पुलिस

पुलिस सदैव (किसकी) सेवा में?

आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियां न तो छुपी हुई हैं और न ही ये कोई नई खोज हैं. लेकिन जिस चीज़ पर अभी भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया है, वह यह है कि कैसे ब्राह्मणवादी व्यवस्था, अपराधीकरण और हमारी पुलिसिंग प्रणाली के हर स्तर पर घुस चुकी है?

आप क्या चाहते हैं – समझौता या न्याय?

जब सौदे की बात आती है, तब दिमाग में अनगिनत महिलाओं की मौतें आ जाती हैं. क्योंकि समाज औरत के ज़िंदा होते हुए दहेज के नाम पर और उसके मरने पर लाश का सौदा करता है. महिला मरी नहीं कि गांव प्रधान, थाना, ससुराल वाले सभी के दिमाग में यही ख्याल आता है कि अब जो हो गया, वह हो गया, मामले को यहीं रफा-दफा करते हैं और बोली लगाते हैं.

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