स्कूल के नाम पत्र

स्कूल की याद में

चित्रांकन : द्युति मित्तल

इस कॉलम को अंकुर संस्था के साथ साझेदारी में शुरू किया गया है. अंकुर संस्था द्वारा बनाई जा रही विरासत, संस्कृति और ज्ञान की गढ़न से तैयार सामग्री और इसी विरासत की कुछ झलकियां हम इस कॉलम के ज़रिए आपके सामने पेश कर रहे हैं. ‘आती हुई लहरों पर जाती हुई लड़की’ कॉलम में हर महीने हम आपके सामने लाएंगे ऐसी कहानियां जिन्हें दिल्ली के श्रमिक वर्ग के इलाकों/ मोहल्लों के नारीवादी लेखकों द्वारा लिखा गया है.

(सर्वोदय कन्या विद्यालय, ए ब्लॉक, सावदा-घेवरा, दिल्ली – 81)

28.05.2020

प्रिय स्कूल तुम कैसे हो?

इन दिनों जब हम स्कूल नहीं आ रहे हैं, क्या तुम अभी भी रोज़ खुल रहे हो? सुना है, आज-कल तुम राशन-घर बन गए हो, कुछ प्रवासी मज़दूर तुम्हारे कमरों में रह रहे हैं. उनका ख्याल रखना. समझना कि यही लोग हमारी कमियों को पूरा कर रहे हैं. टीचर न सही उनके लिए डॉक्टर, पुलिस तो आती होगी, जो उन्हें शांत कराते होंगे? उन्हें भी खाना स्कूल वाली आंटी बांटती हैं या कोई और बांटता है? क्या जिस तरह हमें लाइनों में लगा कर खाना मिलता था, वे भी लाइनों में लगते हैं क्या? वे लोग भी खाने की लाइन में झगड़ते हैं क्या?

एक दिन चोरी से हम तुम्हें देखने आए थे. तुम खुले थे, अंदर मैदान में भीड़ नहीं थी, लेकिन दरवाज़े के बाहर बहुत से लोग बनाए गए गोलों के अंदर अपने बर्तन रख कर अंदर जाने के इंतज़ार में बाहर दीवार की छाया में खड़े थे.

तुमने हमें ज़रूर ही देखा होगा. तुम भी सतर्क रहना, कोरोना बीमारी नहीं, महामारी है.

पानी टैंकर तो अभी भी आता होगा? टैंकर को आता देख हम सब कितना शोर मचाते थे! ये मज़दूर भी शोर मचाते होंगे न?

हम लोग बेंचों को पीटते थे, चबूतरे से कूदते थे, पेड़ों में झूलते थे, सर के पास शिकायत लेकर जाते थे. वे लोग किसके पास शिकायत लेकर जाते हैं? हां, उन्हें तो पुलिस अंकल ही घमका देते होंगे!

आजकल तुम हॉस्पिटल, थाना, राशन-घर सब एक साथ बन गए हो. अब तो रातों को भी तुम्हारे यहां डेरा पड़ा है. तुम चौकीदार से बात क्यों नहीं करते हो, वे चुपचाप बैठे रहते हैं.

अरे, मैं भूल ही गई, इस वक़्त हम लोग टेंशन में हैं. हमारी दसवीं और बारहवीं के रिज़ल्ट का क्या हुआ? जो पेपर छूट गए, उनका क्या होगा?

हमें जैसे ही आदेश मिलेगा हम लोग फिर से आ जाएंगे.

अपना ख्याल रखना,
तुम्हारी दोस्त,
काजल.
सावदा-घेवरा, दिल्ली-110081.

17 साल की काजल दिल्ली के सावदा घेवरा इलाके में रहती हैं और पास ही स्थित गर्वमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा हैं. वे अंकुर कलेक्टिव की नियमित रियाजकर्ता रही हैं. हंस पत्रिका के ‘घुसपैठिए कॉलम’ में उनकी ‘तेज़ाबे इश्क’ नाम की कहानी प्रकाशित हो चुकी है.

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