शबानी हसनवालिया के लेख

शबानी हसनवालिया द थर्ड आई की संपादक हैं.

किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी, मगर कोई चेहरा भी पढ़ा है?

इस अंक में गौतम, हमसे अध्यापन कार्य की प्रक्रिया में क्रोध और उसकी बंदिशों पर चर्चा कर रहे हैं. गौतम का मानना है कि आनंद और उल्लास सीखने की प्रक्रिया में गहराई लाते हैं. गौतम भान, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट (IIHS) में अध्यापन कार्य से जुड़े हैं.

क्या वाकई भारत गांवों में बसता है?

द थर्ड आई के शहर संस्करण में गौतम भान के साथ हमने सरकारी नीतियों के बरअक्स वास्तविकता के बीच शहरों के बनने की प्रक्रिया, शहरी गरीबों की पहचान के सवाल, शहरी अध्ययन एवं कोविड महामारी की सीखें और भारत में शहरी अध्ययन शिक्षा के स्वरूप पर विस्तार से बातचीत की है.

“विज्ञान की शिक्षा का मतलब मिसाइल नहीं, बल्कि सड़क, बिजली और पानी है.”

हमने प्रो. मिलिंद सोहोनी से बात की और जाना कि सार्वजिनक स्वास्थ्य की हमारी अपेक्षाओं में विज्ञान की शिक्षा की क्या भूमिका है? कब हम विज्ञान के एक उपभोक्ता के रूप में बदल जाते हैं और भूल जाते हैं कि विज्ञान ने उन लोगों की सेवा करना बंद कर दिया है जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत है.

कोरोनाकाल में जो सरकार नहीं कर पाई, वो इन ग्रामीणों ने कर दिखाया.

पर्यावरण और विकास के वैकल्पिक मॉडलों के दस्तावेज़ीकरण पर दशकों से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता आशीष कोठारी द्वारा, उन समुदायों की जानकारी जिन्होंने महामारी से अपने को सुरक्षित रखा. आशीष कोठारी को हम एक पर्यावरणविद के रूप में जानते हैं. लेकिन एक पंक्ति के परिचय में उनके काम के विस्तार को नहीं समेटा जा सकता.

लेखन का काम

मगर कैसे किसी को कहानी के बारे में सोचना, उसको महसूस करना, समझना, सुनाना और अंत में लिखना सिखाया जाता है?

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