शिक्षा

हॉस्टल डायरी

जोधपुर में समाज के हॉस्टल सिर्फ़ लड़कों के लिए क्यों हैं? हॉस्टल के अंदर इतना अकेलापन क्यों है? क्या अच्छा लड़का होना एक दिन के लिए छोड़ा जा सकता है? लर्निंग लैब के तहत होने वाले ‘मंडे अड्डा’ में ऐसे कई सवालों को खोलते-खोलते यह हॉस्टल डायरी जितना विकास को चकित कर रही थी, उतना ही यह हमारे भीतर की उत्सुकता को भी जगा रही थी.

बोलती कहानियां: हेकड़ी

बोलती कहानियां के इस नए 6वें एपिसोड में दिप्ता भोग से सुनिए लेखक विजयदान देथा की कहानी हेकड़ी. यह कहानी उनके संग्रह ‘बातां री फुलवाड़ी’ के हिंदी अनुवाद से ली गई है जिसके प्रकाशक राजस्थानी ग्रंथागार हैं.

“मुझे सभी औरतों से नफरत है”

डाक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माता एवं शोधार्थी हरजंत गिल, जिन्होनें भारतीय मर्दवाद (या मर्दानगी) पर कई डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाई हैं, कहते हैं कि, “मर्दवाद के बारे में बात करते वक्त एक बड़ी चुनौती यह आती है कि आप इस बातचीत में मर्दों को शामिल करते हैं और वे यह नहीं समझ पाते कि उन्हें इस बातचीत में किधर जाना है या इस सवाल को कैसे समझना है…

क्या हो अगर आपका काम लड़कों और मर्दों को ‘बेहतर लड़के और मर्द’ बनना सिखाने का हो?

सामाजिक विकास के क्षेत्र में जेंडर पर होने वाले काम में पारम्परिक रूप से महिलाओं और लड़कियों को ही शामिल किया जाता रहा है. नब्बे के दशक के मध्य तक आने के बाद ही कुछ चुनिंदा गैर-सरकारी संगठनों ने जेंडर के मुद्दे पर लड़कों और पुरुषों के साथ काम करना शुरू किया.

कैसे मैंने भरतनाट्यम से दुबारा प्यार करना सीखा

मैं दर्द और थकन से चूर, छात्रावास के अपने झक्क-सफ़ेद कमरे में आती हूं. मैं देखती हूं कि मेरी रूममेट अपने घुटनों की मालिश कर रही है. मैं उस तेल की सुस्त गंध में राहत ढूंढने की कोशिश करती हूं. अगली सुबह डांस प्रैक्टिस के लिए फिर जाना है. सुबह 5 बजे का अलार्म सेट करते हुए मेरी अंतरात्मा कराह उठती है.

छोटे शहरों की लंबी रात

फ़िल्म ‘रात: छोटे शहरों की लंबी रात’ डिजिटल एजुकेटर्स द्वारा अपने-अपने गांव और कस्बों में रात के अपने अनुभवों का चित्रण है. कौन है जो रात में बाहर निकल सकता है? कौन है जो हम पर नज़र रखता है? किस पर नज़र रखी जाती है? घुप अंधेरे के बारे में होते हुए भी यह फ़िल्म हमें उजाला दिखाती है. उजाला, नए इतिहास के बनने का.

शिक्षा पर बनी ये 12 फ़िल्में ज़रूर देखें

पिछले कुछ महीनों से हमने शिक्षा विशेषांक में शिक्षा से जुड़ी कई तरह की बातें, विचार, जानकारियां, किस्से-कहानियां आपसे साझा की हैं. विशेषांक के इस अंतिम पढ़ाव में हम बात कर रहे हैं उन फ़िल्मों के बारे में जो शिक्षा से जुड़े कई तरह के पेंच खोलने का काम करती हैं. ये फिल्में अपने समय का दस्तावेज़ हैं और उन मुखर सवालों को पूछने का काम कर रही हैं जिन्हें या तो हम समझ नहीं पाते या जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं.

मेरी मां का रिपोर्ट कार्ड

पिछले साल की बात है. मैं, हर वक्त कोशिश करती रहती कि मां को बिठाकर तसल्ली से उनसे बात कर सकूं. लेकिन, घर के कामों में वो इस तरह उलझी रहतीं कि फ़ुर्सत से बैठ कर बात भी नहीं कर पातीं.

उपस्थिति दर्ज करने की ज़िद

किसान मां और पुलिस में नौकरी करने वाले पिता की बेटी, सेजल राठवा, पत्रकार बनने वाली अपने समुदाय की पहली लड़की है. छोटा उदयपुर की रहने वाली सेजल ने बतौर ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट, वडोदरा, गुजरात के वीएनएम टीवी के साथ पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की.

जाति कहां है?

मुम्बई, महाराष्ट्र के रहने वाले रोहन के लिए अपने सरनेम पर गौरव महसूस करना और आरक्षण का विरोध कर रिज़र्व श्रेणी की जातियों को अपनी परेशानी का कारण बताना बहुत आसान था. लेकिन, एक फेलोशिप पर काम करने के दौरान जब रोहन ने निगाह उठाकर अपने आसपास देखने की कोशिश की तब उसे जाति और उससे जुड़े विशेषाधिकारों के बारे में पता चला.

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