टीम

द थर्ड आई की पाठ्य सामग्री तैयार करने वाले लोगों के समूह में शिक्षाविद, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मकार, कहानीकार जैसे पेशेवर लोग हैं. इन्हें कहानियां लिखने, मौखिक इतिहास जमा करने और ग्रामीण तथा कमज़ोर तबकों के लिए संदर्भगत सीखने−सिखाने के तरीकों को विकसित करने का व्यापक अनुभव है.

दिप्ता भोग

हेड ऑफ रिसर्च, इनोवेशन एंड पार्टनरशिप

दिप्ता भोग पिछले तीन दशकों से जेंडर और शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही हैं. दिप्ता, जेंडर एवं शिक्षा पर काम करने वाली दिल्ली स्थित ‘निरंतर संस्था’ की सह-संस्थापक हैं. पत्रकारिता से अपना लंबा सफर शुरू करते हुए दिप्ता ने गांवों की महिलाओं पर अध्ययन और काम करने की ओर कदम बढ़ाया. महिला साक्षरता, व्यस्क एवं किशोरियों की शिक्षा तथा ग्रामीण पत्रकारिता के प्रोग्राम डिज़ाइन, क्रियान्वयन, नीति निर्धारण और उसके प्रभाव को आंकने में भी उनका लंबा अनुभव है.

उन्होंने निरंतर द्वारा पांच-राज्यों की अध्ययन साम्रागी के विश्लेषण से जुड़े टेक्स्टबुक रेजीम्स नामक प्रोजेक्ट का को-ऑर्डिनेशन किया है. इसके अंतर्गत नारीवादी दृष्टिकोण से स्कूली पाठ्यपुस्तकों का विश्लेषण किया गया और राष्ट्रीय और राज्य दोनों ही सरकारों के लिए पाठ्य-पुस्तकें निर्माण करने का भी काम किया गया. 2002 में मीडिया संस्थान खबर लहरिया की स्थापना में भी दिप्ता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने ग्रामीण महिला पत्रकारों की टीम को प्रशिक्षित करने का काम किया. खबर लहरिया की शुरुआत एक अखबार के रूप में हुई जो आज अग्रणी ग्रामीण खबरीय चैनल के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो चुका है. दिप्ता के एक शोध लेख का विषय ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों की महिला नेतृत्वकर्ताओं पर केंद्रित था जो गैर-सरकारी संगठनों का नेतृत्व करती हैं.

दिप्ता, दक्षिण एशिया और पूर्वी अफ्रीका में नारीवादी नेतृत्व और आंदोलन निर्माण पर क्रिया (CREA) संस्थान के काम को नया रूप देने और वर्तमान में इसके संचालन के कार्य से भी जुड़ी हैं. युवा लड़कियों और उनके समूहों पर उनके शोध के परिणामस्वरूप बर्डबॉक्स ने आकार लिया जिसे तैयार करने में कलाकार बारान इजलाल ने भी सहयोग दिया. यह बायोस्कोप के आकार में एक ऑडियो-वीडियो इंस्टॉलेशन है जहां आप चाहत, प्यार, शर्म और आज़ादी के विषयों पर भोपाल, लखनऊ और कर्वी की युवा लड़कियों की बातचीत सुन सकते हैं.

द थर्ड आई में वे हिंदी प्रकाशन, साझेदारी और आउटरीच का नेतृत्व करती हैं. उन्होंने केसवर्कर्स के साथ मिलकर हिंसा की शब्दावली की अवधारणा तैयार करने एवं इसे आकार देने का काम किया है. इसके साथ ही वे टीटीई में प्रकाशित होने वाले संस्करणों को दिशा और गहराई देने में मदद करती हैं.

