सामाजिक न्याय

मेकिंग टेक्स्ट्बुक फेमिनिस्ट: किताबों को नारीवादी बनाने की ओर

2005, में निरंतर संस्था ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के आग्रह पर बच्चों की पाठ्य- पुस्तिकाओं को ‘जेंडर संवेदनशील’ बनाने का काम किया था. निरंतर संस्था द्वारा तैयार की गई किताबें 15 साल से भारतीय स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं. इस साल 2022 में इनमें से जाति पर कुछ पाठ्यक्रमों को हटा दिया गया है.

किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी, मगर कोई चेहरा भी पढ़ा है?

इस अंक में गौतम, हमसे अध्यापन कार्य की प्रक्रिया में क्रोध और उसकी बंदिशों पर चर्चा कर रहे हैं. गौतम का मानना है कि आनंद और उल्लास सीखने की प्रक्रिया में गहराई लाते हैं. गौतम भान, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट (IIHS) में अध्यापन कार्य से जुड़े हैं.

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