“अनौपचारिक क्षेत्र में यौनकर्म करने वाली महिलाओं के अनुभव गिग इकॉनमी वर्कर्स की तरह हैं”

ऑनलाइन डेटिंग एप्पस के आगमन से पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों को इंटरनेट कैसे बदल रहा था

चित्रांकन: उपासना अग्रवाल

मंजिमा भट्टाचार्य एक नारीवादी शोधकर्त्ता, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. आप दो दशकों से अधिक समय से भारतीय महिला आंदोलन का हिस्सा रही हैं. आपने महिला सरपंचों, फैशन उद्योग में काम करने वाली महिलाओं तथा यौनिकता और इंटरनेट के बीच संबंधों पर शोधकार्य किया है. अपनी 2021 में प्रकाशित पुस्तक, ‘इंटिमेट सिटी’ में भट्टाचार्य ने वैश्वीकरण और तकनीक ने कैसे यौन वाणिज्य (सेक्सुअल कॉमर्स) को बदला है, इसकी तहकीकात की है. ऑनलाइन डेटिंग एप्प ‘टिंडर’ जैसे अन्य एप्स के आगमन से कुछ ही पहले, डिजिटल आत्मीयता और निजी रिश्तों (इंटिमेसी) को इंटरनेट कैसे बदल रहा था. यह किताब एक दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान करती है. यह सब मुम्बई की पृष्ठभूमि के बरक्स है. मुम्बई, जिसने उद्यम, नारीवाद, सेक्सवर्क और शहरी जीवन (रहन-सहन) की लोकप्रिय (और अक्सर अकादमिक समझ) को आकार दिया है. पेश है उनसे हुई बातचीत का दूसरा भाग (पहला भाग यहां पढ़ें).

आपने अपनी किताब में तकनीक और भूमंडलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) का ज़िक्र किया है. आप कहती हैं कि भूमंडलीकरण ने यौनकर्म को बदल दिया है, आप इसे पोस्ट इंडस्ट्रीयल सेक्सुअल कॉमर्स कहती हैं, है ना? इसका क्या मतलब है? पोस्ट-इंडस्ट्रियल सेक्सुअल कॉमर्स यानी उत्तर-औद्योगिक यौन वाणिज्य का क्या अर्थ है?

पोस्ट इंडस्ट्रियल सेक्सुअल कॉमर्स (पारिभाषिक) पद का इस्तेमाल सर्वप्रथम एलिजाबेथ बर्नस्टीन ने किया था. यह दर्शाता है, कि भूमंडलीकरण ने कैसे लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह जाने की ओर धकेला है. इसका परिणाम अर्थव्यवस्थाओं और पूंजी के साथ-साथ श्रम के वैश्विक प्रवाह में हुआ है. नतीजतन, सेक्स से जुड़े व्यापार या वेश्यावृत्ति का भी विस्तार हुआ है और पहले की तुलना में यह और अधिक जटिल हो गया है.

आज, रेड-लाइट वाले इलाके बदल गए हैं और यौनकर्मियों को वहां से बाहर कर दिया गया है क्योंकि अक्सर रेड-लाइट वाले इलाके शहर के बीच में होते हैं और रियल एस्टेट के नज़रिए से सोने जैसी अहमियत रखते हैं.

यही वजह है कि लोग अब उन जगहों पर रहने में समर्थ नहीं होते, इसलिए वे बाहर चले जाते हैं. दुनिया के कुछ हिस्सों में, इन क्षेत्रों को जेंट्रीफाइ (वर्तमान निवासियों को विस्थापित कर किसी गरीब शहरी क्षेत्र का कुलीनीकरण) किया जाता है. इन जगहों का उस शहर के लिए एक ऐतिहासिक अर्थ होता है और वे जेंट्रीफाइ होते हैं और वास्तव में हिप, पबों की दुनिया में तब्दील हो जाते हैं.

