“मैं”- शब्द एक, परिभाषाएं अनेक

अपने अंदर झांक कर तो देखिए.

“मैं”- इस पहेली के बारे में कभी न कभी तो हम सब ने सोचा ही है. आज सेल्फी के इस ज़माने में जहां मोबाइल फ़ोन का बटन दबाते ही ख़ुद से ही ख़ुद की तस्वीर सेकेंड्स में खींच लेना संभव है, वहां शायद यह सवाल और भी पेचीदा हो जाता है – कौन सा “मैं” मेरा है? कौन सा दुनिया का? वो क्या है जो मेरे अंदर बैठे हज़ारों “मैं ” को आकार और मायने देता है? अगर इस गुत्थी को उधेड़ना शुरू करें, तो हम कहां से कहां पहुंच जाएंगे. ये असंभव सा लगता है. पर ख़ुद से ख़ुद का यह संवाद कायम रखना ज़रूरी है. द थर्ड आई के डिजिटल एजुकेटर्स ने ऐसा ही एक प्रयोग किया, अपने “मैं ” को नज़दीक से देखने का.

क्या हमारे हाव भाव हमारी दबी ख्वाइशों का आईना हैं? जब एक बासी सी याद को हवा दो, तो क्या खिल जाता है? समय क्या सुलझाता है? क्या उलझने ही “मैं” का असल अस्तित्व हैं? यह लेख अपने अंदर और बाहर की दुनिया के रिश्तों को समझने का एक प्रयास है.

1

अज़फरूल शेख

(पाकुर, झारखंड)

मुझे क्या पसंद है?

मैं एक युवा हूं. मेरा बहुत सारा फ़र्ज़ है. मैं सोचता हूं कि किस तरह अपने फ़र्ज़ को निभाउंगा. गांव में इधर-उधर घूम कर देखता हूं कि कहां पर क्या हो रहा है. लोगों का जीवन बसर कैसे हो रहा है, हो सके तो उनकी मदद कर दूं. लोगो की मदद करने पर मुझे सुकून मिलता है.

2

अनीता सेन

(गोगुंदा, राजस्थान)

मैं कौन हूं?

मैं हमेशा ख़ुश रहना पसंद करती हूं. मुझे अपने परिवार के साथ रहना बहुत पसंद है. मेरी पूरी कोशिश रहती है कि मैं हमेशा उनको ख़ुश रख सकूं. मेरा स्वभाव ऐसा है कि किसी भी नए व्यक्ति के साथ आसानी से घुल-मिल जाती हूं. लेकिन, अक्सर ऐसा होता है कि ये नए रिश्ते बहुत मुश्किल से ही टिक पाते हैं. किसी न किसी वजह से ये बहुत जल्दी टूट जाते हैं.

3

अर्पिता गांगुली

(पाकुर, झारखण्ड)

मैं क्या चाहती हूं?

मैं जब आईने के सामने खड़ी होती हूं तो खुद को हीरोइन समझती हूं. उस समय जब मेरे उलझे हुए बालों में अपनी उंगलियों को घुसाती हूं, तब तो उंगलियों को पता ही नहीं होता कि वह किस रास्ते पर चल रही हैं. चारों तरफ़ अंधेरा ही होता है. उसी तरह बेफिक्र राहों पर चलने की आदत, मेरे अंतर्मन को बहका देती है. मैं हर उस पल को बजाकर देखना चाहती हूं जिस भाती हम किसी बर्तन को बजाकर परखते हैं कि वो कितना टिकेगा.

4

आरती अहिरवार

(मंडावरा, उत्तर प्रदेश)

मेरा क्या सपना है?

यदि मैं समाजसेविका बन जाती तो सबसे पहले समाज के लोगों से यही कहती कि सभी लोग अपने घर की लड़कियों को शिक्षा दिलाएं और उनको किसी भी फील्ड में जाने से ना रोके. लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं और उन्हें भी अपने सपनों के बारे में सोचने दीजिए. उनकी ज़िंदगी किस तरह की रहेगी वे भी ख़ुद से निर्णय ले पाएं.

5

अशरफ हुसैन

(पाकुर, झारखंड)

मुझे क्या अच्छा लगता है?

