- कविता – विजिला चिरापद
- कला – श्रुजना निरांजनी श्रीधर
- कविता का अंग्रेज़ी से अनुवाद: प्रशांत पर्वातनेनि
द थर्ड आई कवियों और कलाकारों के साथ एक नई शृंखला पेश करने जा रही है जिसमें वे एक−दूसरे की दुनिया की व्याख्या करेंगे.
विजिला चिरापद मलयालम काव्य क्षेत्र में नवीनतम आवाज़ हैं. 39 वर्षीय चिरापद की कविताएं सारपूर्ण और कठोर हैं. जिन बातों को हम अनदेखा कर देते हैं, विजिला ठीक उन्हीं से हमारी मुलाकात करवाती हैं. हमें उनकी चोट महसूस करवाती हैं. जैसे – केरल के कम्यूनिस्ट (वामपंथी) इतिहास में जाति का खेल. एक दलित महिला के रूप में उनके अनुभव केरल के समाज पर उनकी लघु, विनोदपूर्ण कविताओं में उभर कर आते हैं.
चिरापद को शुरू से ही पढ़ने का बहुत शौक रहा है. वे हंसते हुए कहती हैं, “जब मैं स्कूल में थी तो अपने बड़े भाई (कर्ज़न) की कॉलेज की किताबें पढ़ती थी”. चिरापद के व्यक्तित्व और लेखन में व्यंग्य और सच्चाई साफ नज़र आती है. उनकी रोज़मर्रा की बातचीत में भी उनका ये व्यक्तित्व स्पष्ट तौर पर दिखलाई देता है, चाहे वे पेरांबरा में अपने घर से काम पर जाने के लिए बस में किए जाने वाले 2 घंटे के सफर की बात कर रही हों या अपने पिता के बारे में बताएं, जो बिस्तर से उठ नहीं पाते हैं. चाहे ज़िक्र उन दोस्तों और प्रशंसकों का हो जो उनके मलयालम में किए गए काम को अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं में अनुवादित करते रहते हैं, वे हर बात साफगोई से करती हैं. चिरापद का काम केरल के कई कॉलेजों के पाठ्यक्रम और ऑक्सफोर्ड इंडिया एन्थोलोजी ऑफ मलयालम दलित राइटिंग (2012) समेत कई पद्य संग्रहों (anthologies) का भी हिस्सा है.
चिरापद स्वर्गीय माधवीकुट्टी (उर्फ कमला सुरय्या), सत्चीदानंदन और केरल साहित्य अकादमी पुरुस्कार के विजेता एस जोसफ (माय सिस्टर्स बाइबल के लेखक जो केरल में जातिवाद की एक और शक्तिशाली आलोचना है) की प्रशंसक हैं. यहां तक कि केरल के समकालीन शक्तिशाली दलित काव्य में भी, चिरापद औरतों की दुनिया की अपनी अंतरंग, सहज खोज के लिए अलग दिखाई देती हैं.
श्रुजना दलित पैंथर आर्काइव की सह संस्थापक हैं. उन्होंने जब विजिला की कविताओं को पढ़ा तो उन्हें यह दिखा.
श्रुजना कहती हैं, “मैंने बतौर कलाकार अपनी शुरुआत कहानियों की किताबों से की. बचपन में कला के प्रति मेरी रुचि कहानियों की किताबों की वजह से ही बढ़ी. मैं अपने आपको दलित कलाकार के रूप में नहीं देखती. मैं एक विज़ूअल आर्टिस्ट हूं, जिसका जन्म एक अंतर्जातीय परिवार में हुआ. मेरे पिता अनुसूचित जाति और मेरी मां बहुजन समाज से ताल्लुक रखती हैं. मैं जाति-विरोधी और नारीवादी नज़रिए से काम करती हूं.
मैं दलित पेंथर आंदोलन के प्रोजेक्ट और लिटिल मैगज़ीन ऑफ महाराष्ट्र पर काम कर रही हूं. जब से मेरा यह शोध शुरू हुआ है, मैं दिवंगत लेखक और कलाकार, राजा धाले द्वारा दिखाई गई बौद्ध संस्कृति और इतिहास के बारे में ज़्यादा विचार करने लगी हूं. मुझसे दलित सौंदर्यशास्त्र के बारे में पूछा जाता है. लेकिन मुझे नहीं पता कि यह क्या है क्योंकि मेरी नज़र में दलित समुदाय कोई अखंड अस्मिता नहीं है.
हमारे समूचे उपमहाद्वीप में अलग-अलग दलित समुदायों की अपने-अपने स्थान और भाषाओं के अनुसार, हज़ारों शैलियां और संस्कृतियां होंगी. अक्सर कमज़ोर समुदायों, कलाकार और कारीगरों को इस देश के इतिहास और विरासत को देखने की इजाज़त नहीं दी जाती, जबकि वे भी इस देश की समृद्ध एवं विविध संस्कृति के निर्माता हैं.
