पार्क में रोमांस करना मना है

बंदिशों और चाहतों के बीच, कैमरे की नज़र से कुछ कहानियां

कुछ महीने पहले मैंने ‘द थर्ड आई’ टीम के साथ यौनिकता में ‘मज़ा और खतरा’ पर एक कार्यशाला में भाग लिया था. इस कार्यशाला में हमने अपनी पसंद-नापसंद और अपनी चाहतों के बारे में बातें की थीं और तभी मैंने पहली बार ‘चार्म सर्किल’ के बारे में जाना. चार्म सर्किल को बनाने वाली गेल रूबिन बताती हैं कि कैसे कुछ तरह के यौन व्यवहार समाज में स्वीकार किए जाते हैं और अच्छे माने जाते हैं, जबकि बाकी को या तो संदेह की नज़र से देखा जाता है या पूरी तरह से नकार दिया जाता है.

गेल रूबिन, एक मानवविज्ञानी, सिद्धांतकार और नारीवादी कार्यकर्ता हैं, जो नारीवादी विमर्श और समलैंगिक अध्ययन में अपने काम के लिए जानी जाती हैं.

कितना अजीब है कि घरवाले एक तरफ लड़का-लड़की को आपस में मिलने से रोकते हैं और फिर एक दिन उनकी शादी तय कर उन्हें साथ में एक कमरे में बंद कर देते हैं कि अब तुम्हें जो करना है, करो. लेकिन ये ही लड़का-लड़की अपनी मर्ज़ी से एक-दूसरे से नहीं मिल सकते. ऐसा करने के लिए वे कोई ऐसी जगह ढूंढते हैं, जहां कोई देख न ले. शहर में अलग-अलग जगहों पर बने पार्क वो जगहें हैं, जहां हर उम्र और मिज़ाज के लोग आते हैं. यहां हर किसी के लिए जगह है. मैंने इन्हीं कहानियों को अपनी नज़र और अपनी कल्पना से बुनने की कोशिश की है. क्या है जो उन्हें यहां खीच लाता है? उनके भीतर क्या चल रहा होता है? पार्क में आकर कुछ लोगों को बच्चा बनना कैसा लगता है? बहुत सारे सवाल थे.

पर, जो तस्वीरें मैंने लीं, उन्हें खींचते वक्त मुझे काफी परेशानी हुई. मेरे दिमाग में ये बात बिलकुल साफ थी कि तस्वीरों में मैं किसी का चेहरा नहीं दिखाऊंगी क्योंकि मैंने उनसे फोटो के लिए सहमति नहीं ली और न ही उनका चेहरा दिखाना मेरी कहानी का मकसद है. मैं तो लोगों की कहानियां बुनना चाहती हूं कि कैसे पार्क अलग-अलग लोगों के लिए एक सुकून की जगह, अपनी इच्छाओं को थोड़ा जी लेने की जगह है. पर ऐसा करते हुए हर पल ये डर भी लगा रहा कि कहीं कोई मुझे टोक न दें कि मैं ये क्या कर रही हूं, तस्वीरें क्यों ले रही हूं?

एक परेशानी ये भी थी कि पहले मैं खुद से आना-जाना करती थी. अब कुछ समय से मेरे पति मुझे दफ्तर छोड़ते हैं और लेने आते हैं. ऐसे में इस फोटो-कहानी को तैयार करने के लिए मुझे खाली समय नहीं मिल रहा था. पहले ये काम आसान था, खुद से रिक्शे पर आते-जाते मैं अलग-अलग जोड़ों को देखती और मन ही मन कई कहानियां बुन लेती थी पर अब ऐसा कर पाना मुश्किल हो रहा था.

इसके साथ ही जब हम इन तस्वीरों को देख रहे थे तो हमें हर एक तस्वीर में एक कहानी दिख रही थी. हर कहानी हमसे कुछ कह रही थी, मानों, मैं खुद हर फोटो में अपने आपको देख पा रही थी. साथ ही, ये भी होता है कि फोटो के हावभाव से भी कहानी लिखी जा सकती है जैसे हम लिख रहे हैं. फोटो की हकीकत कुछ भी हो पर हमें उसको अपने नज़रिए से देखने में मज़ा आ रहा था. जैसे, मैसेज में हम इमोजी का कैसे धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं लेकिन इन ईमोजी की कहानी लिखते हुए अचानक महसूस किया कि ये हमारे दिल-दिमाग के तार को, हमारी भावनाओं को कितनी आसानी से बयां कर देते हैं. ऐसी और बहुत सारी बातें हैं लेकिन अब इसे आप खुद की नज़र से देखें और अपनी कहानी बनाएं.