मैं पढ़ाई करते हुए, समय मिलने पर कभी-कभी खेत जाता था. मुझे खेत जाना अच्छा लगने लगा था. खेतों में लहलहाती हरी-भरी फसल को देखता तो मेरा मन आकर्षित हो जाता था. खेत की छवि बार-बार मेरे सामने आती थी. स्कूल की डेस्क पर बैठ कर खेतों की छवि को अपने जीवन से जोड़कर देखता तो मुझे अजीब सा लगता था. एक दिन मैंने हरी-भरी फसल वाली खेत की तस्वीर बनाई और अपने दोस्तों को दिखाई. इस तस्वीर की बहुत तारीफ़ हुई. आज मैं तस्वीर नही बनाता क्योंकि जब से स्क्रीन टच मोबाइल आया है तब से मैं अपने मोबाइल से अच्छी-अच्छी तस्वीरें खीचता हूं.

6

खुशी बानो

(लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

मैं क्या करती हूं?

मैं हमेशा घर और बाहर की चीज़ो को आसानी से मैनेज कर लेती हूं, चाहे वो स्कूल जाना हो या घर का काम-काज करना हो या फिर अपने परिवार में लोगों का अच्छे से ध्यान रखना हो या घर के फैसले में अपनी राय देना हो. मैं तो हमेशा सिर्फ़ घर में ही रहती हूं और घर का काम करती रहती हूं, जिसमें मुझे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही है. लेकिन अब मैं वो भी करती हूं जिसे करने में मुझे मज़ा आता है.

7

कुलसुम खातून

(शेखानपुरा, बांदा, उत्तर प्रदेश)

मैं क्या करना चाहती हूं?

मैं लड़ती रही, जूझती रही, ख़ुद से ही ख़ुद का हौसला बढ़ाती रही.
मुझे अब नादान परिंदे सी नहीं बनना,
दिल के किसी भी पर को नहीं कतरना,
बस संजीदगी से हर वक़्त शिखर तक बढ़ना है.

8

मनीषा चांडा

(बाप, जोधपुर, राजस्थान)

मैं क्या सीख रही हूं?

मैं एक लेखिका तो नहीं हूं पर आजकल बस लिखे ही जा रही हूं. अब लिखने की ताकत पता चली है. जिसे मैं मुख से प्रत्यक्ष रूप से बोल नहीं सकती, उसे भी मैं शब्दों में पिरो कर बोल सकती हूं. इसलिए अब एक अदृश्य कलम उठाकर अपने लेख (भाग्य) की लेखिका बनना चाहती हूं.

9

मनोज प्रजापति

(गोगुंदा, राजस्थान)

मैं कौन हूं?

मैं एक फोटोग्राफर हूं. मुझे फोटोग्राफी का बहुत शौक है. मुझे ख़ुद की फोटो (सेल्फी) खींचने से ज़्यादा दूसरों की फोटो खींचना पसंद है. किसी व्यक्ति या किसी ऐसे स्थान की फोटो लेना पसंद करता हूं जो मुझे दिखने में अच्छा लगता हो.

10

परमेश्वर मंडरावालिया

(रामपुरा दबला, राजस्थान)

मुझे क्या याद है?

खेल-खेल में मेरी स्कूल यूनिफॉर्म की बुशर्ट फट गई. मैं दूसरी यूनिफॉर्म पहनने के लिए घर पहुंचा तो पता चला कि दूसरी यूनिफॉर्म धुली हुई नहीं है. जब मैं सिविल ड्रेस (घर के कपड़े) पहन कर स्कूल पहुंचा तो स्कूल में प्रार्थना की घंटी बज चुकी थी. एक बार स्कूल से बाहर निकलने पर अंदर आना बहुत मुश्किल होता था क्योंकि क्लास शुरू होने से पहले ही स्कूल के गेट पर ताला लगा दिया जाता था. मैं सोचने लगा कि अब क्या करूं? प्रार्थना में न जाने का एक मात्र उपाय था- कक्षा में झाड़ू लगाना!

11

राजकुमारी अहिरवार

(महरौनी, ललितपुर, उत्तर प्रदेश)

वो जो मैं पीछे छोड़ आई हूं:

  • चप्पल प्रथा को मैंने अपने घर और गांव में तोड़ा है. पीठ पीछे कुछ भी लोग कहते हैं किसी की परवाह नहीं करती हूं.
  • घर में सबसे पीछे औरतें खाना खाएं उसको भी मैंने अपने घर में तोड़ा है.
  • शादी में महिलाएं बारात में नहीं जाती थीं लेकिन हम लोग जाने लगे हैं अब.
  • जहां भी पुरुष गैर बराबरी करते हैं महिलाओं के प्रति तो वहां पुरुषों से बात कर लेती हूं.