हमने यौन श्रम, जो पहले केवल वेश्यावृत्ति समझी जाती थी, का भी विस्तार किया है. हमारे पास अब स्ट्रिप क्लब, डांस बार, मसाज पार्लर, और अन्य प्रकार के यौन मनोरंजन (सेक्सुअल एन्टर्टेन्मन्ट) हैं जो कुछ शहरों में बिल्कुल अपेक्षित हैं और अन्य व्यवसायों के साथ एकीकृत हो जाते हैं…और कई शहरों में, ग्राहकों को अधिक शराब पिलाना या पीने के लिए प्रोत्साहित करना भी उन्हीं का काम होता है जो बार या क्लब में होस्ट या साकी के रूप में काम कर रही हैं और यौन श्रम भी कर रही हैं. यह एक तरह से मनोरंजन के साधनों की एकजुटता है, अंग्रेज़ी में जिसे हम क्लब गुड कहते हैं.

भूमंडलीकरण ने यौन वाणिज्य को एक बड़ा व्यावसायिक स्वरूप दे दिया है जो कि अंतरराष्ट्रीय सेक्स उद्योग, बड़े संगठनों, अक्सर माफियाओं द्वारा संचालित किया जाता है. हालांकि, यह यौन वाणिज्य को समझने का एक प्रमुख दृष्टिकोण है क्योंकि यह सेक्स की तस्करी के विमर्श को बल देता है, सच्चाई यह है कि पलायन का इतिहास है और महिलाएं पलायन कर रही हैं क्योंकि उनका जीवन पराधीन और अनिश्चित है. उन्हें अपने परिवार के अस्तित्व की खातिर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

चाइनीज़ व्हिस्पर्स नामक पुस्तक में महिलाओं के तस्कर की जो तस्वीर है, उसका सिर सांप का है. एक चीनी ड्रैगन की कल्पना कीजिए - जिसका सिर ब्रिटेन में और पूंछ चीन के ग्रामीण क्षेत्र में है, तो आप काम के लिए ब्रिटेन लाए जाने वाले अवैध श्रमिकों के चैनल को सहज ही समझ सकते हैं.

श्रमिकों का स्थानांतरण कैसे हो रहा है, समझने के लिए यह तस्वीर बहुत उपयुक्त है.

पोस्ट इंडस्ट्रियल सेक्सुअल कॉमर्स एक पश्चिमी घटना है क्योंकि भारत में, हमने अभी तक उत्तर औद्योगिक युग में प्रवेश ही नहीं किया है. इसीलिए रेड-लाइट इलाकों में आपको गतिविधियों का मिश्रण दिखाई देता है. 2019 में भी, सोनागाछी में आपको यौन व्यापार का पुराना तरीका (जो सड़कों पर खड़े होकर या रेड लाइट इलाकों में स्थित) ही देखने को मिलता है. और शाम होते ही नगर के बाहरी इलाके में महिलाओं का आना शुरू हो जाता है. उनके पास हैंडबैग होते हैं. वे वहां रहती नहीं हैं. दिन की अपनी पहली शिफ्ट खत्म करने के बाद वे सोनागाछी आती हैं. अपने घर जाने से पहले कुछ एक्स्ट्रा पैसे कमाना चाहती हैं, बस.

भारत और विदेशों में इंटरनेट इस बदलाव का एक अहम हिस्सा है. कोविड महामारी के दौरान सेक्स वर्कर फोन पर सेवाएं देने लगीं. इसके साथ नई अनिश्चितताएं और चिंताएं भी चिपकी हुई हैं. क्योंकि ये सब सड़कों पर होने वाले सेक्स वर्क के नए स्वरूप के साथ मौजूद है. क्योंकि हम एक ऐसे दौर में हैं, जहां आर्थिक संतुलन बनाए रखना बहुत ही मुश्किल भरा काम है.

चित्र साभार: indiatogether.org

जब आप इंटरनेट पर कामुकता से भरे पूरे एक शहर को देखती हैं, तब आप मुम्बई और हर तरफ मौजूद इस इंटरनेट के भूगोल के बारे में क्या सोचती हैं?

