आइए इस एपिसोड में मिलते हैं सफीना नबी से, जो कश्मीर में अपने लोगों के बीच पत्रकारिता करने के अपने अनुभवों और उसकी चुनौतियों के बारे में खुलकर हमसे बात कर रही हैं.
“मेरे लिए हमेशा से औरतों की कहानियां ही मायने रखती थीं. उन औरतों की कहानियां जिनकी बात न उनके घरवाले सुनते हैं, न समाज, न ही सरकार. वो ऐसी परिस्थितियों के बीच में खड़ी हैं जिसे बयान करने के लिए अब शब्द भी नहीं बचे हैं. मैं, अपने घर की फर्स्ट जेनरेशन हूं जिसने पढ़ाई – लिखाई की और अपना एक करियर बनाया है. इसलिए मेरे लिए ये और महत्त्वपूर्ण है कि मैं उनकी आवाज़ बनूं जिन्हें ये मौका नहीं मिला, और सवाल पूछूं कि क्यों नहीं मिला.”
सफीना नबी, दक्षिण एशियाई मल्टी-मीडिया स्वतंत्र पत्रकार हैं. वे कश्मीर में रहती हैं और जेंडर, स्वास्थ्य, मानवाधिकार, सामाजिक न्याय, विकास और पर्यावरण के विषयों पर लिखती हैं. कश्मीर के विभिन्न इलाकों में “आधी विधवाओं” के संपत्ति अधिकारों के बारे में प्रकाशित उनका लंबा लेख बहुत चर्चित हुआ था. इसके लिए उन्हें 2023 का फेटिसोव पत्रकारिता पुरस्कार और लाडली मीडिया पुरस्कार भी प्राप्त हुआ. एक साल की लंबी खोजी पत्रकारिता पर आधारित इस लेख ने अशांत क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के संपत्ति के अधिकारों, और सरकार, समाज एवं कानूनी संरचनाओं की उसमें भूमिका के बारे में महत्त्वपूर्ण सवाल उठाए हैं.
अक्टूबर 2014 में आयोजित बाथ फिल्म फेस्टिवल के दौरान पहली बार एफ (F) रेटिंग की शुरुआत हुई. एफ (F) रेटिंग का मतलब उन फिल्मों से है जिसकी निर्देशक महिला हों, या फिल्म की लेखक महिला हों और अगर कोई महिला मुख्य किरदार की भूमिका में है तो फिर वह कहलाता है गोल्ड रेटिंग, मतलब ट्रिपल एफ (F)! दरअसल, एफ (F) रेटिंग की बुनियाद फिल्मों में और पूरी फिल्म उद्योग में महिलाओं के लिए बराबरी के दर्जे से है.
कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया जहां नारीवादी नज़रिया सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि सभी प्रथाओं में केंद्रीय भूमिका में हो? इस कल्पना को साकार करते हुए आज हम इस नारीवादी नज़रिए को पॉडकास्ट के बरास्ते आपके पास लेकर आए हैं. इस शो में आप मिलेंगे अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले अभ्यासकर्ताओं से और नारीवादी नज़र को केंद्र में रखते हुए द थर्ड आई टीम के साथ होंगी रोचक, शानदार, जानदार बातें.
कवर इमेज : तविशा सिंह