चाहत

“खुद को एक कलाकार के रूप में देखती हूं और कला का मतलब भी तो खुद को शिक्षित करना ही है”

एजेंटस ऑफ़ इश्क के संदर्भ में मैं कहूंगी कि इसका ढांचा कलात्मक है जो कि ज्ञान या जानकारीपरक होने से कहीं ज़्यादा अहम है. लोगों को यह बताना कि आप जो हैं, आप वैसे ही रह सकते हैं, चीज़ें समझ नहीं आ रहीं, कन्फ्यूज़न है तो कोई बात नहीं ऐसा होता है और चलो हम इस पर बात करते हैं.

वह कौन सी भाषा है जिसमें हम सेक्स या सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करते हैं?

पारोमिता वोहरा, एक पुरस्कृत फ़िल्म निर्माता और लेखक हैं. जेंडर, नारीवाद, शहरी जीवन, प्रेम, यौनिक इच्छाएं एवं पॉपुलर कल्चर जैसे विषयों पर पारोमिता ने कई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मों का निर्माण किया है जो न सिर्फ़ अपनी फॉर्म बल्कि अपने कंटेंट के लिए बहुत सराही एवं पसंद की जाती हैं. यहां, द थर्ड आई के साथ बातचीत में पारोमिता उस यात्रा के बारे में विस्तार से बता रही हैं जिसमें आगे चलकर एजेंट्स ऑफ़ इश्क की स्थापना हुई. पढ़िए बातचीत का पहला भाग.

ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 3: ये दिल दीवाना भी और गुस्सा भी

ज़ूम कॉल पर बातों-बातों में जब मुस्कान ने कहा, “हमारे यहां तो ये सब चलता ही नहीं है” तो हमें थोड़ा समय लगा यह समझने में कि मुस्कान यहां प्यार करने और साथ ही गुस्सा करने की बात कर रही है. शुभांगणी जो राजस्थान के केकरी ज़िले से जुड़ रही थी उसने मुस्कान की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुझे तो लगता है कि बड़ों के लिए हम फुटबॉल हैं!

मैं कब बढ़ी हुई

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 2: मैं कब बढ़ी हुई?

साहिबा के लिए गूगल बाबा, ज्ञान का भंडार हैं जहां वो सुबह से लेकर शाम तक लगातार घूमती रहती है और मानसिक स्वास्थ्य से लेकर तरह-तरह की जानकारियों का हल ढूंढती रहती है. ज़ूम कॉल पर 18 साल की साहिबा खुद के बारे में और खुद का ध्यान रखने के बारे में इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है कि सभी उत्सुकता से उसकी बातों में डूबते रहते हैं. साहिबा की बातों में एक सवाल था जो लुके-छिपे ढंग से दिखाई दे रहा था – मैं कब बड़ी हुई?

मेरी सुरक्षित जगह कहां है?

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 1: मेरी सुरक्षित जगह कहां है?

नारीवादी संस्थाओं और अकादमिक बातचीत में ‘सुरक्षित जगह’ के बारे में अक्सर बात की जाती है. भिन्न मौकों पर हम इस बात को दोहराते हैं कि इस लफ्ज़ के माने अलग-अलग लोगों के लिए, और अलग-अलग वक़्त पर कितने मुख्तलिफ़ रहे हैं. कुछ ऐसा ही सवाल हमने मुस्कान और शोम्या से पूछा कि इस लफ्ज़ का उनके लिए क्या मतलब है?

मेरा चश्मा ट्रेलर

मेरा चश्मा, मेरे रूल्स Ep 0: ट्रेलर

‘मेरा चश्मा मेरे रूल्स’ तीन एपिसोड की एक पॉडकास्ट शृंखला है. इसे द थर्ड आई ने ‘पार्टनर फॉर लॉ इन डेवलपमेंट (पीएलडी) के साथ मिलकर तैयार किया है. पीएलडी की मदद से हमारी मुलाकात बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों से 18 से 20 साल की 4 लड़कियों से हुई.

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