शबानी हसनवालिया

एडिटर एवं प्रोड्यूसर

शबानी एक फ़िल्मकार और लेखिका हैं. वे मीडिया के अलग-अलग मंचों के साथ नॉन-फिक्शन लेखन, छवियों और ध्वनियों पर साल 2000 से काम कर रही हैं. उनका काम, बदलते भारत में सामाजिक-आर्थिक सच्चाइयों, विस्फोटक रूप लेती उप-संस्कृतियों और जाति के अतरंग संबंधों के इतिहास से जुड़ा है. दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने जामिया मिलिया के मास-कम्यूनिकेशन रिसर्च सेंटर (एससीआरसी) से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. शबानी द्वारा बनाई गई फीचर डॉक्यूमेंटरियों में : बीइंग भाईजान (2014), गली (2017) और आउट ऑफ़ थिन एयर (2009) शामिल हैं. वे आईएनएकेएस (INLAKS) और डॉक्यूमेंटरी फ़िल्ममेकर ग्रुप, लंदन की फेलो रह चुकी हैं. इसके अलावा उन्होंने द सनडांस इंस्टिट्यूट, लॉस एंजेलिस के साथ भी काम किया है. लगभग एक दशक से भी अधिक समय तक वे दिल्ली से निकलने वाली पत्रिका फर्स्ट सिटी के संपादकीय मंडल के कोर सदस्यों में शामिल रहीं. उन्होंने डिजिटल स्टोरीटेलिंग के ज़रिए सामाजिक बदलाव पर ग्रामीण इलाकों में किशोरियों और युवतियों के साथ भी बड़े पैमाने पर काम किया है. बतौर संपादक शबानी टीटीई के संपादकीय कार्यों का नेतृत्व करती हैं और टीम के साथ मिलकर नए नज़रियों और नारीवादी दृष्टिकोणों को विकसित करने में सक्रिय हैं.

रुचिका नेगी

नेतृत्तव (लीड), द लर्निंग लैब

रूचिका, डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर और शिक्षक हैं. वे, 2015 से विभिन्न विश्वविद्यालयों और अनौपचारिक स्थानों पर नॉन-फिक्शन सिनेमा पढ़ाने का काम कर रही हैं. टीटीई में वे लर्निंग लैब का नेतृत्व करती हैं, जो एक कला आधारित शैक्षणिक मंच है. द लर्निंग लैब, ज़मीनी स्तर के संगठनों, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं, अनुसंधानकर्ताओं और पॉलिसी विचार मंचों के साथ मिलकर अनुभवात्मक शिक्षा और सह-निर्माण प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने का काम करती हैं. द लर्निंग लैब का नेतृत्व करते हुए बतौर मेंटर उन्होंने टीटीई की पुरस्कार प्राप्त फ़िल्म ‘रात-छोटे शहरों की लंबी रात’; डिजिटल एजुकेटर द्वारा तैयार की गई एवं प्रतिष्ठित टोटो अवॉर्ड्स के लिए शॉर्टलिस्ट फ़िल्म ‘खुशी की रौशनी’ – जो इच्छाएं, गतिशीलता और समय के बारे में बात करती है; के अलावा कई महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों के निर्माण में मेंटर की भूमिका निभाई है. द लर्निग लैब के अंतर्गत उन्होंने विभिन्न जातिगत स्थितियों और जाति पर फ़िल्म बनाने की प्रक्रिया पर आधारित दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘हमारे बीच में’ का सह-निर्देशन और सह-संपादन भी किया है.

रूचिका को सेंटर फॉर कंटेम्परेरी आर्ट, वारसॉ; पीएवी सेंटर फॉर कंटेम्परी आर्ट, ट्यूरिन और खोज स्टूडियो, दिल्ली द्वारा क्रिएटिव रेज़िडेंसी से सम्मानित किया जा चुका है. 2016 में उन्हें चार्ल्स वालेस शॉर्ट टर्म ग्रांट दिया गया. इसके साथ ही उन्हें इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स द्वारा रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन अनुदान भी प्राप्त है. रूचिका के रचनात्मक कार्यों की प्रदर्शनी विभिन्न फेस्टिवल और कला मंचों पर लग चुकी है, जिसमें 2022-23 का कोच्चि मुज़िरिस बिएननेल भी शामिल है.

सुमन परमार

सीनियर कंटेंट एडिटर, हिन्दी

सुमन, लेखक, अनुवादक एवं संपादक हैं. एक दशक से भी अधिक समय से तक वे हिंदी के प्रकाशन संस्थानों, रेडियो, प्रिंट एवं वेब मीडिया हाउस के साथ जुड़ी रहीं. पत्रकारिता संस्थान आईआईएमसी से प्रिंट मीडिया में डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 92.7 बिग एफएम रेडियो से की और फिर दैनिक भास्कर, बीबीसी हिंदी, जैसे प्रतिष्ठित मीडिया हाउस के साथ काम किया और फ़िल्म, कला और सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखे.  

