“आदिवासी बचेंगे तो जंगल बचेंगें”
नक्शा ए मन शृंखला की इस दूसरी कड़ी में प्रकाश और बाओ एक विकृत दुनिया और उसकी उलटबासियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं जो आदिवासियों को ‘बाहरी’ समझती हैं.
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नक्शा ए मन शृंखला की इस दूसरी कड़ी में प्रकाश और बाओ एक विकृत दुनिया और उसकी उलटबासियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं जो आदिवासियों को ‘बाहरी’ समझती हैं.
महाराष्ट्र के नन्दुरबार ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र में बसे जंगलों में घूमते हुए प्रकाश ने वहां के लोगों के साथ जिस जीवन को करीब से देखा और जिसे वहां के रहने वालों के साथ जिया उसे एक ख़ूबसूरत सी चिट्ठी में अपने शब्दों के ज़रिए हमारे सामने जीवंत कर रहे हैं.