2012 में, जब मैं यह शोध कर रही थी, रेड-लाइट इलाकों में बदलाव का दौर पहले ही शुरू हो चुका था और बदलाव की रफ्तार भी बहुत तेज़ थी. कमाठीपुरा तेज़ी से बदल रहा था. हर जगह मोबाइल फोन दिख जाते थे, सबके पास चीनी मोबाइल मौजूद था. बार डांसर भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही थीं. भले ही रेड-लाइट एरिया सिकुड़ रहे थे, लेकिन व्यावसायिक सेक्स का कारोबार बंद हो जाए ऐसा नहीं हो रहा था, ये असम्भव था. महिलाएं गायब हो रही थीं लेकिन यह असम्भव था कि व्यावसायिक सेक्स बंद हो जाता! दुनिया भर में, तकनीक नए-नए तरीकों से यौन वाणिज्य को सक्षम कर रही थी. देखने में भारत में डिजिटल विभाजन बहुत बड़ा लग रहा था, हालांकि मुझे संदेह है कि वास्तव में ऐसा था.

दूसरा कारक 2009-10 में शुरू हुआ सेक्सुएलिटी और इंटरनेट पर एक बहुदेशीय अध्ययन – इरोटिक्स अनुसंधान था. भारत में इस शोध अध्ययन का नेतृत्व माया इंदिरा गणेश और मैं कर रही थी. हमने पाया कि इंटरनेट ने उन युवतियों के यौन अधिकारों को पूरी तरह से बदल दिया था जो इंटरनेट का उपयोग कर रही थीं. वे ऑनलाइन माध्यमों से खुद को अभिव्यक्त कर रही थीं, अपनी तस्वीरें डाल रही थीं, परिवारवालों की नज़र को दरकिनार कर रही थीं और संबंध बना रही थीं. वे हिंसा को ऑनलाइन नेविगेट करना और गर्भनिरोध, गर्भपात, और ऐसी ही अन्य यौन स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों को हासिल करना सीख रही थीं.

यह वास्तव में गेम चेंजर था. यह इंटरनेट और सेक्सुएलिटी पर शोध के क्षेत्र में प्रारम्भिक और अव्यवसायिक प्रयास था. हमने यौन वाणिज्य पर शोध नहीं किया था. लेकिन यह हमारे लिए प्रस्थान बिंदु था.

हम आत्मीयता के अनुभवों पर तो विचार कर रहे थे लेकिन वास्तव में यौन वाणिज्य और इसमें आ रहे बदलाव को नहीं देख रहे थे. दरअसल, ये एक तरह से इन सारे अनुभवों का एक संयोजन था जिसने मुझे यह एहसास कराया कि इंटरनेट, मुम्बई, और सेक्स वर्क पर एक साथ विचार करने की ज़रूरत है.

कितनी आसानी से तकनीक की सरलता ने चीज़ों को कैसे बदल दिया है, टिंडर जैसे एप्पस पर आप सिर्फ तस्वीरें ही डाल सकते हैं लेकिन इससे और कितनी चीज़ें जुड़ रही हैं…

इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं. और यह दूसरा बड़ा बदलाव है, है ना?

व्यापक अर्थव्यवस्था – गिग इकॉनमी – काम की रूपरेखा – वहां आप जानते हैं कि आप वास्तव में रिव्यूज़ और कमेंट्स के आधार पर इंटरनेट का उपयोग करते हुए स्वतंत्र लेनदेन या सौदा कर सकते हैं. अपने आप में यह एक मान्यता प्राप्त अर्थव्यवस्था है. जिसकी अपनी शब्दावली और काम करने का ढांचा है.

यह एक तथ्य है जिसका मैंने अपनी किताब में ज़िक्र भी किया है कि जो लोग ऑनलाइन सेक्स सेवाएं दे रहे हैं वे लगातार यह कह रहे हैं कि “देखिए हम किसी लैम्प पोस्ट के नीचे नहीं खड़े हैं और आप जानते हैं कि हम यौन सेवाएं देते हैं इसलिए हम उस तरह के यौनकर्मी नहीं हैं.”

पहले मुझे लगता था कि वे सिर्फ इससे जुड़े कलंक को दूर करने की कोशिश भर है. लेकिन अचानक आपको एहसास होता है कि "नहीं, वास्तव में उनके अनुभव अनौपचारिक क्षेत्र में यौनकर्म करने वाली महिलाओं से बिल्कुल अलग हैं."