टीटीई में हिंदी संपादकीय टीम को लीड करने के साथ-साथ वे टीटीई हिंदी के लिए आउटरीच कार्यक्रमों, अनुवाद, कमीशनिंग, लेखन और संपादन का प्रबंधन भी देखती हैं. सुमन ने हिंदी की कई बेस्टसेलर किताबों का अनुवाद एवं संपादन किया है, जिसमें देवदत्त पटनायक की किताब मेरी गीता और मेघना गुलज़ार की किताब वो जो हैं शामिल है. समय मिलने पर अपने यूट्यूब चैनल पर कहानियां सुनाना और किताबों पर बातें करना उन्हें सुहाता है. जेंडर, कल्चर और एजुकेशन से जुड़े मुद्दों पर काम करना उन्हें पसंद है.

सादिया सईद

टेक्निकल लीड, सहायक निर्माता

सादिया लाइब्रेरी एंड इंफ़ोरमेशन साईंस में स्नातकोत्तर हैं. वे 2002 में निरंतर के साथ बतौर लाइब्रेरियन के रूप में जुड़ीं. समय के साथ सादिया ने निरंतर प्रकाशन का कार्यभार पूरी तरह संभाल लिया, इसमें प्रकाशित सामाग्री के डिज़ाइन से लेकर लेखन, संपादन, अनुवाद व प्रूफ़रीडिंग तक सभी काम शामिल है. 

फिलहाल सादिया, द थर्ड आई की अंग्रेज़ी और हिंदी, दोनों वेबसाईट का तकनीकी हिस्सा संभालती हैं. वे हिंदी सोशल मीडिया टीम को लीड करती हैं और निरंतर रेडियो के शो बोलती कहानियां  के निर्माण का कार्य भी संभालती हैं. वे हिंदी लेखों के प्रूफ का भी काम देखती हैं. किसी भी फ़ूड डिलीवरी एप्प की वे शायद सबसे पसंदीदा ग्राहक हैं.

माधुरी अडवाणी

पॉडकास्ट प्रोड्यूसर एवं एसोसिएट एडिटर (द लर्निंग लैब)

माधुरी अडवाणी, ध्वनियों की दुनिया के साथ काम करती हैं. वे निरंतर रेडियो पर कहानियों एवं संवादों के निर्माण, रिकॉर्डिंग, एडिटिंग एवं उसे तैयार करने का काम करती हैं. उनके द्वारा तैयार की गई प्रमुख ऑडियो प्रस्तुतियों में एकल इन द सिटी, मेरा चश्मा मेरे रूल्स और मन के मुखौटे जैसे शो शामिल हैं. उन्होंने डिक्शनरी ऑफ वायलेंस के लिए केसवर्कर्स डायरी नामक ऑडियो कहानियों का सह-निर्माण किया. इसके अलावा निरंतर रेडियो की प्लेलिस्ट में कहानीकार वैदेही, निशा सुज़न एवं दूसरी अन्य भाषाओं से कहानियों का ऑडियो के लिए हिंदी अनुवाद किया है. माधुरी, द थर्ड आई के कार्यक्रम द लर्निंग लैब से भी जुड़ी हैं. द लर्निंग लैब के साथ वे कार्यशालाओं का मार्गदर्शन और संचालन करती हैं, जहां वे ‘हम अपनी कहानियां कैसे बता और लिख सकते हैं’ की नज़र से विषयों को समझने-समझाने का काम करती हैं.

वर्तमान में वे एकल महिलाओं पर आधारित अपनी किताब पर काम कर रही हैं, जो ऑडियो श्रृंखला एकल इन द सिटी पर आधारित है. इस शृंखला से जुड़ी एक कहानी को 2023 में लाडली मीडिया अवार्ड से भी नवाज़ा गया है. उनके अन्य कामों में टपरी टेल्स और कहानियों का अड्डा – ऑडियो कहानी संग्रह शामिल हैं. अक्सर माधुरी को अपने रिकॉर्डर के साथ कस्बों और ग्रामीण इलाकों में घूमते हुए देखा जा सकता है. जब वे रिकॉर्डिंग और लेखन नहीं कर रही होती हैं, तो द थर्ड आई में कॉफी बना रही होती हैं.

शिवम् रस्तोगी

वीडियो प्रोड्यूसर, इमेज एडिटर   

शिवम फ़िल्ममेकर और फॉटोग्राफर हैं जो लगातार कैमरा के पीछे से दुनिया और इसके विभिन्न रंगों को देखने-समझने की कोशिश करते रहते हैं. दिल्ली एनसीआर में रहने वाले शिवम ने इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से जर्नलिज़्म और मास कम्यूनिकेशन में स्नातक की डिग्री और जामिया मिलिया के मास कम्यूनिकेशन रिसर्च सेंटर (एनसीआरसी) से स्नाकोत्तर डिग्री हासिल की है. 