मुझे नहीं लगता कि मैं किसी समुदाय विशेष का प्रतिनिधित्व करती हूं. मैं जिस स्थान और नज़रिए से काम करती हूं उसके प्रति बहुत सजग हूं. सदियों से असाधारण कलाकारों और सृजकों से भरे एक समुदाय में मैं महज़ एक अदना सी कलाकार हूं. मैं सिर्फ अपने अनुभवों का प्रतिनिधित्व कर सकती हूं और उम्मीद करती हूं कि दूसरे लोग उससे खुद को जोड़कर देख पाएं.
जिस स्कूल से मैंने अपनी शिक्षा पाई वहां जाति या वर्ग चेतना नहीं थी. उस जगह पर जाति की वजह से मिलने वाले विशेष अधिकार प्राप्त लोगों का बोलबाला था. उस संस्थान में मैं केवल एक व्यक्ति के साथ खुद को जोड़ कर देख पाती थी और वे थे अभियान ह्यूमेन. उन्हें ठीक-ठीक पता था कि मुझे किन-किन संघर्षों से गुज़रना पड़ेगा.
अभियान ह्यूमेन एक शानदार शिक्षक थे, हालांकि, मुझे उन्होंने कभी नहीं पढ़ाया लेकिन वे फिर भी मेरे पथ प्रदर्शक बने. मेरे करियर की शुरुआत में ही उन्होंने मुझे इंटर्नशिप और नौकरियां दिलवाने में मदद की. उन्हें पता था कि मैं कितनी घबराई हुई हूंगी. उन्होंने मुझे ढांढस बंधाया, मुझमें आत्मविश्वास जगाया और सहज रहना सिखाया. उन्होंने मुझे सिखाया कि बतौर कलाकार मैं जहां हूं, वहां होना मेरा अधिकार है.
इसके अलावा, मेरे माता-पिता भी आंदोलन से जुड़े रहे हैं. मेरा लालन-पालन सबसे शानदार कवियों, लेखकों, कलाकारों और अनुवादकों के बीच उठते-बैठते हुआ है. मैं नामदेव ढसाल के नाम से तब से परिचित हूं, जब मुझे किसी अमरीकी कवि का नाम तक नहीं मालूम था. बाकी सबके बारे में तो मुझे आर्ट स्कूल में आने के बाद ही पता चला. ऐसा इसलिए था कि वही मेरा पारिवारिक संसार था और यह विशेषाधिकार मुझे हासिल था.
विज़ूअल आर्ट के नज़रिए से मैं ऐसी जगह की तलाश कर रही थी, जो मेरा प्रतिनिधित्व करती हो और जहां मैं सुरक्षित महसूस कर सकूं. हालांकि, मैं कभी भी क्लार्क हाउस इनिशिएटिव (सीएचआई) का हिस्सा नहीं रही. उसके बावजूद योगेश बर्वे ने दलित पैंथर आर्काइव को एक सामूहिक प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन, उससे भी बहुत पहले से मैं सीएचआई और उससे जुड़े कलाकारों से सीखना चाहती रही हूं.
मुझे लगता है, जब मैं सीएचआई के कलाकारों से मिली, तो मुझे बहुत सुरक्षा का बोध हुआ और मुझे पहली बार कला की दुनिया समझ में आई. ऐसी जगहों का बहुत महत्त्व है इसलिए उन्हें प्रोत्साहित करने के साथ−साथ, उनका समर्थन और रक्षा की जानी चाहिए.
विजिला चिरापद की कविता ‘मलिन भूमि’ मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कविता है. खासकर, कविता के ‘पिछले द्वार’ से झांकते शाब्दिक और प्रतीकात्मक अर्थ. कविता, प्रभुत्वशाली जातियों के पाखंड और शब्दों के आडंबर को बहुत अर्थपूर्ण अंदाज़ में पकड़ती है.”
इस लेख का अनुवाद राजेन्द्र नेगी ने किया है.
विजिला चिरापद के काम में कविताओं के तीन संग्रह शामिल हैं: अदूकला इल्लथा वीदु (बिना रसोई का घर, 2006), अम्मा ओरु कल्पनिका कविथा अल्ला (मां हमारी कल्पनाशक्ति की काव्यात्मक कल्पना नहीं है, 2009) और पाकर्थी एज़्हुथु (कॉपी किए नोट्स, 2015). आपकी कविताएं, “ए प्लेस फॉर मी”, “कांट ग्रो माई नेल्स” और “द ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए बिच” 2012 के ऑक्सफोर्ड इंडिया अन्थोलोजी ऑफ मलयालम दलित राइटिंग किताब में शामिल की गई हैं.
श्रुजना निरांजनी श्रीधर मुंबई से कार्यरत एक चित्रकार और डिज़ाइनर हैं. आपने बैंगलोर स्थित सृष्टि इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलोजी से विज़्यूअल कम्युनिकेशन एंड आर्ट में डिप्लोमा हासिल किया है. 1970 के दशक के दलित पेंथर आंदोलन के दस्तावेज़ीकरण के लिए आपने 2016 में दलित पेंथर आर्काईव का सहसंस्थापन किया.