विशेष साभार: सुमन परमार और गुरलीन ग्रेवाल 

1

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हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले 

~मिर्ज़ा गालिब

पत्नी: पार्क में आकर आप पूरी तरह बच्चे बन गए! ऐसे तो मैंने आपको कभी देखा ही नहीं. एकदम अलग लग रहे हैं आप, कितने खुश! नज़र न लगे. कितने दिनों बाद आपको ये खेल खेलने को मिला है. चलो, मैं आपकी फोटो लेती हूं. आप मेरी फोटो लेना.

पति: हां ज़रूर मज़ा आ रहा है. तुम अच्छे से फोटो लेना. इसे मैं अपने इनस्टाग्राम की स्टोरी पर डालूंगा और इसे फैमिली ग्रुप में भी भेजूंगा, मेरी बहने देखकर खुश हो जाएंगी.

2

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और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा 

~ फैज़ अहमद फैज़ 

लड़का: अरे यार! क्या मुंह फुला कर बैठी हो, कुछ तो बोलो. क्या ही फायदा हुआ यहां आने का? इससे अच्छा तुम फोन पर ही बात कर लेतीं. तुम लड़कियों को समझना बहुत बड़ी बात है! कब क्या सोच लेती हो, कुछ पता नही चलता!”

लड़की: बस बोल लिया? और कुछ रह गया हो तो वो भी बोल दो. एक बार मुझसे पूछ तो लेते कि मैं इतना परेशान क्यों हूं? आज घर से निकलते ही पापा ने पूछ लिया कि कॉलेज से किस टाइम निकलती हो? मैं थोड़ा देर के लिए घबरा गई कि कहीं उन्हें हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया! मैंने कहा, “उसी टाइम पर जिस टाइम रोज़ आती हूं.” ये बोलते हुए मैं अपना बैग उठाकर निकल गई.

अब हम कैसे और कब मिलेंगे!?”

3

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बे-दिली क्या यूं ही दिन गुज़र जाएंगे

~ जौन एलिया

आंख झपकाते हुए ईमोजी (विंक इमोजी): “चिंटू के पापा तुम देख रहे हो ना, यहां पर कितने अच्छे-अच्छे जोड़े आ रहे हैं. हाय! इन्हें देखकर मेरा मन फिसला-फिसला जाता है. दिल कर रहा है, कहीं घूम आएं. पर,आप तो ले कर जाओगे नहीं. बस यहीं दूसरों के नज़ारे ही दिखाते रहो. भला हो कि मैं हर अच्छे मर्द को देखकर कम से कम आंख तो मार देती हूं. कोई तो मेरी तरफ देखेगा और मुझसे दोस्ती करेगा.”

गुस्से वाला ईमोजी: “तेरी यही आंख मारने की ज़िद कितनी बार गलतफहमियां पैदा कर चुकी है. तुझे क्या पता, जो आशिक न भी हो, तेरी आंख मारने की अदा पर पागल हो जाता है. तुझे जो अच्छा लगता है कर, मेरी बला से!”

4

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तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ

~परवीन शाकिर

पार्क में हम दोनों का यूं इतने नज़दीक बैठना कितना आसान है न. यहां हम इतने नज़दीक बैठ सकते हैं लेकिन इसके बाहर जैसे हज़ारों निगाहें घूरती नज़र आती हैं. यहां आने के इंतज़ार में न जाने मैं कितने-कितने दिन यूं ही निकाल देती हूं लेकिन इंतज़ार की इन घड़ियों के बाद चाहे कुछ पल के लिए ही सही, जब तुम पास आकर बैठती हो तो लगता है, पूरी दुनिया सिमट कर इस एक जगह, इस पल में समा गई है. इन यादों को मैं कैमरे में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहती हूं… ताकि तुमसे हर बार मिलती रह सकूं.