द थर्ड आई में वे वीडियो, फ़िल्म और फोटो निबंधों को तैयार करने में बतौर आर्ट कमिशनर/ क्यूरेटर/ एवं मेंटर की भूमिका में काम करते हैं. वे सेक्स (वर्क) एंड द सिटी (2021), रात: छोटे शहरों की लंबी रात , मेड इन बेल्दा (2022), और पढ़ने उमेर जैसी पुरस्कार प्राप्त फ़िल्मों का निर्माण करने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं. शिवम ने, टीटीई वीडियो शृंखला – फ़िल्मी शहर, टीचर टॉक्स, ब्लैकबॉक्स और मीट द केसवर्कर्स का भी नेतृत्व किया है. जब वे ये सारे काम नहीं कर रहे होते हैं, उस वक्त उन्हें अपने आईमैक पर एडिटिंग करते, पॉडकास्ट सुनते, फोटो वॉक पर जाते या मेडिटेशन करने के बारे में विचार करते पाया जा सकता है.

आस्था बाम्बा

सहायक संपादक और कम्यूनिकेशन स्ट्रैटिजिस्ट

आस्था ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. वे 2021 से टीटीई के साथ जुड़ी हैं. वे सभी संपादकीय और संचार से जुड़ी परामर्श प्रक्रियाओं में सहायता करती हैं. केसवर्कर्स द्वारा तैयार की गई हिंसा की शब्दावली के निर्माण में वे बतौर सह-नेतृत्व की भूमिका में काम करती हैं.

टीटीई के साथ जुड़ने से पहले वे अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर स्टडीज़ इन जेंडर एंड सेक्सुएलिटी (सीएसजीएस), संगत – ए फेमिनिस्ट नेटवर्क और फेमिनिज्म इन इंडिया के साथ लेखक एवं शोधकर्ता के रूप में काम कर चुकी हैं. एक छात्रा के रूप में कई आंदोलनों के साथ जुड़ने और नेतृत्व का कार्यभार संभालने वाली आस्था ने, यौन उत्पीड़न, सार्वजनिक शिक्षा, छात्रावास में कर्फ्यू के नियमों और निगरानी से जुड़े कई सशक्त सवालों को उठाने का काम किया है. नारीवादी ज्ञान को तैयार करने और उसे आम लोगों तक पहुंचाने के प्रति वे प्रतिबद्ध हैं. आस्था को फ़ील्ड पर जाना बहुत पसंद है.

जूही जोतवानी

संपादकीय सहायक, लेखक और सहायक पॉडकास्ट निर्माता

जूही एक लेखक एवं शोधकर्ता हैं. इन्हें शोधपरक लंबे लेख लिखना पसंद है. वे संपादकीय सहायक होने के साथ-साथ द थर्ड आई के पॉडकास्ट चैनल निरंतर रेडियो के लिए पॉडकास्ट एपिसोड और ऑडियो भी तैयार करती हैं. जूही ने साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन में प्रशिक्षण लिया है और इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स (IIHS), बैंगलोर में एक फेलो के रूप में शहरीकरण विषय पर अध्ययन भी किया है. अब तक प्रकाशित उनके कामों में सिटीज़न मैटर्स, बैंगलोर के साथ नागरिक मुद्दों पर लेख शामिल हैं. साथ ही मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन विषय पर उनकी तीन शोध परियोजनाएं, पुस्तक अध्यायों के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं. नारीवादी साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन में उनकी गहरी रुचि है. खाली समय में आप उन्हें फ़िल्में देखते या बोर्ड गेम खेलते हुए पाएंगे.

