मर्दानगी

हॉस्टल डायरी

जोधपुर में समाज के हॉस्टल सिर्फ़ लड़कों के लिए क्यों हैं? हॉस्टल के अंदर इतना अकेलापन क्यों है? क्या अच्छा लड़का होना एक दिन के लिए छोड़ा जा सकता है? लर्निंग लैब के तहत होने वाले ‘मंडे अड्डा’ में ऐसे कई सवालों को खोलते-खोलते यह हॉस्टल डायरी जितना विकास को चकित कर रही थी, उतना ही यह हमारे भीतर की उत्सुकता को भी जगा रही थी.

“मुझे सभी औरतों से नफरत है”

डाक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता एवं शोधार्थी हरजंत गिल, जिन्होनें भारतीय मर्दवाद (या मर्दानगी) पर कई डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाई हैं, कहते हैं कि, “मर्दवाद के बारे में बात करते वक्त एक बड़ी चुनौती यह आती है कि आप इस बातचीत में मर्दों को शामिल करते हैं और वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें इस बातचीत में किधर जाना है या इस सवाल को कैसे समझना है…

क्या हो अगर आपका काम लड़कों और मर्दों को ‘बेहतर लड़के और मर्द’ बनना सिखाने का हो?

सामाजिक विकास के क्षेत्र में जेंडर पर होने वाले काम में पारम्परिक रूप से महिलाओं और लड़कियों को ही शामिल किया जाता रहा है. नब्बे के दशक के मध्य तक आने के बाद ही कुछ चुनिंदा गैर-सरकारी संगठनों ने जेंडर के मुद्दे पर लड़कों और पुरुषों के साथ काम करना शुरू किया.

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