माधुरी आडवाणी के लेख

माधुरी को कहानियां सुनाने में मज़ा आता है और वे अपने इस हुनर का इस्तेमाल महिलाओं के विभिन्न समुदायों और पीढ़ियों के बीच संवाद स्थापित करने के माध्यम के रूप में करती हैं. जब वे रिकार्डिंग या साक्षात्कार नहीं कर रही होतीं तब माधुरी को यू ट्यूब चैनल पर अपने कहानियों का अड्डा पर समाज में चल रही बगावत की घटनाओं को ढूंढते और उनका दस्तावेज़ीकरण करते पाया जा सकता है. समाज शास्त्र की छात्रा होने के नाते, वे हमेशा अपने चारों ओर गढ़े गए सामाजिक ढांचों को आलोचनात्मक नज़र से तब तक परखती रहती हैं, जब तक कॉफ़ी पर चर्चा के लिए कोई नहीं टकरा जाता. माधुरी द थर्ड आई में पॉडकास्ट प्रोड्यूसर हैं.

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: सिंगल बेड

एक कमरा कितना कुछ कहता है, अंदर कौन रहता है… तुम अकेली रहती हो, या किसी के साथ? एक सवाल और हज़ारों कशमकश! अंकिता और रूहानी, कहानी एक सिंगल बेड की….

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: बुल्ली का फोटो

मेरी फोटो को सीने से यार, चिपका ले सैयां फेविकोल से… ट्यूशन सेंटर में चुलबुली लड़कियों के मज़ाक का केंद्र बनते-बनते कब एक लड़की की तस्वीर जेब में पहुंच गई, ये बात ज़ेहान के लिए भी घबराहट का विषय था. अब वो क्या करेगा?

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: मैग्ज़ीन से लेकर सुहागरात तक

मनाही, कामुकता जगाती है. जो चीज़ हमें जितनी मना होती है उसे लेकर उत्सुकता उतनी ही बढ़ जाती है. लेकिन क्या होता है जब अचानक से वो सबकुछ आपको मिल जाए? ‘फ से फ़ील्ड, इश्श से इश्क’ ऑडियो सीरीज़ में प्यार, फंतासियां, चाहतें, गुस्सा, मोहब्बतें – ये सबकुछ है.

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: इस्तेमाल किया हुआ कंडोम

क्या होता है जब बेटी द्वारा बहुत ही खराब तरीके से छुपाई गई चीज़ मां के हाथों में पड़ जाए? थर्रथराहट, सनसनाहट, झनझनाहट…हिंदी टीवी सीरीयल ड्रॉमा को और बढ़ाने के लिए बैकग्राउंड में जो ढैन..ढैन…ढैन…की आवाज़ें आती हैं वो सब आप ईमैजिन कर लीजिए लेकिन ये मामला तो उससे भी ज़्यादा बड़ा है! मामला है क्या? सुनने के लिए जल्दी से प्ले बटन पर क्लिक करें.

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: लव बाइट

मम्मी-पापा ठीक ही कहते हैं कि ‘हमें सब पता है ग्रूप स्टडी’ में क्या होता है!’ लेकिन उनको कोई कैसे ये समझाए कि ये उन्हें पता है, हमें थोड़ा न पता है. क्या होता है यही जानने के लिए तो हम साथ मिलकर पढ़ाई करते हैं! उफ्फ! इत्ती सी बात…पर, ये इत्ती सी बात कभी-कभी ज़िंदगी भर का राज़ बन जाती है…जैसा बोधी की इस कहानी में हो रहा है. क्या हो रहा है..? जानने के लिए जल्दी से प्ले बटन पर क्लिक करें.

फ से फील्ड, इश्श से इश्क: खेल खेल में

बचपन में दोस्तों के बीच खेल-खेल में अचानक से हम कब बड़े हो जाते हैं? वो कौन सा हॉर्मोन है जो अचानक से पूरे शरीर पर तारी हो धड़कनों को किसी बुलेट ट्रेन की तरह तेज़ कर देता है? झारखंड के पाकुर की रहने वाली मैमुना, गणित के प्रत्यक्ष अनुपात के फॉर्मूले की तरह सलीम की धड़कनों को 500 किलोमीटर प्रति मिनट की रफ्तार से तेज़ कर देती है.

ट्रेलर: फ से फील्ड, इश्श से इश्क

‘फ से फील्ड, इश्श से इश्क’ प्यार, फंतासियां, चाहतें, गुस्सा, मोहब्बतें…इस ऑडियो सीरीज़ में सबकुछ है. चाहतें, मज़ा और खतरा के अपने-अपने अनुभव जो देश के कोने-कोने से निकले हैं. ये कहानियां नारीवादी नज़रिए से यौनिकता को देखने की कोशिश कर रही हैं जिसके केंद्र में हमारा अवचेतन है.

विशेष फीचर: बायन

“बाबा, कोई डायन कैसे बनती है?” सूखी झील के किनारे खड़े होकर भागीरथ जब यह सवाल अपने पिता मलिंदर से पूछता है, उस वक्त उसकी बिछड़ी हुई मां की परछाई उसके ऊपर मंडरा रही होती है. महाश्वेता देवी की कहानी बायन में भागीरथ अपनी मां को याद करता है और यह जानने की कोशिश करता है कि कैसे उन्हें डोम समुदाय ने बायन (डायन) कहकर अलग कर दिया.

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 3: ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

ज़ूम कॉल पर बातों-बातों में जब मुस्कान ने कहा, “हमारे यहां तो ये सब चलता ही नहीं है” तो हमें थोड़ा समय लगा यह समझने में कि मुस्कान यहां प्यार करने और साथ ही गुस्सा करने की बात कर रही है. शुभांगणी जो राजस्थान के केकरी ज़िले से जुड़ रही थी उसने मुस्कान की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुझे तो लगता है कि बड़ों के लिए हम फुटबॉल हैं!

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 2: मैं कब बढ़ी हुई?

साहिबा के लिए गूगल बाबा, ज्ञान का भंडार हैं जहां वो सुबह से लेकर शाम तक लगातार घूमती रहती है और मानसिक स्वास्थ्य से लेकर तरह-तरह की जानकारियों का हल ढूंढती रहती है. ज़ूम कॉल पर 18 साल की साहिबा खुद के बारे में और खुद का ध्यान रखने के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है कि सभी उत्सुकता से उसकी बातों में डूबते रहते हैं. साहिबा की बातों में एक सवाल था जो लुके-छिपे ढंग से दिखाई दे रहा था – मैं कब बड़ी हुई?