गुरलीन ग्रेवाल

वीडियो संपादक, सहायक निर्माता

गुरलीन एक फ़िल्म निर्माता और संपादक हैं. वे हमारे आसपास रोज़मर्रा की कहानियों और संरचनाओं में रुचि रखती हैं. गुरलीन ने डिज़ाइन में स्नातक की डिग्री और श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन से क्रिएटिव डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म निर्माण में पीजी डिप्लोमा की डिग्री हासिल की है. डिप्लोमा के दौरान उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म समवेयर नियर एंड फार (कहीं दूर और पास) बनाई, जिसने इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (आईएफएफके), केरल में सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार जीता. वीडियो एडिटर और मेंटर के बतौर वे, द थर्ड आई की द लर्निंग लैब से भी जुड़ी हैं. उन्होंने जाति पर आधारित हमारी फ़िल्म ‘हमारे बीच में‘ (इन बिटवीन अस) का सह-संपादन किया है, जो द लर्निंग लैब की शैक्षणिक प्रक्रियाओं के बीच से तैयार हुई है. इसके अलावा वे केसवर्कर्स द्वारा तैयार की गई ‘हिंसा की शब्दावली‘ से जुड़े वीडियो इंटरव्यू और फ़िल्म ‘क्या है ये समझौता’ की वीडियो प्रोडक्शन टीम का हिस्सा रही हैं. वे संपादकीय प्रक्रियाओं में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. फिलहाल वे रिफ्रेम इंस्टीट्यूट ऑफ़ आर्ट एंड एक्सप्रेशन ग्रांट प्रोग्राम के तहत अपनी दूसरी फ़िल्म पर काम कर रही हैं.

कुलसुम

एडमिन और फील्ड फैसिलेटेटर

फील्ड पर बतौर फेसिलिटेटर काम करने के साथ-साथ, कुलसुम द थर्ड आई एडमिन का कार्यभार भी संभालती हैं. वे द थर्ड आई की सोशल मीडिया टीम से जुड़ी हैं और उन्हें रील्स बनाना बहुत पसंद है. बांदा, उत्तर-प्रदेश से बॉटनी विषय में पोस्ट ग्रैज्यूएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने दिल्ली की तरफ रुख किया. कुलसुम, द थर्ड आई की बहु-चर्चित फ़िल्म सिटी गर्ल्स की मुख्य दो नायिकाओं में से एक हैं. यह फ़िल्म, बांदा से दिल्ली आने वाली दो लड़कियों की ज़िंदगी के अनुभवों पर आधारित है. कुलसुम को नई जगहों पर जाना, घूमना और अपनी फोटो खिंचवाना बहुत पसंद है.

निरंतर में   

अर्चना द्विवेदी

निदेशक, निरंतर ट्रस्ट

अर्चना को जेंडर और शिक्षा के क्षेत्र में 18 साल का अनुभव है. वे निरंतर के नेतृत्व के अलावा, नारीवादी दृष्टिकोण से महिला सशक्तीकरण एवं युवाओं की शिक्षा के मुद्दों पर शोध और लेखन कार्य से भी जुड़ी रही हैं. अर्चना ने निरंतर द्वारा स्वयं साहित्य समूहों और शिक्षा पर राष्ट्रस्तरीय अध्ययन पर काम किया, जो एक अग्रणी अध्ययन था. रास्ट्रीय शिक्षा नीति और किशोरियों की शिक्षा नीति पर सरकार और सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर उन्होंने कार्य किया है. कमज़ोर तबक़ों की महिलाओं और लड़कियों के साथ ज़मीनी काम ने अर्चना के काम को मज़बूती प्रदान की है. वे ज़मीनी संगठनों तक शोध की पहुंच बनाने में यक़ीन रखती हैं; इस तरह, उनके इस यक़ीन से प्रशिक्षकों, ज़मीनी कार्यकर्ताओं और संगठनों के परे भी ट्रेनिंग तथा पाठ्य सामग्री पहुंचाना संभव हुआ.

निरंतर बोर्ड

रेणुका मिश्रा

रेणुका मिश्रा को दिल्ली विश्वविध्यालय से सोशल वर्क में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त है. इंग्लैंड में मानसिक रोगियों के साथ सामाजिक कार्य करने के बाद रेणुका राजस्थान विश्वविध्यालय के प्रोढ़ शिक्षा विभाग में अध्यापन कार्य किया. 1976 में उन्होंने विकास संबंधी मुद्दों पर द्विभाषीय पत्रिका ‘हाउ’ निकाली. ‘हाउ’ के प्रकाशन के दौरान आपने देश भर के ग़ैर सरकारी संगठनों से व्यापक संपर्क साधा. यूनिसेफ़ के लिए सेंडिट के सहयोग से रेणुका ने महिलाओं एवं सशक्तिकरण पर 12 एपिसोड वाला सीरियल बनाया. ‘एक्शन इंडिया’ के लिए एक दशक से भी ज़्यादा समय तक , दिल्ली के मेहरौली क्षेत्र में पत्थर खदानों और खेतिहर मज़दूरों को संगठित करने का काम रेणुका ने किया. वे महिला समाख्या कार्यक्रम में प्रशिक्षक रिसोर्स पर्सन एवं मूल्यांकनकर्ता के रूप में जुड़ी रही हैं. वे निरंतर की फाउंडर मेंबर हैं और नव साक्षर औरतों के लिए ब्रॉडशीट्स विकसित करने, कंटीन्यूइंग एजुकेशन में नए-नए प्रयोग और ग्रामीण सीखने सिखाने वालों के लिए स्वास्थ्य पाठ्यक्रम बनाने के काम से नज़दीकी से जुड़ी रही हैं.  फ़िलहाल वे वैदिक ग्रंथों संबंधी अपनी समझ बढ़ाने और इस विषय के संस्कृत विद्वानों से संपर्क मज़बूत कर रही हैं.