उनके अनुभव गिग इकॉनमी वर्कर्स की तरह हैं. मेरे लिए, यह एक वैचारिक बदलाव था. अनौपचारिक अर्थव्यवस्था (जहां परम्परागत तरीके से सेक्स वर्कर्स काम करते हैं) की तुलना में यह गिग अर्थव्यवस्था में ज़्यादा फिट बैठते हैं और जब कभी मैं यह कहती हूं, तो लोग पूछते हैं, “तो क्या? मेरा मतलब, इसमें कौन सी बड़ी बात है, है क्या? इससे क्या बदल जाता है?” और मैं इस – तो क्या? के बारे में सोचती हूं, लेकिन मुझे लगता है कि हम सेक्स वर्क को थोड़ा अलग तरीके से समझ सकते हैं यदि हम इसे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में मौजूद ‘कुछ’ के रूप में सोचते हैं, थोड़ा कुछ जो गिग अर्थव्यवस्था में मौजूद है, और थोड़ा कुछ जो माइग्रेशन या फिर पलायन से जुड़ी अर्थव्यवस्था में मौजूद हो सकता है.

हम प्रत्येक को थोड़ा अलग ढंग से समझेंगे क्योंकि उस व्यापक अर्थव्यवस्था की कमज़ोरियां उसके भीतर काम करने वालों के अनुभव में दिखाई देती हैं. उदाहरण के लिए, कोविड के दौरान, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में अन्य दिहाड़ी मज़दूरों की तरह, स्ट्रीट सेक्स वर्कर दिहाड़ी मज़दूरी नहीं कर सकती थीं. एस्कॉर्ट सेवा देने वाली महिलाओं को एकाकीपन का अनुभव हो सकता है जैसा कि कई गिग इकॉनमी के लिए काम करने वाले कर्मचारियों को भी होता है. यदि पलायन प्रायः असुरक्षित होता है, तो यौनकर्म के लिए पलायन करने वालों के लिए यह ट्रैफिकिंग के अनुभव में तब्दील हो सकता है.

एक अनुमान के रूप में, तब हम उम्मीद रख सकते हैं – या – आशा कर सकते हैं कि व्यापक अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव (जैसे अनौपचारिक क्षेत्र में उचित न्यूनतम दिहाड़ी, या गिग इकॉनमी से जुड़े श्रमिकों के लिए यूनियन बनाने की सम्भावना, या सुरक्षित माइग्रेशन के लिए नीतियां आदि) उस अर्थव्यवस्था के भीतर यौन श्रम के प्रकार को प्रभावित करेंगे.

चित्र साभार: Wine Cellar Media

अगर ऐसा होता है तो ये अपने काम को देखने के नज़रिए में बड़ा बदलाव होगा. एक युवा सेक्स वर्कर जो अपने आसपास मौजूद गिग इकॉनमी के आदर्शों से घिरी हुई है, तो उनके लिए अपने काम के बारे में सोचने का तरीका बहुत अलग होगा.

हां, बिल्कुल. और यहां तक कि अस्थाई काम का आइडिया भी. यौनकर्म आपकी पूरी पहचान नहीं है. आप अपने जीवन में एक निश्चित अवधि के दौरान कुछ यौन सेवाएं प्रदान कर सकती हैं और यही हकीकत है. वैसे भी सेक्स वर्कर ऐसा ही करती हैं. यह आपकी पहचान नहीं बन जाती. लेकिन रेड-लाइट एरिया या एस्कॉर्ट सेवा का हिस्सा होने का मतलब यह भी है कि आपके पास एक समुदाय का हिस्सा होने का मौका होता है. वरना तो ऑनलाइन सेक्स वर्कर्स के लिए एकाकीपन बहुत बड़ी समस्या है.

अगर आप किसी रेड-लाइट एरिया में काम कर रही हैं या अगर आप संगठित हैं, तो एक सामूहिक संस्था अथवा संगठन का हिस्सा होती हैं.

