे सामुदायिक हस्तक्षेप, शोध, ट्रेनिंग, पाठ्य सामग्री के विकास और वकालत के ज़रिए अमल में लाती है. सद्भावना युवा महिला नेतृत्व कार्यक्रम, जेंडर दृष्टिकोण और तकनीकी कौशल विकसित करने का मिश्रण है.

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