अंक 004: शिक्षा

नारीवादी शिक्षा: अनुभवों और सवालों की धारा में

एक ट्रांसजेंडर शिक्षक के शिक्षा के अनुभव

डॉ. राजर्षि चक्रवर्ती बर्द्धमान विश्वविद्यालय में इतिहास विषय पढ़ाते हैं और बतौर सहायक प्रोफेसर कार्यरत हैं. इतिहास के एक शिक्षक के रूप में उनकी यात्रा 1999 से शुरू होती है जब उन्होंने कलकत्ता के तिलजला ब्रजनाथ विद्यापीठ में पहली बार पढ़ाना शुरू किया था. राजर्षी 1997 से एलजीबीटीक्यूआई+(LGBTQIA+) आंदोलनों से भी जुड़े हैं.

क्या आप हमें जानते हैं?

सन् 2013 में निरंतर संस्था ने एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म का निर्माण किया था. यह फ़िल्म उन लोगों के स्कूली अनुभवों पर आधारित थी जो स्त्री-पुरुष बाइनरी में खुद को अनफिट महसूस करते थे. नृप, सुनील और राजर्षि इस फ़िल्म के केंद्रीय पात्र हैं जो क्रमशः ठाणे, बेंगलुरु और कोलकाता में रहते हैं.

“हमें अपने शरीर को देखकर शर्म आती थी, इसलिए हम खुद को और अपनी देह को पसंद नहीं करते थे”

लेखिका, रंगकर्मी और दलित एक्टिविस्ट दू सरस्‍वती की निगाह में समुदाय और व्‍यक्ति एक दूसरे से आपस में जुड़े हुए हैं. उनका रंगकर्म और कविकर्म व्‍यक्ति के निर्माण को ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्‍कृतिक ताकतों की संयुक्‍त उपज मानता है.

लव, सेक्स और क्‍लासरूम

पढ़ाई के दौरान हमें पांच बार फोटोसिंथेसिस के बारे में पढ़ना पड़ा. छठी क्लास से ग्यारहवीं तक हर साल लगातार मैं उसकी परिभाषा भूल जाता था इसलिए मुझे फिर से रटना पड़ता था, बावजूद इसके कि फोटोसिंथेसिस का मतलब मैं अच्छे से समझता था. इसी तरह हर साल मुझे बार-बार सीखना पड़ता था कि मेरी क्‍लास के लड़के दूर से ही मेरी हकीकत सूंघ लेते थे.

चाह और फ़र्ज़ के बीच फैला नूर

वह 2006 का एक यादगार दिन था. रियाध में मेरे अब्बा के चचेरे भाई जुमे की नमाज़ के बाद घर आए हुए थे. अम्मी  ने उस दिन कोरमा बनाया था. दस्तरख्वान पर बैठकर हम सब ने कोरमा खाने के बाद कहवा पिया.

बोलती कहानियां: दाई

बोलती कहानियां के इस नए एपिसोड में सुनिए लेखक हरीश मंगल की कहानी का हिन्दी अनुवाद – दाई. दाई कहानी की मुख्य किरदार हैं- बेनी मां, जो आम तो बेचती ही हैं, साथ ही वे दाई के काम में भी बहुत कुशल हैं.

एकल इन द सिटी, एपिसोड 04: मराठवाडा का एकल महिला संगठन

निरंतर पॉडकास्ट के सीरीज़ ‘एकल इन द सिटी’ में हम शहरों और गांवों की कई एकल आवाज़ों से आपकी मुलाकात करवाते रहे हैं. इस बार एपिसोड 4 में एक आवाज़ नहीं बल्कि मिलिए मराठवाडा, महाराष्ट् के एकल महिला संगठन से. मतलब एकल महिलाओं का समूह!

शब्दों की आड़ में

मेरी एक छात्रा हुआ करती थी जो बहुत कम बोलती थी. बस उतना ही बोलती जितने की उसे ज़रूरत होती, वो भी काफी कम. ऐसा नहीं है कि उसे बोलने से डर लगता था या वह संकोची रही हो. बस अपने शब्‍दों को लेकर वह इतना सतर्क रहती थी कि जब तक समझ न आए क्‍या बोलना है, वह चुप रहती थी.

बात छिड़ेगी तो दास्तान बन जाएगी

ज़िंदगी में सबसे पहले हम अपनी सोच को एक संगठित तरीके से पेश करना कहां सीखते हैं? किस तरह की कल्पना और तथ्य के मिश्रण से इस सोच का जन्म होता है? वे कौन से कारक हैं जो एक सोच की उत्पत्ति से अभिव्यक्ति तक के फासले को प्रभावित करते हैं?

क्या आपको लाइब्रेरी का पता मालूम है?

भोपाल में रहने वाली सबा का मानना है कि “शिक्षा के बारे में स्कूल के बाहर बात की जानी चाहिए, स्कूल के बाहर स्टुडेंट होना ज़्यादा आसान है.” सबा भोपाल में 2010 से शिक्षक साथियों (पुस्तकालय के भूतपूर्व सदस्य) की मदद से ‘सावित्री बाई फुले फातिमा शेख पुस्तकालय’ चला रही हैं.

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