लॉकडाउन में, हफ्ते के सात दिन किसने किया काम, कौन करता रहा आराम?

मार्च 2020 में जब भारत में लॉकडाउन हुआ तो घर में रहकर कौन क्या कर रहा था? सद्भावना ट्रस्ट (लखनऊ) की ‘काम या आराम’ के विषय पर सामुदायिक फोटो प्रतियोगिता से कुछ तस्वीरें और अनुभवों की झलक.

फोटोग्राफर : हमीदा खातून, उज़मा खातून, समरीन, नाज़िया.

2020 दुनिया भर में सबके लिए एक ऐसा साल है जो भूलना मुमकिन नहीं होगा. मार्च 2020 में कोविड 19 के कहर से जूझने के लिए भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन यानी शहरबंदी – भीतर और बाहर का फर्क ख़त्म सा हो गया.

सबका एक ही सुझाव था –’घर में रहें, सुरक्षित रहें. नौकरी, रोज़गार, स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई छूटे तो छूटे, जान है तो जहान है. ये समय चिंता करने का नहीं है, घर बैठकर सुरक्षित रहने का है.’

लेकिन सवाल यह है किजब परिवार के सभी सदस्य 24 घंटे घर की सीमाओं में बैठे होते हैं तो कौन आराम करता है और किसका काम चार गुना बढ़ जाता है?

इस पेचीदा सवाल के जवाब को जांचने के लिए लखनऊ की सद्भावना ट्रस्ट ने 17-22 अप्रैल 2020 में कुछ मोहल्लों में एक फोटो प्रतियोगिता रखी. इस प्रतियोगिता में महिलाओं और लड़कियों को आमंत्रित किया गया कि वे अपने चित्रों के ज़रिए लॉकडाउन के लम्हों में ‘काम या आराम’ के सवाल पर अपना नज़रिया साझा करें.

द थर्ड आई पेश करती है इस प्रतियोगिता की कुछ चुनिन्दा तस्वीरें और कुछ युवतियों के लॉकडाउन के दौरान घर पर रहने के अनुभव.

1

“कभी चाय, कभी खाना, कभी क्या, क्या… !” हुमा फिरदौस

“जब वो कहें, उठ कर चाय या नाश्ता बनाना पड़ता है. बर्तनों का ढेर है, कपड़ों का भी” नीलम निशाद

2

“अब तो भाई, पापा सारे दिन घर पर ही रहते हैं.” नीलम निशाद

“चाय की फरमाइश हुई, तो लड़कियां या महिलाएं ही चाय लिए दौड़े जा रही हैं, भाई, मर्द से भी करा सकती हैं घर का काम या वे खुद क्यों नहीं कर रहे हैं?” सबीहा

3


“न सो पाओ … न मोबाइल का इस्तेमाल कर पाओ. फ़्रेंड्स से भी बात नहीं हो पाती.” 
नीलम निशाद

“सारे दिन कमर कस के काम करना पड़ता है, फिर भी हम कहते हैं कि ठीक है. क्या ख़ाक ठीक है!” सबीहा

4

“आराम का तो कहीं नाम ही नहीं. आदमी लोग सारा दिन घर पर ही रहते हैं!” हुमा फिरदौस

“बार, बार सफाई करनी पड़ती है, अपने लिए तो टाइम ही नहीं मिल पाता.” नीलम निशाद

5

“महिलाओं और लड़कियों की हिम्मत की दाद देने के लिए हमारे पास लफ़्ज़ नहीं हैं. सामाजिक इंसानियत को लेकर घर की इंसानियत को ख़त्म-सा कर दिया था इस कोविड 19 वाइरस लॉकडाउन ने.” सबीहा

“न छत पर जा सकते हैं, न दरवाज़े पर खड़े हो सकते हैं. सारा दिन किचन में ही निकल जाता है. सुबह से शाम, शाम से रात होने का तो पाता ही नहीं चलता.” हुमा फिरदौस

6

“जब हमने फ़ेसबुक पर ये पोस्ट डाली, काम और आराम को लेकर तो सभी ने कहा ये ठीक है…. लॉकडाउन में तो हम औरतें और लड़कियां सिर्फ काम ही कर रही हैं.” शाज़िया

“पहले तो ये होता था कि हम खाना वगैरह बना कर आस पड़ोस में चले जाते थे, लेकिन अब वह भी बंद हो गया है.अब तो दोस्तों से भी नहीं मिल पाते.” हुमा फिरदौस

द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबक़ों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

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