सरोजिनी नादिमपल्ली

सरोजिनी नादिमपल्ली पिछले तीन दशक से सार्वजनिक स्वास्थ्य और महिला स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम कर रही हैं. वे सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानव अधिकार और पार्शवीकरण पर काम करने वाले समा रिसोर्स ग्रुप फॉर वीमेन एंड हेल्थ की संस्थापकों में से एक हैं. सरोजिनी जन स्वास्थ्य अभियान की राष्ट्रीय सह-संयोजक तथा जेंडर जस्टिस सर्कल ऑफ़ पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट ग्लोबल की संयोजक भी हैं. उन्होंने पिछले दो दशकों के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था, मेडिकल और प्रजननीय तकनीकी पर कई अध्ययनों, जांच-रिपोर्टों, परामर्श, पहलों, संघर्ष एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य, दवाइयों तक सभी की पहुंच बनाने और क्लिनिकल रिसर्च में नैतिकता तथा हाल ही में कोविड-19 और कमज़ोर तबक़ों पर इसके प्रभाव की पहलों को नेतृत्व प्रदान किया है. फ़िलहाल सरोजिनी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति का हिस्सा हैं. यह समिति कोविड-19 महामारी का मानव अधिकार और भविष्य की प्रतिक्रिया पर प्रभाव का आकलन कर रही है.

मालिनी घोष

मालिनी घोष निरंतर की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. वे क़रीब तीस वर्षों से शिक्षा एवं महिला अधिकारों के क्षेत्र में विभिन्न भूमिकाओं में काम कर रही हैं, जैसे – ज़मीनी कार्यकर्ता, ट्रेनर, पाठ्यक्रम व पाठ्य सामग्री विकासक, शोधकर्ता और एक्टिविस्ट. मालिनी ने महिलाओं के लिए कई नायाब शिक्षा कार्यक्रम डिज़ाइन और लागू किए हैं. सरकार के कार्यक्रमों की समीक्षा करती रही हैं तथा ग़ैर सरकारी संस्थाओं को ‘शिक्षा के अधिकार’ के विषय में जेंडर और शिक्षा को लेकर सुझाव भी दिए हैं. वे महिला समाख्या कार्यक्रम के लिए नेशनल रिसोर्स ग्रुप की सदस्या होने के साथ-साथ 2005 से 2008 के बीच एनसीआरटी की (मिडिल और सेकेंडरी स्कूल) पॉलिटिकल साइंस टेक्टबुक्स पाठ्य पुस्तक लेखन समिति का भी हिस्सा रही हैं. उनके लेख इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीक्ली, द इंटेरनेशनल रिव्यू ऑफ़ एजुकेशन एंड जेंडर और डेवेलपमेंट में छपते रहे हैं. फ़िलहाल मालिनी यूनिवर्सिटी ऑफ़ गोटिंजन, जर्मनी से पीएचडी कर रही हैं.

इंटर्नशिप, कुछ कदम हमारे साथ

द थर्ड आई का इनटर्नशिप कार्यक्रम नारीवादी नज़रिए से कला, लेखन, सीखने-सिखाने के तरीकों के विकास की प्रक्रिया को नज़दीक से दिखाता है. इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कम से कम 3 महीने की प्रतिबद्धता ज़रूरी है. किसी भी उम्र और शैक्षिक योग्यता के व्यक्तियों/फोल्क्स का स्वागत है.

हमारे इनटर्न

सिरिजा यू, आर्या पाठक, नम्रता मिश्रा, नांगसेल शेरपा, अचल डोडिया, अनिशा, चैताली पंत, अलमीना खातून. 

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