ऑनलाइन सेक्स वर्कर, पुरुष हो या महिला, उनको लगता है कि यह अस्थाई काम है. जिस पल सारा कर्ज़ चुकता हो जाएगा, मैं ये काम बंद कर दूंगी/दूंगा. बस एक बार यह काम खत्म हो जाए फिर... यही गिग इकॉनमी की एक विशेषता है.

इसका एक फायदा तो यही है कि आपकी पहचान यौनकर्मी की नहीं है. लेकिन समस्या यह है कि आप अकेले हैं. आपके पास अपना कोई समुदाय नहीं है, सामूहिक संगठन नहीं है, सामूहिक सौदेबाजी या सौदाकारी नहीं है. गिग कर्मी संगठित हो रहे हैं. अगर हम इसे सेक्स वर्कर के रूप में देखें, तो वे अपने काम को सुरक्षित बनाने के लिए मानक तैयार कर सकते हैं.

क्या आपको ऐसा लगता है कि भारत के यौन वाणिज्य में ऐसे क्षेत्र भी हैं जिन पर आप चाहती हैं कि और अधिक शोध हो?

जी, बिल्कुल. मुझे लगता है कि यह पुस्तक वास्तव में महज़ खोजपूर्ण थी. आमतौर पर, एस्कॉर्टिंग और अन्य प्रकार के यौन श्रम जैसे मसाज पार्लर, असंगठित यौन श्रम, एकाकी यौनकर्मी आदि के अनुभव, हम अभी तक इनके बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं. हम ग्रामीण यौनकर्म के बारे में उस तरह से नहीं जानते जैसे कि हम शहरी यौनकर्म के बारे में जानते हैं. वेश्यालयों या रेड-लाइट एरिया से मुक्त कराई गई महिलाओं के साथ क्या होता है, आप जानते हैं? उनकी ट्रैकिंग का काम है, पता लगाने की ज़रूरत है, यह भी नहीं हुआ है. वास्तव में मेरे दिमाग में इसको लेकर अभी कुछ ठोस नहीं है. इनमें से कुछ बड़े गैप हैं और जैसे ही आप किसी एक में प्रवेश करते हैं, दूसरे गैप खुलने लगते हैं और मुद्दों की नई-नई श्रेणियां सामने आने लगती हैं. 

मैं किस बड़े क्षेत्र के बारे में ज़्यादा पढ़ना और जानना पसंद करूंगी – ग्राहकों के रूप में महिलाओं पर अनुसंधान. मैं महिला ग्राहकों से बात नहीं कर पा रही थी. मैंने उनके बारे में जो सुना, उन्हें सर्विस देने वाले पुरुषों से ही सुना जो अपने ग्राहकों के बारे में बहुत ही प्यार से बताया करते थे. ऐसे बहुत से पुरुष सेक्स वर्कर्स ने कहा कि, “मुझे नहीं पता था कि मैं जिन लोगों से मिला हूं वे इतने अच्छे लोग होंगे.” मैं इन अच्छे लोगों से उनके जीवन के बारे में बात करना चाहती थी!

ग्राहक के रूप में महिलाएं और सर्विस देने वाले के रूप में पुरुष दोनों ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं क्योंकि, एक तरह से, यौनकर्म मूलतः स्त्री केंद्रित (फेमनाइज़्ड) पेशा है, है ना? यह कोई मर्दाना पेशा या गर्व करने जैसा कुछ नहीं है, लेकिन जिन पुरुषों ने मुझसे बात की, उनमें यह भावना बहुत मज़बूत नज़र आई मानो यह कोई उपलब्धि जैसी चीज़ हो, जबकि महिलाओं से यौन कर्म के बारे में बात करने का मेरा अनुभव इनसे बिल्कुल अलग था. उदाहरण के लिए, पुरुषों ने कभी खुद को यौनकर्मी नहीं बताया, उनका हमेशा यही कहना रहा कि वह यौन सेवा दे रहे थे.

निशा सुसान एक लेखक और संपादक हैं. वे द थर्ड आई में परामर्श संपादक, डिजिटल स्ट्रेटजी और पार्टनरशिप्स हैं.

इस लेख का अनुवाद अकबर रिज़वी ने किया है.

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