12

राजकुमारी प्रजाति

(महरौनी, ललितपुर, उत्तर प्रदेश)

मुझे क्या पसंद है?

मैं जब काम करने के लिए घर से बाहर निकली थी, तब से मैं एक बंद पिंजरे में रहने वाले पक्षी की तरह बाहर निकल कर खुली हवा में आज़ादी से सांस लेने जैसा महसूस कर रही थी. मुझे घर के अंदर बहुत घुटन महसूस होती थी. मेरा मन करता था कि मैं भी छोटे कपड़े पहनकर दोस्तों या पति के साथ घूमने जाऊं, मुझे भी कोई बहुत चाहने वाला हो. बस क्या करती, अपने मन और इच्छाओं को दबाकर इसी समाजीकरण के बंधनों में रहकर जीना पड़ा. पर, अपनेआप को बहुत मज़बूत बनाने की कोशिश कर रही हूं.

13

रानी देवी

(कर्वी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश)

मैं कौन हूं?

मैं दर्शन हूं, मैं दरपन हूं, मैं नाथ हूं, मैं ही गर्जन हूं,
मैं बेटी हूं, मैं माता हूं, मैं बलिदानों की गाथा हूं,
मैं भगवत गीता हूं, में दोरोपती हूं, मैं सीता हूं.

कलयुग हो या सतयुग हो, इल्ज़ाम मुझी पर आता है,
क्यों घनी अंधेरी सड़कों पर चलने में मन घबराता है.

“क्यूं कोई नहीं था साथ में? क्यूं निकली अंधेरी रात में?
क्या गहना था? क्या मेकअप था? क्या छोटे कपड़े पहने थे?”

प्रश्नों की भूलभुलैया में सच्चाई कहीं खो जाएगी,
कहने वालों, क्या तुमको सरम नहीं आती/ आएगी?

कैसे भूलूं रातों को, मुझको छूते उन हाथों को,
कैसे भूलूं उन सारी तकलीफों को, और कैसे भूलूं उन चीखों को.

मेरे शरीर की चोटें तो बस कुछ दिन में ही भर जाएंगी,
लेकिन मन की पीड़ा सारी उम्र साथ जाएगी.

14

संतरा चौरसिया

(पीसांगन, राजस्थान)

मैं क्या महसूस करती हूं?

मेरी किसी परीक्षा का परिणाम आने वाला था. मैं बहुत सहमी हुई, बहुत घबराई हुई सी थी. इतना ज़्यादा घबराई हुई कि शायद जितना मैं अपने 12th बोर्ड रिज़ल्ट के समय भी नहीं घबराई थी. मुझे इस बात की कम घबराहट थी कि मेरा सलेक्शन नहीं होगा, बल्कि घबराहट तो ये थी कि मेरी फ्रेंडस का हो गया और मेरा नहीं हुआ तो मैं तो अकेली रह जाऊंगी!

दूसरी तरफ… अगर सलेक्शन हो गया तो मैं इतने पैसे कहां से लाउंगी! मुझे पता था घर वाले नहीं दे पाएंगे क्योंकि मेरे मम्मी-पापा मज़दूर हैं जो मुश्किल से घर का ख़र्च चला पाते हैं.

उसी दिन शाम 4 बजे मैं ओर मेरी फ्रेंड मीरा रिज़ल्ट देख रहे थे. मीरा का सलेक्शन हो गया और मेरा नहीं हो पाया. मैं जैसे टूट गई, ये मेरी ज़िंदगी का पहला पड़ाव था.

15

सरफ़राज़ आलम

(पाकुर, झारखंड)

मैं एक सफ़ल यूट्यूबर कैसे बना?

मुझे हर चीज़ में सीखना बहुत पसंद है. मुझे पहली बार 2018 में यूट्यूब के बारे में विस्तार से जानकारी मिला. बाद में मुझे यूट्यूब के फ़ायदे और इससे सबंधित अन्य जानकारी विस्तार से हासिल हुई, तो मैंने अपनी प्रतिभा दिखाने का प्रयास शुरू किया. 2019 से यूट्यूब पर वीडियो शेयर करने शुरू किए, लेकिन लोगों तक मेरा वीडियो पहुंच नहीं पा रहा था. फिर भी मैंने हिम्मत की और हार नहीं मानी, लगातार वीडियो बनाता गया. फिर 2020 के आख़िरी महीने में नया चैनल बनाया और जी-जान से लगातार वीडियो बनाता गया.

