जूही जोतवानी के लेख

जूही, शहरी अध्ययन में डिप्लोमा के साथ साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं. शोध एवं संपादन में गहरी रूचि रखने वाली जूही, फिलहाल वीडियो संपादन एवं रचनात्मक लेखन के साथ-साथ खाना पकाने के कौशल को भी निखारने में निरंतर कार्यरत हैं. वे पिज़्ज़ा को कभी न नहीं कहतीं और प्रेरणा के लिए अपने बिल्ले 'गब्बर' के पास जाती हैं.

“मुझे सभी औरतों से नफरत है”

डाक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता एवं शोधार्थी हरजंत गिल, जिन्होनें भारतीय मर्दवाद (या मर्दानगी) पर कई डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाई हैं, कहते हैं कि, “मर्दवाद के बारे में बात करते वक्त एक बड़ी चुनौती यह आती है कि आप इस बातचीत में मर्दों को शामिल करते हैं और वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें इस बातचीत में किधर जाना है या इस सवाल को कैसे समझना है…

क्या हो अगर आपका काम लड़कों और मर्दों को ‘बेहतर लड़के और मर्द’ बनना सिखाने का हो?

सामाजिक विकास के क्षेत्र में जेंडर पर होने वाले काम में पारम्परिक रूप से महिलाओं और लड़कियों को ही शामिल किया जाता रहा है. नब्बे के दशक के मध्य तक आने के बाद ही कुछ चुनिंदा गैर-सरकारी संगठनों ने जेंडर के मुद्दे पर लड़कों और पुरुषों के साथ काम करना शुरू किया.

क्या आपको लाइब्रेरी का पता मालूम है?

भोपाल में रहने वाली सबा का मानना है कि “शिक्षा के बारे में स्कूल के बाहर बात की जानी चाहिए, स्कूल के बाहर स्टुडेंट होना ज़्यादा आसान है.” सबा भोपाल में 2010 से शिक्षक साथियों (पुस्तकालय के भूतपूर्व सदस्य) की मदद से ‘सावित्री बाई फुले फातिमा शेख पुस्तकालय’ चला रही हैं.

“मैं उनके घर में घुसकर उनका काम कर रही हूं, ये उनको मंज़ूर है. पर मैं उनकी लिफ्ट में जाऊं ये उन्हें मंज़ूर नहीं है.”

“आप तो एक महिला ज़ोमैटोकर्मी की तलाश में थीं न, और मैं वह नहीं हूं, तो क्या मैं अभी भी आपकी कहानी का हिस्सा हूं?” कुछ ही मिनट पहले ट्रांसमैन की अपनी असल पहचान को मेरे सामने ज़ाहिर करने बाद बनी ने मुझसे ये सवाल पूछा.

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