फ्रंटलाइन वर्कर्स: ग्रामीण औरतें और उनकी दुनियां

‘चंबल मीडिया’ के सहयोग से, हम ले कर आए हैं ‘लिटिल फ़िल्म शृंखला’ जो हर दिखाई देने वाली चीज़ का दूसरा पहलू तलाशती है. बुंदेलखंड में कोरोना की लड़ाई में सबसे आगे खड़ी कार्यकर्ताएं कोई जंग नहीं लड़ रही हैं. वे दिन-रात अक्सर सामाजिक ताने-बाने से संघर्ष करते हुए लोगों की देख भाल कर रही हैं. वे, जान बचाने में और कोरोना से पैदा हुई ओजपूर्ण सैन्य भाषा को देखरेख, परवाह और ख़याल रखने की भाषा में बदलने में लगी हैं.

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