16

सुधा देवी

(कर्वी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश)

मेरी उलझन क्या है?

मैं एक छोटे से गांव की रहने वाली हूं. कभी-कभी हमारे ऊपर कुछ जुल्म होते हैं और हम समझ नहीं पाते कि मैं कौन हूं? मैं क्या हूं? यह हम कभी अंदाज़ा नहीं लगा पाते. हम क्या कर सकते हैं, यह हमें पता नहीं होता.

मैंने कॉलेज ख़त्म होने के बाद दो-तीन बार फॉर्म डाला लेकिन मेरा नाम नहीं आया. अपने ज़िले से कॉलेज में मेरा नाम लिस्ट में आया और जब पता चला तब मुझे 2 दिन मिले थे एडमिशन करवाने के लिए. 1 दिन मेरा पूरा चला गया सरकारी दस्तावेज़ बनवाने में. दूसरे दिन गई, कॉलेज बंद हो गया था. सर बोले कल आना और एडमिशन करवा लेना. जब मैं अगले दिन गई तब चपरासी बोला कि आज कॉलेज की छुट्टी है. जब अगले दिन कॉलेज गई, तब सर ने मना कर दिया कि एडमिशन की डेट ख़त्म हो गई. मैंने बोला मैं कल आई थी लेकिन मुझे बताया गया कि कॉलेज बंद है. मैंने सर से बहुत रिक्वेस्ट की लेकिन मेरा एडमिशन नहीं हुआ.

17

तबस्सुम

(लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

मैं कौन हूं?

मै एक ज़िम्मेदार लड़की हूं क्योंकि बचपन से ही मेरी अम्मी की तबियत ख़राब रहती थी. घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता था, हर वक़्त मुझे लड़की होने का अहसास दिलाया जाता था. पर अब मैं अपने आपको इस ज़िम्मेदारी से थोड़ा दूर कर रही हूं, ज़िम्मेदारी के साथ-साथ और भी कामों को शुरू किया है, जिनको करने में मुझे ख़ुशी मिलती है.

18

वैशाली शेखर

(मावली, राजस्थान)

मैं क्या सोचती हूं?

कभी-कभी मुझे यह भी पता नहीं चलता कि मैं जिसके साथ अच्छे से रह रही हूं, क्या वह मेरे विश्वास के लायक है? क्या मैं किसी के ऊपर भी आंख बंद करके विश्वास कर सकती हूं? घर में कई बार मम्मी ने बोला, कभी पापा ने बोला, कभी सहेली ने बोला कि इतना विश्वास मत करा कर किसी के ऊपर, पर मैं सही गलत का निर्णय कभी ले नहीं पाई.

19

विकास खत्री

(बाप, फलौदी, राजस्थान)

मैं कौन हूं?

मैं अर्थी का कंधा हूं, घर का चिराग हूं,
मैं डर नहीं सकता, ना रो सकता हूं,
ना बोल सकता हूं, कि मैं कमज़ोर हूं
क्योंकि मैं एक लड़का हूं,
और मैं पुरुष वर्ग से आता हूं.

समाज से मैंने लड़का होने के नाते शुरू से ही बलशाली और घर का मुखिया होना सुना.
मैं अक्सर सोचता हूं कि मैं लड़का क्यों हूं?
लोगों को लगता है कि लड़का होना बहुत आसान है
लेकिन यह बिलकुल गलत है.

थर्ड आई ऑफलाइन टीम में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों से डिजिटल एजुकेटर्स जुड़े हैं. अपने परिवेश से गहरे जुड़े ये डिजिटल एजुकेटर्स समय, जेंडर एवं जाति के इतिहास की नज़र से अपने आसपास को समझने का प्रयास कर, इन मुद्दों से जुड़े विषयों पर अपनी रिपोर्ट तैयार करते हैं. कला के विभिन्न माध्यमों पर आधारित शिक्षण पद्धति एवं सामाजिक मुद्दों के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना इनकी ट्रेनिंग का मूलभूत आधार है.

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