5

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रहता था सामने तेरा चेहरा खुला हुआ, पढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में

~शकेब जलाली

लड़की: “अच्छा लो, अब फोटो खींच लो. अब मैं तैयार हो गई. पर अच्छी खींचना और जल्दी जल्दी खींचो. मुझे पार्क में और जगहों पर भी घूमना है. सिर्फ मेरी लेना अपनी नहीं, वरना मैं इसे सोशल मीडिया पर नहीं डाल पाऊंगी लेकिन तुम नहीं आओगे तो फोटो भी अच्छी नहीं लगेगी. खैर, अभी तो मेरी तस्वीर ही खींच दो. इसके बाद मैं तुम्हारी तस्वीर लेकर इसे फोन में कहीं छुपा लूंगी ताकि कोई देख न ले. मुझे यहां तुम्हारे साथ अच्छा लगता है. पर, हमें ऐसे मिलने का मौका कितना कम मिलता है. चलो, यहां से कहीं दूर चलें.

लड़का: वो सब तो ठीक है लेकिन अब अगर तुम बोलना बंद करो तो मैं तुम्हारी तस्वीर ले लूं.

6

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पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से 

~अकबर इलाहाबादी

“छोटू देख, हमसे लोग हाथ मिलाने आ रहे हैं.”

“और भाई, कैसे हो? मेरी तरह हसंते रहो और घूमते रहो.”

“क्यों, सही कहा ना छोटू!”

“हां भाई, आपने बिलकुल सही कहा है लेकिन मेरे पास अभी तक कोई नही आया हाथ मिलाने…और देखो, मेरी तरफ एक जोड़ा बैठा हुआ है, उसको देखकर लग रहा है कि वो लड़ाई कर रहे हैं.”

“अरे, तुझे क्या पता. लड़ने में भी एक मज़ा है. मैंने उनको पहले भी देखा है. वो पार्क आते ही लड़ने के लिए हैं ताकि फिर अलग-अलग बेंच पर बैठकर अपनी-अपनी पसंद की आइस्क्रीम खा सकें.”

“क्या?? तुम सच कह रहे हो? उफ्फ! मुझे तो पार्क में आने वाले जोड़े समझ ही नहीं आते.”

“हां यार, इनसे तो हम ही अच्छे. एक जगह खड़े होकर मज़े कर रहे हैं, हमें किसी की बात का कोई फर्क नही पड़ता, कोई कुछ भी कहे हम तो हंसते रहते हैं.”

7

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आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूं मैं

~जिगर मुरादाबादी 

लड़का: “रीना, याद है तुम्हें जब हम छोटे थे तो यहां कितना धमा-चौकड़ी किया करते थे. हम भागकर सबसे पहले झूले की तरफ जाते थे. कौन पहले झूलेगा इसे लेकर कितना लड़ते थे हम! हा हा…पहले कौन-पहले कौन के चक्कर में कोई दूसरा झूला झूलकर चला जाता था. उफ्फ! उस भीड़ में कितनी लड़ाइयां होती थीं.

लड़की: “हां, याद है…और आज हम सबसे नज़रे चुराकर सन्नाटे वाली जगह ढूंढ रहे हैं, जहां हम दोनों बैठकर आपस में बातें कर सकें. बड़े होकर ऐसा क्या बदल जाता है? हम दोनों तो वही हैं फिर इतनी पाबंदियां क्यों? पहले तो हर जगह हम दोनों साथ चले जाते थे, पर अब हमें एक साथ बैठने के लिए भी लोगों के बारे सोचना पड़ता है कि कहीं कोई देख न ले!”

तबस्सुम अंसारी हुसैनाबाद, लखनऊ की रहने वाली हैं. उन्हें फ़िल्म और फोटो बनाने में बहुत रुचि है. वास्तविक और काल्पनिक सोच में क्या रिश्ता है, ये एक दूसरे को कैसे निखारते हैं, इनके खेल से कैसे नए-नए मायने उभर कर आते हैं – इन सब प्रक्रियाओं और सवालों पर तबस्सुम का रियाज़ जारी है. तबस्सुम सद्भावना ट्रस्ट से जुड़ी हैं और द थर्ड आई की पूर्व डिजिटल एजुकेटर हैं.

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