लर्निंग लैब

द थर्ड आई लर्निंग लैब, कला-आधारित एक शैक्षिक प्लेटफॉर्म है. जहां हम साथ मिलकर अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं. यहां हम अपने विचारों और नज़रियों की पड़ताल करते हैं, उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से जांचते-परखते हैं.

दरस का पेड़

वो कौतूहल ही था जिसने अशरफ हुसैन और अज़फरूल शेख के कदमों को उधर की ओर मोड़ दिया जिधर स्थानीय मदरसा हुआ करता है और जिसके पास से वे अक्सर गुज़रा करते थे, पर अंदर जाने का मौका नहीं मिलता था.

हमारे बीच में

हमारे बीच में, दो महिलाओं के जीवन में जाति की रेखाओं को टटोलने और उसे पर्दे पर उभारने की यात्रा है. जाति पर फिल्म कैसे बनाते हैं? क्या है जो हम दिखा सकते हैं और क्या नहीं? गुस्सा, खीझ, अपमान जैसी भावनाओं को पर्दें पर कैसे दिखाया जाता है?

अगर प्रकृति के साथ कुछ बुरा होता है तो क्या वो अपराध कहलाएगा?

लर्निंग लैब में जब हमने क्राइम पर चर्चा शुरू की तो एक ख्याल बार-बार आता रहा. किसी इंसान के साथ कुछ गलत करो तो वह अपराध कहलाता है, पर अगर प्रकृति के साथ कुछ गलत करो, तो क्या वो भी अपराध माना जाएगा? इस सवाल की पेचीदगी को समझने के लिए हमने कुछ लिखित और विज़ुअल नोट्स बनाए हैं, जिन्हें आपके साथ साझा कर रहे हैं.

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 06 – कुसुम

केसवर्कर्स से मुलाकात के इस एपिसोड में मिलिए महरौनी, उत्तर-प्रदेश की रहने वाली कुसुम से, जो महरौनी स्थित सहजनी शिक्षा केंद्र के साथ 2008 से काम कर रही हैं.
अपने अनुभवों को साझा करते हुए कुसुम बताती हैं, “एलएलबी तो हमने नहीं की है, इनसे तो हम बहुत दूर हैं लेकिन हमें पता है कि किस केस में किस तरह की धारा लगना चाहिए.”

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 05 – राजकुमारी प्रजापति

केसवर्कर्स के साथ मुलाकात के इस एपिसोड में मिलिए राजकुमारी प्रजापति से जो उत्तर-प्रदेश के ललितपुर की रहने वाली हैं. 2008 में जब राजकुमारी सहजनी शिक्षा केंद्र से जुड़ीं तो उस वक्त उनकी उम्र 19 साल थी. वे आवासीय शिक्षण केंद्र में बतौर एक शिक्षिका महिलाओं और किशोरियों को पढ़ाने का काम करती थीं. आगे वे सहजनी के साथ ही महिला हिंसा के मुद्दों पर काम करने लगीं और तब से आजतक एक केसवर्कर की भूमिका में निरंतर सक्रिय हैं.

नौकरी, जो आज़ादी और मजबूरी दोनों थी

बात उस दौर की है जब हमारी उम्र 16 साल की थी और अपनी मां और छोटी बहन का पेट पालने के लिए नौकरी कर रहे थे. ऐसा करने पर हमें अपने परिवार, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों की तरफ से बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

“मैं अपने पिता के घर वापस नहीं जा सकती”

हमारी संस्था के कुछ उसूल हैं कि कुछ मुद्दों में हम समझौता नहीं कराते. बलात्कार, दहेज हत्या या हत्या आदि जैसे गंभीर अपराधों में हम समझौता नहीं कराते हैं – मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, बच्चों के साथ महिला को घर से निकाल देना, दहेज के लिए परेशान करना – इन मुद्दों में अगर हमारे पास केस आता है तो हम महिला के निर्णय अनुसार इकरारनामा कराते हैं.

केसवर्कर्स से एक मुलाकात एपिसोड 4 – शबीना मुमताज़

मिलिए उत्तर-प्रदेश के बांदा ज़िले में स्थित वनांगना संस्था से जुड़ी शबीना मुमताज़ से, जो पिछले 17 सालों से महिला हिंसा से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही हैं. खुद आर्थिक, यौनिक और मानसिक यातनाओं को झेल चुकी शबीना कहती हैं, “एक महिला को न्याय मिलना चाहिए. मुझे बहुत खुशी होती है जब मैं किसी महिला को उस दलदल से बाहर निकाल लाती हूं.”

“क्या हुआ, कोई खुशखबरी नहीं है?”

समझौता ज़्यादातर दो लोगों के बीच में कराया जाता है. जैसा कि हमने देखा है, किसी परिवार में पति-पत्नी के बीच झगड़े को रोकने के लिए समझौता कराया जाता है या किसी और तरह की लड़ाई को खत्म करने के लिए भी समझौता कराया जाता है. लेकिन, ज़िंदगी में हमें कई और तरह के समझौतों से भी गुज़रना पड़ता है.

केसवर्कर डायरी | एपिसोड 3: संडे का दिन

केसवर्कर्स डायरी के तीसरे एपिसोड में एक केसवर्कर हमें अपने संडे के दिन के बारे में बताती है, सप्ताह का वह दिन जब अपने बेटे के साथ वह अपने पति के गांव जाती है जहां गांव के लोगों के तीखे सवालों के साथ-साथ उसकी सबसे प्यारी सहेली— एक महुआ के पेड़— उसका इंतज़ार कर रहा है.

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