डिजिटल शिक्षा पद्धति

फ से फ़ील्ड, श से शिक्षा: एपिसोड 2 अचूकी और मारवाड़ी फैमिली

फ से फ़ील्ड, श से शिक्षा के दूसरे एपिसोड में सुनते हैं मनीषा को. अपनी धारदार हाज़िर-जवाबी और अविराम बोलते रहने की ज़बरदस्त कला के ज़रिए अचूकी अपने नाम को सार्थक बनाती है. जितना उत्साह उसके भीतर अपनी कहानियों को लेकर दिखाई देता है, ठीक उसके उलट अपने मारवाड़ी बनिया समुदाय के बारे में बात करते हुए वह किसी अबूझ पहेली की तरह उलझी नज़र आती है.

“मैं”- शब्द एक, परिभाषाएं अनेक

“मैं”- इस पहेली के बारे में कभी न कभी तो हम सब ने सोचा ही है. आज सेल्फी के इस ज़माने में जहां मोबाइल फ़ोन का बटन दबाते ही ख़ुद से ही ख़ुद की तस्वीर सेकेंड्स में खींच लेना संभव है, वहां शायद यह सवाल और भी पेचीदा हो जाता है

देखो मगर प्यार से

दफ्तर जाते हुए, मंडी क्रॉसिंग चौक से आप रोज़ गुज़रती हैं. खचाखच भीड़ और गाड़ियों के शोर से होते हुए. सड़क पर आंख गड़ाए, निकलने की जल्दी में क्या देखा-अनदेखा हो जाता है, इसके बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं होता.

दुनिया रोज़ बनती है

कोविड की दूसरी लहर के दौरान लोग न केवल बीमारी से परेशान थे बल्कि भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी से बेहाल वे अनाज के एक-एक दाने के लिए तड़प रहे थे. हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए यह दोहरी मार है. मनीषा ने बाकि साथियों के साथ मिलकर द थर्ड आई रिलीफ़ वर्क के ज़रिए फलौदी गांव के कई इलाकों में घूम-घूम कर अनाज बांटने का काम किया ताकि लोगों को थोड़ी राहत मिल सके.

टीचर टॉक्स, भाग 2

टीचर टॉक्स, भाग 2

जहां हम देश की अलग अलग जगहों के शिक्षकों से मिलते हैं, जो बताते हैं कि वे भाव और शिक्षा शैली के स्तर पर किस तरह कोविड 19 की नई ‘हकीकत’ के साथ बदल रहे हैं.

टीचर टॉक्स

टीचर टॉक्स, लॉकडाउन संस्करण, भाग 1

जिसमें हम भारत के अलग-अलग राज्यों के शिक्षकों से मिलेंगे और जानेंगे कि कैसे वे इस ‘नए सामान्य’ के अनुरूप अपने आप को और अपने पढ़ने-पढ़ाने के तरीके को ढाल रहे हैं.

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